Success Story Of IAS Topper Rehana Bashir: जम्मू और कश्मीर के पूंछ जिले की रेहाना बशीर यूपीएससी के क्षेत्र में आने के पहले डॉक्टरी की डिग्री ले चुकी हैं. यही नहीं मेडिकल साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद रेहाना ने पीजी के लिए होने वाले नीट एग्जाम का एंट्रेंस भी दे दिया था लेकिन तभी उनका विचार बदला और नीटी पीजी एंट्रेंस में सेलेक्ट होने के बावजूद वे काउंसलिंग के लिए नहीं गईं.
यह वो समय था जब रेहाना यूपीएससी और नीट पीजी के बीच में चुनाव को लेकर कंफ्यूज थी पर अंततः उनका विचार बदला और उन्होंने मेडिकल की फील्ड को छोड़कर यूपीएससी ज्वॉइन करने का फैसला लिया. इस फैसले में उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया. इस प्रकार रेहना भी उन कैंडिडेट्स में से आती हैं जो कुछ समय निकल जाने के बाद अपना अल्टीमेट ऐम चुन पाते हैं और उसमें सफलता भी हासिल करते हैं. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में रेहाना ने अपने सफर के बारे में खुलकर बात की.
क्यों आया यूपीएससी का ख्याल –
रेहाना और उनके भाई जोकि यूपीएससी पास करके आईआरएस सेवा में हैं का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं बीता. दोनों बच्चे काफी छोटे थे जब उनके पिता का निधन हो गया था. ऐसे में इन दोनों का बचपन काफी संघर्ष भरा रहा. मां ने बच्चों की जिम्मेदारी उठायी और उनसे पढ़ाई में अच्छा करने का वादा लिया.
घर की स्थिति को समझते हुए रेहाना हमेशा पढ़ाई को लेकर गंभीर रही. इसी का परिणाम था कि उन्होंने पहले मेडिकल की यूजी और फिर पीजी परीक्षा पास कर ली थी. अपने ग्रेजुएशन के दौरान ही रेहाना का वास्ता ऐसी कम्यूनिटीज से पड़ा जहां सुख-सुविधाएं तो छोड़ो बेसिक संसाधन भी उपलब्ध नहीं थे. उनकी हालत देखकर ही रेहाना के मन में एक ऐसे क्षेत्र में कैरियर बनाने की इच्छा जागी जिसकी मदद से दूसरों की सहायता की जा सके.
यहां देखें रेहाना बशीर द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू -
दोगुने प्रेशर के बीच हुईं असफल -
रेहाना एक तरफ नीट परीक्षा का एंट्रेंस पास करने के बावजूद उसे बीच में ही छोड़कर आयी थी दूसरी तरफ यूपीएससी की प्री परीक्षा में भी उनका सेलेक्शन नहीं हुआ. रेहाना मेडिकल लाइन बीच में ही छोड़ने का प्रेशर महसूस कर ही रही थी और दूसरी तरफ यहां पहले ही कदम पर बाहर हो गईं थी. इस समय उनके भाई और मां ने उन्हें हिम्मत बंधायी और रेहाना दूसरे प्रयास के लिए दिन-रात तैयारियों में जुट गईं.
इस दौरान भी उन्होंने कई तरह की समस्याओं का सामना किया. वे बताती हैं कि जहां वे रहती हैं वहां पर इंटरनेट की बहुत समस्या है, कभी नेट आता है कभी चला जाता है. ऐसे में वे मैटीरियल की हार्ड कॉपी निकालकर रख लेती थीं ताकि नेट न हो तब भी काम चल जाए.
संघर्ष अभी बाकी था –
इतनी परेशानियों के बाद भी रेहाना का संघर्ष कम नहीं हुआ. मेन्स परीक्षा के पहले रेहाना की मां की एक बड़ी सर्जरी हुई थी, इस समय उनके भाई भी ट्रेनिंग के लिए गए हुए थे और घर पर केवल वे दोनों ही थे. रेहाना को इस समय घर का काम, परीक्षा की तैयारी और मां की देखभाल सबकुछ अकेले करना पड़ा. इतने के बावजूद रेहाना ने हिम्मत नहीं हारी.
यही नहीं रेहाना की किस्मत अच्छी थी कि उन्होंने इंटरव्यू के लिए एक दिन पहले दिल्ली का रुख कर लिया था वरना उनके साक्षात्कार के समय ही सर्जिकल स्ट्राइक के कारण सभी एयरबेस बंद कर दिए थे. अगर वे समय से पहले नहीं निकलती तो उनका इंटरव्यू छूट जाता और एक साल और बर्बाद हो जाता. हालांकि रेहाना की कहानी से पता चलता है कि अगर इंसान खुद हिम्मत करता है तो ईश्वर भी उसका साथ देते हैं.
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