IAS Success Story: अपराजिता का नाम उनके नाना-नानी ने रखा था. इस नाम के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल बचपन में अपराजिता शारीरिक रूप से काफी कमजोर थीं, जिससे उन्हें सामान्य काम करने में भी समस्या होती थी. लेकिन फिर भी वे हिम्मत नहीं हारती थीं और जब तक कार्य पूरा न हो जाये लगी रहती थीं. इसी वजह से उनके नाना ने उनका नाम अपराजिता रखा यानी कभी पराजित न होने वाली. अपराजिता ने जीवनभर अपने नाम को चरितार्थ किया और समस्या कैसी भी हो कभी घुटने नहीं टेके. आज जानते हैं अपराजिता के अपराजित होने की कहानी.
मां-बाप के बिना बीता बचपन
अपराजिता के माता-पिता ने बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें नाना-नानी के पास छोड़ दिया था. अपराजिता का पूरा बचपन यहीं बीता. यहां तक कि आगे की पढ़ायी भी उन्होंने नाना-नानी के घर पर ही पूरी की. उनको प्यार दुलार के साथ ही कठिन परिस्थितियों में हिम्म्त न हारने का संबल भी इन्हीं से मिला. चूंकि अपराजिता डॉक्टर्स की फैमिली को बिलांग करती हैं तो बचपन से आईएएस बनने का सपना देखने के बावजूद उन्होंने पहले मेडिकल का क्षेत्र चुना. उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (PGIMS) से मेडिकल की पढ़ायी पूरी की. इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी का मन बनाया. कुछ समय तैयारी करने के बाद उन्होंने साल 2017 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी जिसमें उनका चयन नहीं हुआ. पर अपराजिता ने हिम्मत नहीं हारी और दोबारा कोशिश की.
बचपन में टीचर ने हैंडराइटिंग के कारण कॉपी चेक करने से किया था मना
अपराजिता उन कैंडिडेट्स के लिये बड़ा प्रेरणास्त्रोत हैं जिन्हें लगता है कि किसी भी बड़ी परीक्षा को पास करने वाले छात्र हमेशा से बहुत मेधावी होते हैं. अपराजिता का केस ऐसा नहीं था. वे बचपन से एक एवरेज स्टूडेंट थीं और उनके अंक भी बस ठीक-ठाक ही आते थे. उनकी बचपन की सबसे बड़ी और खराब मेमोरी तो उनकी हैंडराइटिंग हैं जो बहुत ही गंदी थी. वे क्या लिखती थी कुछ समझ नहीं आता था पर हद तो तब हुयी जब एक बार एक टीचर ने उनकी कॉपी ही चेक करने से मना कर दिया क्योंकि उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. इस बात से अपराजिता को बहुत धक्का लगा. उन्होंने तभी तय कर लिया कि चाहे कितनी भी मेहनत करनी पड़े पर वे अपनी हैंडराइटिंग सुधारकर ही दम लेंगी. और उन्होंने कुछ प्रयासों के बाद ऐसा कर भी दिखाया. यही वो लाइफ का यू-टर्न था जहां से अपराजिता ने अच्छा करना शुरू कर दिया और एक के बाद एक परीक्षा पास करती गयीं. एमबीबीएस पास करना भी इसी कड़ी में अगली सफलता थी जो एवरेज स्टूडेंट्स के लिये आसान नहीं होती.
बचपन से देखा आईएएस बनने का सपना
एक बार अपराजिता अपने नाना के साथ कहीं जा रही थीं, जब उन्होंने पास से एक आईएएस ऑफिसर की गाड़ी को गुजरते देखा और अपने नाना से पूछा कि यह गाड़ी किसकी है. उनके नाना ने उन्हें बताया कि ये आईएएस ऑफिसर की गाड़ी है और ये लोग कैसे दूसरों की मदद कर सकते हैं. बस तभी से अपराजिता ने सोच लिया था कि वे भी एक दिन आईएएस ऑफिसर ही बनेंगी. हायर स्टडीज में पहुंचने के बाद जीवन में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुये कि उन्हें पहले एमबीबीएस करना पड़ा पर सब कुछ सेटेल होते ही उन्होंने अपने सपने को पाने की ओर कदम बढ़ा दिया. हालांकि यह राह भी आसान नहीं थी उनके घरवालों ने कहा था कि वे चाहती हैं तो एक बार ट्राय कर सकती हैं क्योंकि परिवार में सबका झुकाव मेडिकल की तरफ ही था.
मुश्किलों से भरा अपराजिता का सफर
अपराजिता को घर से एक साल की मोहलत मिली थी जिसमें उनके ऊपर परीक्षा पास करने का प्रेशर था. उस पर यूपीएससी की परीक्षा कहां इतनी आसानी से निकलती है. सारे प्रयासों के बावजूद अपराजिता का पहली बार में सेलेक्शन नहीं हुआ. खैर उनका मन देखकर परिवार वाले सपोर्ट में आ खड़े हुये और यह तय हुआ कि एक प्रयास तो और बनता है. अपराजिता ड्यूटी के साथ ही परीक्षा की तैयारी भी कर रही थी. ऐसे ही उनके पास डबल कामों का दबाव था इसी बीच उन्हें चिकनगुनिया हो गया. जैसा की हम जानते हैं यूपीएससी की परीक्षा पास करने के लिये एक-एक दिन का कितना महत्व है. ऐसे में बीमारी के नाम पर हफ्तों आराम नहीं कर सकते. जैसे-तैसे जीवन चल रहा था कि फ्रैक्चर हो गया. परीक्षायें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी. लेकिन अपराजित, अपराजिता ने एक बार फिर साबित किया कि वे रुकने वाली नहीं हैं. इसी हाल में उन्होंने न केवल परीक्षा दी बल्कि हरियाणा की रोहतक की अपराजिता सिंह सिनिसिनवाला ने साल 2018 की यूपीएससी परीक्षा 82वीं रैंक के साथ पास की और परिवार के भरोसे और अपने सपने को सच कर दिखाया.
अपराजिता की कहानी हमे सिखाती है कि नामुमकिन कुछ भी नहीं. अगर दिल में ठान लो तो कुछ भी पाया जा सकता है. संघर्ष सबके जीवन में होता है बस प्रकार अलग होता है. तो ईश्वर ने आपके लिये जो संघर्ष चुना है उससे डरने के बजाय उसे अपना लीजिये, जीत आपकी होगी.
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