SC, ST Quota In Central Government Job: कोटे में कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. इसे मंजूरी दे दी गई है और साल 2004 के फैसले को पलट दिया गया है. अदालत का कहना है कि कोटे में कोटा मामले में कोई समस्या नहीं है. एससी की सात जजों की पीठ का कहना है कि स्टेट गवर्नमेंट एससी और एसटी श्रेणी में सब कैटेगरी बना सकती है. हालांकि इसका आधार तार्किक होना चाहिए.


बदल गया फैसला


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद साल 2024 के उस फैसले को बदल दिया गया है जिसमें अदालत ने कोटे के अंदर कोटा देने को गलत करार दिया था. ईवी चिन्नैया मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की फीट ने कहा था कि एसटी, एसटी कैटेगरी की सब कैटेगरी नहीं बनायी जा सकती. कोर्ट का कहना है कि आरक्षण सही लोगों तक पहुंचना चाहिए जबकि जमीनी हकीकत ये है कि कुछ खास वर्ग की इसका फायदा उठा रहे हैं.


क्या है व्यवस्था 


अभी केंद्र सरकार में एससी, एसटी आरक्षण की बात करें तो संविधान के आर्टिकल 16 कि हिसाब से व्यवस्था कुछ ऐसी है. राज्य के अंडर आने वाले सभी नागरिकों को रोजगार में समान अवसर मिलने चाहिए. अगर अनुसूचित जातियों, जनजातियों की बात करें तो कोटा कुछ इस प्रकार तय किया गया है. ये कोटा ऑल इंडिया बेसिस पर होने वाले डायरेक्ट रिक्रूटमेंट ओपेन कांपटीशन के लिए है और सेंट्रल गवर्नमेंट जॉब्स के लिए है.


एसटी कैटेगरी को – 7.5 फीसदी


एससी कैटेगरी को – 15 फीसदी


ओबीसी कैटेगरी को 27 फीसदी


ईडब्ल्यूएस कैटेगरी को 10 फीसदी.


जो ऑल इंडिया बेसिस के डायरेक्ट रिक्रूटमेंट ओपेन कांपटीशन के बजाय किसी और  तरह से होते हैं, उ्म कोटा ये तय किया गया है.


एससी श्रेणी के लिए – 16.66 फीसदी


एसटी श्रेणी के लिए 7.5 फीसदी


ओबीसी श्रेणी के लिए – 25.84 फीसदी.


ईडब्ल्यूएस कोटे की बात करें तो इकोनॉमिकल वीकर सेक्शंस को सेंट्रल गवर्नमेंट 10 प्रतिशत रिजर्वेशन देती है.


कितनी अनुसूचित जाति हैं


मिनिस्ट्री ऑफ सोशल इम्पावरमेंट एंड जस्टिस की रिपोर्ट बताती है कि साल 2018-19 में देश में 1263 एससी जातियां थी. ये भी जान लें कि किसी सूची में जातियां जोड़ने या हटाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास होता है. आज आए फैसले के बाद से साल 2004 का फैसला पलट गया है.


कब हुई थी शुरुआत


आरक्षण का ओरिजिनल आइडिया मुख्य रूप से विलियम हंटर और ज्योतिराव फुले को साल 1882 में आया था. इन्होंने ही जाति के आधार पर आरक्षण प्रणाली की कल्पना की थी. आज के समय में जो आरक्षण व्यवस्था लागू है, वो सही मायनों में साल 1933 में शुरू हुई थी. 


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