Success Story Of Arushi Mishra: उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रहने वाली आरुषि मिश्रा हमेशा से पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं लेकिन साल 2018 में जब उन्होंने न केवल आईएफएस परीक्षा पास कर ली बल्कि सेकेंड रैंक भी ले आयीं तो खुद उनको भी इस सफलता पर यकीन नहीं हुआ. जिन्हें जानकारी नहीं है उन्हें हम साफ कर दें कि आईएफएस परीक्षा आईएएस से भी ज्यादा कठिन होती है. जितना कटऑफ आईएएस परीक्षा का जाता है उससे कहीं ज्यादा इसका जाता है. ऑल इंडिया लेवल पर इसमें केवल 90 सीट्स हैं, जिनके लिये यह परीक्षा आयोजित होती है. चूंकि सीट्स कम हैं तो कांपटीशन और भी तगड़ा होता है. आईएएस और आईएफएस परीक्षा की तैयारी में अंतर होता है. पर जो कैंडिडेट जिस परीक्षा में बैठना चाहता है उसी के अनुरूप निर्णय लेता है. आईएएस और आईएफएस का प्री पेपर एक ही होता है लेकिन चयनित हो जाने के बाद आईएफएस का मेन्स और साक्षात्कार अलग होता है. प्री तक दोनों की तैयारी एक साथ की जा सकती है पर उसके बाद स्ट्रेटजी बहुत बदलनी पड़ती है. किताबें भी अलग पढ़नी होती हैं.


आरुषि हैं आईआईटी रुड़की पासआउट –


आरुषि रायबरेली की रहने वाली हैं और उनकी शुरुआती शिक्षा यहीं हुई. यहां से क्लास 12 पास करने के बाद वे कोटा चली गयीं और उन्होंने वहां इंजीनियरिंग की तैयारी की. वे पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं फलस्वरूप उनका चयन आईआईटी रुड़की में हो गया. यहां से उन्होंने मैटलर्जी में साल 2014 में इंजीनियरिंग की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने सिविल सर्विसेस में जाने का मन बनाया. इस परीक्षा के लिये उन्होंने दिल्ली में ही रहकर तैयारी की. परीक्षा की तैयारी के लिये किसी प्रकार की कोचिंग न लेने का उन्होंने फैसला किया. सेल्फ स्टडी पर उनका पूरा फोकस था. यहां रहकर उन्होंने कई साल यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी की.


ऐसे आया आईएफएस देने का विचार -


आरुषि ने जब एक बार आईएएस का प्री दिया तो उनके नंबर एवरेज से काफी ऊपर आये. तभी उन्होंने तय किया की आईएफएस के लिये प्रयास किया जा सकता है. दरअसल नंबर अच्छे आने से उन्हें खुद पर कांफिडेंस हुआ की वे आईएफएस दे सकती हैं. क्योंकि जहा आईएएस के लिये प्री का कटऑफ 100 रहता है तो आईएफएस के लिये मिनिमम 120 होता है, या इससे ऊपर ही जाता है. इन सालों में एक बार ऐसा भी हुआ कि उन्होंने फॉर्म तो भरा लेकिन पेपर पास आने पर उन्हें लगा कि वे तैयार नहीं हैं तो उन्होंने परीक्षा नहीं दी. इस प्रकार उन्होंने अपना एक अटेम्पट बचा लिया, पर तब उन्हें भी नहीं पता था कि बहुत अटेम्पट्स की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. आरुषि की खास बात यह है कि उन्होंने पहले ही अटेम्पट में आईएफएस परीक्षा न केवल पास की बल्कि पूरे देश में दूसरा स्थान भी प्राप्त किया. इसके पहले उन्होंने एक बार आईएएस दिया था पर आईएफएस में यह उनका पहला प्रयास था, जो एआईआर रैंक 2 के साथ अंतिम भी साबित हुआ.


कोचिंग को मानती हैं स्पून फीडिंग –


आरुषि का कहना है कि कोचिंग की सहायता लेना हर इंडीविजुअल का अपना डिसीजन होता है. जहां तक उनकी बात है तो उन्हें ऐसा लगता है कि कोचिंग मे की जाने वाली स्पून फीडिंग से आप में और बाकी कैंडिडेट्स में कोई फर्क नहीं रह जाता. वे सबको एक ही बात सिखाते हैं और बहुत सारे स्टूडेंट्स एक साथ क्लास अटेंड करते हुये एक जैसे अंदाज में ही चीजें ग्रहण करते हैं. इससे उनकी राइटिंग में भी वही बात आ जाती है. उन्हें लगता है कि अगर अपने उत्तरों को दूसरों से अलग नहीं लिखेंगे तो जाहिर सी बात है न अलग अंक पायेंगे न ही आईएफएस में चयनित होने की संभावना बनेगी. एक जैसे उत्तर जब सब लिखते हैं तो अंक भी वैसे ही मिलते हैं और न रैंक बनती है न आईएफएस जैसी सर्विस का रास्ता खुलता है.


आईएफएस के लिये रखें साइंटिफिक अपरोच –


इस परीक्षा को पास करने के मंत्र के लिये आरुषि मानती हैं कि करेंट अफेयर्स पर फोकस करें और जितना हो सकें रिवीज़न करें. यहां केवल पढ़ना ही नहीं पढ़ा हुआ याद रखना भी जरूरी होता है. वे आगे कहती हैं कि खूब मॉक टेस्ट दें, इससे आपको अपनी कमियां पता चलेंगी. आईएएस और आईएफएस परीक्षा में मूल अंतर क्या है के विषय में बात करते हुये वे कहती हैं कि आईएफएस में साइंस और टेक्नोलॉजी जुड़ जाती है. फॉरेस्ट सर्विसेस के लिये साइंटिफिक अपरोच होना बहुत जरूरी है. इसके साथ ही वे परीक्षा की तैयारी के लिये डिजिटल मीडिया के प्रयोग पर भी खासा जोर देती हैं. हालांकि इसके प्रयोग के समय सावधानी रखना जरूरी है ताकि आप डिस्ट्रैक्ट न हों. आरुषि मिश्रा की कहानी बताती है कि अगर प्लांड वे में, अपनी क्षमताओं का सही आंकलन करके तैयारी की जाये तो मुश्किल कुछ भी नहीं. फिर चाहे वो आईएएस एग्जाम हो या आईएफएस एग्जाम.


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