IAS Success Story: इंजीनियर से IAS ऑफिसर बनने में लग गए तीन साल पर कभी धीमी नहीं पड़ी दिलीप की रफ्तार
जोधपुर के दिलीप सिंह शेखावत को यूपीएससी सीएसई परीक्षा में सफलता हासिल करने के लिए तीन अटेम्प्ट्स देने पड़े पर वे कभी हार मानकर पीछे नहीं हटे. यहां जानें उनकी सक्सेज स्टोरी.
Success Story Of IAS Topper Dilip Pratap Singh Shekhawat: जब किसी के अंदर कुछ करने की लग्न और जज्बा होता है तो रास्ते में आने वाली बाधा, उसके लिए समस्या न होकर अवसर में तब्दील हो जाती है. हम बात कर रहे हैं जोधपुर, राजस्थान के दिलीप प्रताप सिंह शेखावत की, जिनके पास न इस क्षेत्र का कोई अनुभव था न ही परिवार में कोई गाइड करने वाला. लेकिन दिलीप ने न केवल यह एकदम नया और अत्यधिक कठिन रास्ता चुना बल्कि टॉपर भी बनें. हालांकि यह सफलता पाने के लिए दिलीप को तीन अटेम्प्ट्स देने पड़े लेकिन वे कभी हारकर पीछे नहीं हटे. अंततः तीसरे प्रयास में दिलीप ने ऑल इंडिया रैंक 72 के साथ टॉप किया और अपना बचपन का कलेक्टर बनने का सपना पूरा किया. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में दिलीप ने परीक्षा के तैयारी के लिए खास टिप्स दिए.
इंजीनियर हैं दिलीप –
यूपीएससी सीएसई के क्षेत्र में आने के पहले दिलीप ने केमिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएशन किया है. स्नातक पूरा करने के बाद उन्होंने परीक्षा की तैयारी आरंभ की और अपनी तरफ से पूरी मेहनत करने के बावजूद किसी न किसी स्टेज पर आकर रुक गए. हर हार के बाद निराशा होती थी लेकिन दिलीप ने कभी इनके सामने घुटने नहीं टेके. पहले प्रयास में उनका प्री में ही सेलक्शन नहीं हुआ और दूसरे प्रयास में वे मेन्स तक आकर रुक गए. बुरी बात यह थी कि दोनों बार दिलीप बहुत कम अंतर से फेल हुए. हालांकि उन्होंने इनका रोना बहुत दिन नहीं रोया और तीसरे प्रयास में सारे स्टेजेस पार करते हुए सीधे टॉपर बने. इस प्रकार दिलीप का आईएएस बनने का सपना साल 2018 में पूरा हुआ.
यहां देखें दिलीप प्रताप सिंह शेखावत द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू -
माध्यम और बैकग्राउंड को लेकर न हों चिंतित –
दिलीप कहते हैं कि जब इस परीक्षा की तैयारी की बात आती है तो कैंडिडेट्स के मन में अक्सर आता है कि वे हिंदी मीडियम चुनें या इंग्लिश. खासकर हिंदी मीडियम वालों के लगता है कि इस माध्यम से वे सफल नहीं हो सकते. दिलीप साफ करते हैं कि मीडियम का सफलता में कोई रोल नहीं होता. हालांकि कुछ आधारभूत समस्याएं हैं जिनके बारे में मीडियम चुनते वक्त सोच लेना चाहिए. जैसे हिंदी मीडियम में कई बार किताबें नहीं मिलती तो कई बार कुछ विषयों पर मैटीरियल नहीं मिलता. जैसे कुछ विदेशी थिंकरों ने कई महत्वपूर्ण टॉपिक्स पर जो कहा है वह हिंदी में तलाशना मुश्किल होता है. इनके अलावा अंक मिलने में या इंटरव्यू पैनल द्वारा आपके साथ कोई भेदभाव नहीं होता.
यही बात बैकग्राउंड पर भी लागू होती है. आप किस बैकग्राउंड के हैं या आपने किस माध्यम से शिक्षा पायी है जैसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप मेहनत करेंगे तो जरूर सफल होंगे.
ऑप्शनल है जरूरी –
दिलीप बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि इस एग्जाम में अच्छी रैंक लाने के लिए ऑप्शनल की बहुत इंपॉर्टेंस होती है. इसलिए इसका चुनाव बहुत सोच-समझकर करें. कुछ बिंदु दिमाग में रखें जिनमें सबसे पहले है इंट्रेस्ट. हमेशा अपनी रुचि का विषय चुनें. जिस विषय से ग्रेजुएशन किया है, उसे भी चुन सकते हैं. पिछले साल के पेपर उठाकर देखें ताकि सब्जेक्ट की और नॉलेज मिले. यह पता करें कि इस ऑप्शनल में लोगों के कैसे अंक आते हैं यानी विषय स्कोरिंग है या नहीं. ऐसी छोटी लेकिन जरूरी बातों के बारे में पता लगाने के बाद आप अपना ऑप्शनल चुनें. कोशिश करें कि एक बार चुनने के बाद उसे ही अंत तक कॉन्टीन्यू करें.
कोचिंग और दिल्ली जाना नहीं है जरूरी –
एक और अहम प्रश्न जो कैंडिडेट्स के मन में आता है वह है कोचिंग के चुनाव को लेकर. इस प्रश्न का जवाब देते हुए दिलीप कहते हैं कि अगर आपके पास सही गाइडेंस है तो कोचिंग ज्वॉइन करने की कोई जरूरत नहीं है. ये गाइडेंस कहीं से भी मिल सकता है, किसी सीनियर से, टीचर से या इंटरनेट से. अगर राह पता है तो उसमें अपने भरोसे ही निकलिए क्योंकि यूपीएससी पूरी तरह सेल्फ स्टडी का गेम है. कोचिंग वाले केवल आपको रास्ता बता सकते हैं, चलना आपको खुद ही है.
यही बात दिल्ली जाने पर भी लागू होती है. अगर आप दिल्ली नहीं जा सकते तो इसमें परेशानी की कोई बात नहीं है क्योंकि आजकल इंटरनेट का जमाना है और हर चीज एक क्लिक पर उपलब्ध है. आप नेट से वह सबकुछ पा सकते हैं जो आपको दिल्ली जाने पर मिलेगा.
अंत में बस इतना ही कि कई बार यह जर्नी बहुत लंबी हो जाती है इसलिए खुद को मोटिवेटेड रखें और इसके लिए टॉपर्स के इंटरव्यू और ब्लॉग देखें. निगेटिव लोगों से दूर रहें और आप यकीनन सफलता पाएंगे.
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