देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की आज जयंती है. सावित्रीबाई फुले उन महान हस्तियों में से हैं जिन्होंने भारत में महिलाओं को शिक्षा दिलाने और उनका सशक्तिकरण करने में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान दिया था. आज पूरे देश में उनकी जयंती मनाई जा रही है, सोशल मीडिया पर लोग जमकर इनके बारे में लिख रहे हैं. 19वीं सदी के कुछ सबसे बड़े समाज सुधारकों में शुमार सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ महाराष्ट्र के पुणे में पहली बार एक कन्या विद्यालय की स्थापना की थी. आज इस आर्टिकल में हम आपको उन्हीं से जुड़ी तमाम जानकारियां देंगे.


अंग्रेजों ने भी किया था सम्मानित


सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योति राव फुले के साथ मिलकर पूरे देश में लगभग 18 स्कूल खोले. महिलाओं के प्रति उनका समर्पण इतना ज्यादा था कि भयंकर विरोध के बाद भी यह लोग नहीं रुके और महिलाओं की शिक्षा को लेकर आवाज उठाते रहे. इनकी इस शानदार सोच और सामाजिक काम को अंग्रेजों ने भी सराहा. उन्होंने शिक्षा में उनके इस योगदान के लिए उन्हें सम्मानित भी किया.


बचपन से ही शिक्षा को लेकर थीं जागरुक


सावित्रीबाई फुले बचपन से ही शिक्षा को लेकर बेहद जागरूक थीं और वह हमेशा से स्कूल जाना चाहती थीं. लेकिन बचपन में उन्हें स्कूल जाने से रोका गया. हालांकि इसके बावजूद भी उन्होंने शिक्षा पाने की अपनी इच्छाशक्ति को मरने नहीं दिया और इसके लिए निरंतर प्रयास करती रहीं. महज 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले की शादी ज्योति राव फुले से हो गई. जब ज्योति राव फुले ने सावित्रीबाई फुले के अंदर शिक्षा को लेकर इतनी ज्यादा इच्छाशक्ति देखी तो उन्होंने इसे आगे बढ़ाने की ठानी और फिर ज्योतिराव फुले की मदद से सावित्रीबाई फुले ने अपनी शिक्षा ग्रहण की. इसके बाद में उन्होंने पुणे में शिक्षक का प्रशिक्षण लिया और फिर शिक्षिका बन गईं.


विधवा औरतों के लिए भी किया संघर्ष


सावित्रीबाई फुले ने सिर्फ महिलाओं को शिक्षित करने के लिए ही नहीं संघर्ष किया, बल्कि उन्होंने विधवा औरतों के लिए भी कई बड़े काम किए. उन्होंने विधवा औरतों के लिए आश्रम खोला... इसके साथ ही निराश्रित महिलाओं, बाल विधवाओं और परित्याग की गई महिलाओं को भी अपने आश्रम में जगह दी. इसी आश्रम में सावित्रीबाई फुले महिलाओं और लड़कियों को पढ़ाती थीं. उन्होंने पितृसत्तात्मक सोच से संघर्ष करने को लेकर कुल 4 पुस्तकें लिखें. सावित्रीबाई फुले को आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी कहा जाता है.


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