नई दिल्ली: रोजगार को लेकर मोदी सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है. लेबर आयोग के आंकड़े कहते हैं कि मोदी सरकार सालाना महज़ दो से ढाई लाख लोगों को नौकरी दे पाई है. नौजवानों को अब भी नौकरियों की तलाश है. विपक्ष ही नहीं, खुद सरकार की सहयोगी संस्थाएं अब नौकरी के मोर्चे पर सरकारी नाकामी को निशानी बना रही है.


सितंबर 2015 में 7.5 लाख इंटर पास, डेढ़ लाख ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट, इंजीनियरिंग और ढाई सौ पीएचडी डिग्री होल्डर समेत 23 लाख लोगों ने पांचवी पास चपरासी के लिए आवेदन किया था.


कॉन्ट्रैक्ट चपरासी की भर्तियों के लिए आए पीएचडी, एमफिल और एमए कर चुके लोगों के आवेदन
आज फिर अखबार में हरियाणा की खबर छपी कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में कॉन्ट्रैक्ट पर चपरासी की 92 भर्तियों के लिए पीएचडी, एमफिल और एमए कर चुके 20 हजार लोगों ने फॉर्म भरा है. फॉर्म खरीदने के लिए एक किलोमीटर लंबी लाइन लगी थी. दो पुरानी और आज की खबर बताती है कि देश में नौकरी का संघर्ष जारी है. इसके बाद भी कि पीएम मोदी ने 3 साल पहले 2 करोड़ नौकरी देने का वादा किया था.


रोजगार को लेकर मोदी सरकार बैकफुट पर
मोदी सरकार ने देश पर राज करते हुए तीन साल पूरे कर लिए. तीन साल में उपलब्धियां गिनाने के लिए मोदी के पास बहुत कुछ है लेकिन जिस मोर्चे पर सरकार बैकफुट पर आ जाती है और विपक्ष फ्रंट फुट पर सरकार पर निशाना साधता है वो है नौकरी और रोजगार का सवाल. स्वदेशी जागरण मंच आरएसएस से जुड़ा एक संगठन है जो सरकार का पक्षधर माना जाता है लेकिन नौकरी-रोजगार के सवाल पर उसके सुर भी विपक्ष के सुर से मिलते हैं. पिछले महीने गुवाहाटी में हुई राष्ट्रीय परिषद में स्वदेशी जागरण मंच की निराशा दिखी कि जीडीपी तो 7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है लेकिन रोजगार सृजन की दर केवल 1 प्रतिशत है.


जानें क्या कहते हैं आंकड़े ?
पिछले साल 2016 में बेरोजगारी का आंकड़ा 7.97 प्रतिशत के चिंताजनक स्तर पर था. गांवों से ज्यादा बेरोजगारी शहरों में रिकॉर्ड की गई. गांव में बेरोजगारी की दर थी 7 दशमलव एक पांच प्रतिशत जबकि शहरों में दर थी 9 दशमलव छे दो प्रतिशत. 48 हजार करोड़ के मनरेगा फंड के कारण गांवों में तो लोगों को रोजगार मिला लेकिन शहरों की हालत सुधर नहीं पाई. केंद्रीय श्रम ब्यूरो के आंकड़े भी रोजगार की बहुत अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं. मनमोहन सिंह के आखिरी दो साल 2012 और 2013 में कुल 7 लाख 41 हजार नए रोजगार के मौके बने जबकि मोदी सरकार के पहले दो साल 2015 और 2016 में कुल 3 लाख 86 हजार रोजगार पैदा हुए. कमी हुई 2 लाख 55 हजार की. हालांकि कंसल्टेंसी फर्म पीपुल्स स्ट्रांग की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के वक्त रोजगार ज्यादा पैदा हुआ. 2014 में 6 प्रतिशत, 2015 में 25 प्रतिशत और 2016 में 7 प्रतिशत ज्यादा रोजगार पैदा हुआ.


नौकरी नहीं देने के आरोपों से सरकार घिरी हुई है. मोदी सरकार के 3 साल पूरे होने पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ये सफाई दी कि सबको नौकरी दे पाना संभव नहीं है. इसलिए हम स्किल इंडिया के जरिए लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. मोदी सरकार ने स्वरोजगार पर जोर देने के लिए ही स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय बनाया था.  स्किल ड़ेवलपमेंट मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने एबीपी न्यूज के ही कार्यक्रम में दावा किया था कि नौकरी के मामले में सरकार को 10 में से 10 नंबर मिलने चाहिए.


नौकरी और रोजगार का सवाल पीएम मोदी के लिए बना बड़ा सिरदर्द
नौकरी और रोजगार का सवाल पीएम मोदी के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. सरकार के तीन साल पूरे हो चुके हैं. महंगाई, भ्रष्टाचार, चुनाव-हर मोर्चे पर मोदी ने डंका पीटा लेकिन रोजगार और नौकरी का मुद्दा ऐसा है जिस पर सरकार घिरी हुई है. पीएम मोदी ने मंत्रियों को निर्देश दिया हुआ है कि कैबिनेट की मंजूरी के लिए अगर कोई भी प्रस्ताव आएगा तो संबंधित मंत्रालय के लिए जरूरी होगा कि वो प्रस्ताव में लिखे कि इससे कितने रोजगार के मौके बनेंगे.


रोजगार की संभावनाओं को लेकर पीएम मोदी ने नीति आयोग को सौंपी बड़ी जिम्मेदारी
नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में टास्क फोर्स बनाई. टास्क फोर्स रोजगार के सटीक आंकड़े देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. पनगढ़िया ने पीएमओ में आज प्रेजेंटेशन दिया है. नीति आयोग ने तीन साल एक्शन प्लान बनाया है. रोज़गार और नौकरी को एक अलग तरीक़े से परिभाषित करने की कोशिश की गई है. एक्शन प्लान में कहा गया है कि भारत में बेरोज़गारी से अल्प रोज़गार या कम वेतन का रोज़गार ज़्यादा बड़ी समस्या है. आयोग के मुताबिक़ कपड़ा , इलेक्ट्रॉनिक्स , खाद्य प्रसंसस्करण और जवाहरात उद्योग में रोज़गार की संभावनाएं काफ़ी ज्यादा हैं और सरकार को इन क्षेत्रों में निवेश के उपाय खोजने की ज़रूरत है.


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