सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजस्थान के 36,000 निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 में छात्रों से 15 प्रतिशत कम एनुअल फीस वसूलने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही ये भी साफ-साफ कह दिया कि फीस का भुगतान न करने पर किसी भी स्टूडेंट को वर्चुअल या फीजिकल क्लासेस में भाग लेने से नहीं रोका जाएगा और न ही उनका एग्जाम रिजल्ट रोका जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों से फीस में 15 प्रतिशत कटौती की बात कही
यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश महेश्वरी की बेंच ने दिया है. दरअसल ये सुनवाई जोधपुर के इंडियन स्कूल और राज्य सरकार व एक अन्य संबंधित केस पर हुई. इस दौरान बेंच ने कहा कि स्कूलों को शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए स्टूडेंट्स द्वारा अनुपयोगी सुविधाओं के लिए 15 प्रतिशत फीस में कटौती करनी चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों को राज्य कानून के तहत निर्धारित वार्षिक फीस जमा करने की अनुमति दी.
फीस 6 समान किश्तों में होगी देय
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच के इस फैसले से राजस्थान के तकरीबन 36,000 प्राइवेट गैर सहायता प्राप्त स्कूलों और 220 अल्पसंख्यक निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों पर प्रभाव पड़ेगा. वहीं जस्टिस ए एम खानविल्कर और दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने अपने 128 पन्नों के फैसले में स्पष्ट किया कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए कम की गई फीस स्टूडेंट्स या अभिभावकों द्वारा छह समान किश्तों में देय होगी.
ये है पूरा मामला
बता दें कि निजी स्कूल प्रबंधन ने शैक्षणिक वर्ष 2020-21 की स्कूल फीस के मामले में सर्वोच्च अदालत में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को निरस्त कर दिया जिसमें कुल फीस का 70 फीसदी ही ट्यूशन फीस के रूप में लेने का आदेश दिया गया था. बता दें कि कोरोना संक्रमण महामारी के चलते पैरेंट्स निजी स्कूलों से फीस माफ कराना चाहते थे. लेकिन निजी स्कूल ये कतई मानना नहीं चाहते हैं. इसके बाद मामला राजस्थान हाईकोर्ट पहुंच गया जिस पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि स्कूल संचालक 70 फीसदी फीस ही ले सकते हैं. उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ निजी स्कूल संचालकों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी और पैरेंट्स से पूरी फीस लेने की अपील की थी. सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया. इसके साथ ही अभिभावकों की याचिका को भी खारिज कर दिया गया है.
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