IPS Success Story: बचपन में ही खोया पिता का साया पर नहीं हारी हिम्मत, बन गईं अपराजिता सिक्किम की पहली महिला IPS ऑफिसर
सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते जब हर छोटे काम को करवाने में अपराजिता ने किया कठिनाई का सामना तो उसी पल उन्होंने तय किया कि वे भी एक दिन सरकारी अफसर बनेंगी और लोगों की हरसंभव मदद करेंगी.
Success Story Of IPS Topper Aparajita Rai:अपराजिता राय ने साल 2011 में हिस्ट्री क्रियेट कर दी जब उन्होंने आईपीएस परीक्षा पास की. ऐसे तो हर साल बहुत से कैंडिडेट्स ये परीक्षा पास करते हैं पर अपराजिता इस मायने में खास हैं कि वे सिक्किम की पहली महिला आईपीएस ऑफिसर हैं. अभी तक वहां से कोई भी महिला इस पद के लिए चयनित नहीं हुयी. यही नहीं सिक्किम एक ऐसी जगह है जहां सिविल सर्विसेस जैसी सेवाओं के बारे में न कोई जानता है न ही इनमें रुचि लेता है. अपने एक साक्षात्कार में अपराजिता कहती भी हैं कि इस पद को पाने के बाद उनका एक मन यह भी था कि वे वहां के युवाओं को सिविल सर्विसेस के बारे में जागरुक करें ताकि और भी लोग इस सेवा में जाने का मन बनाएं.
आठ साल की उम्र में खोया पिता को –
अपराजिता एक एजुकेटेड फैमिली से हैं. उनके पिता डिविज़नल फॉरेस्ट ऑफिसर थे और मां ग्रेजुएट टीचर. अपराजिता भी हमेशा से पढ़ाई में बहुत अच्छी थीं. सब कुछ ठीक चल ही रहा था कि आठ साल की छोटी सी उम्र में उनके पिता की डेथ हो गयी. ऐसे में सारी जिम्मेदारी अपराजिता की मां पर आ गयी जिसमें उन्होंने भी बहुत जल्दी हाथ बंटाना शुरू कर दिया. नतीजतन अपराजिता ने काफी कम उम्र से ही बड़ों जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया था. इसी दौरान वे कुछ काम से कई बार सरकारी ऑफिस गयीं. हर बार वे बहुत परेशान हुयीं और न जाने कितने चक्कर लगाने के बाद भी उनका काम नहीं हुआ. तभी उन्होंने तय किया कि वे भी बड़ी होकर सरकारी ऑफिसर बनेंगी और उनके पास आकर लोगों को वह उत्पीड़न और यातना नहीं सहनी होगी जो आमतौर पर सरकारी दफ्तरों में होती है. कम से कम अपराजिता का तो यही अनुभव था.
अपराजिता के अचीवमेंट्स –
अपराजिता बचपन से ब्रिलिऐंट थीं. स्कूल में वे स्टेट टॉपर रहीं और आईएससी एग्जाम में उनके 95 परसेंट मार्क्स आये. इसी समय उन्हें ताशी नामग्याल अकादमी में बेस्ट गर्ल ऑल राउंडर श्रीमती रत्ना प्रधान मेमोरियल ट्रॉफी से भी नवाज़ा गया. बाद में उन्होंने अपना बीए एलएलबी पूरा किया और न्यायशास्त्र और लोक प्रशासन दोनों में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज्यूरिडिकल साइंसेज, कोलकाता से स्वर्ण पदक जीतकर खुद को फिर से साबित किया. ये तो बस शुरुआत थी. आगे भी अपराजिता ने बहुत से अवार्ड्स अपने नाम किये. उनकी प्रमुख उपलब्धियों में सर्वश्रेष्ठ लेडी आउटडोर प्रोबेशनर के लिए 1958 बैच आईपीएस अधिकारियों की ट्रॉफी, फील्ड कॉम्बैट के लिए श्री उमेश चंद्र ट्रॉफी, बेस्ट टर्न आउट के लिए वरिष्ठ कोर्स ऑफिसर्स ट्रॉफी का 55 वां बैच और बंगाली के लिए पश्चिम बंगाल सरकार की ट्रॉफी शामिल है.
पहली बार में पायी सफलता –
अपराजिता ने साल 2010 में पहली बार यूपीएससी परीक्षा दी थी और पहली बार में ही उनका चयन भी हो गया था. हालांकि उस समय उनकी रैंक उनके मन की नहीं थी. अपराजिता को उस समय 768वीं रैंक हासिल हुयी थी. उन्होंने अगले ही साल 2011 में फिर कोशिश करी और इस साल उन्होंने 358वीं रैंक पायी साथ ही आईपीएस की सेवा भी. 28 साल की अपराजिता को 2012 में आईपीएस कैडर मिला. आखिरकार अपराजिता ने बचपन में जो कमिटमेंट खुद से किया था, उसे पूरा करके दिखाया. अगर आईपीएस ऑफिसर न बनतीं तो अपराजिता शायद कॉरपोरेट लॉयर होतीं जैसा कि उनके पिता चाहते थे. हालांकि उन्होंने एक ऐसी जगह से एक ऐसी सेवा का हिस्सा बनकर दिखाया जहां उसके बारे में न कोई जानता था ना ही उसकी तैयारी से संबंधित बहुत सुविधाएं उपलब्ध थी. अपराजिता की कहानी सिखाती है कि चाहे आप जहां के भी हों और चाहे कैसी भी मुसीबत का सामना कर रहे हों पर अगर किसी चीज़ के लिए पूरी ईमानदारी और कड़ी मेहनत से कोशिश करो तो सफलता जरूर मिलती है.
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