Success Story Of IPS Indrajeet Mahatha: इंद्रजीत महथा उन शख्सियतों में से हैं, जिन्हें देखकर मन आश्चर्य से भर उठता है कि इतनी गरीबी, इतने अभाव में रहने वाला बच्चा कैसे देश की सबसे बड़ी और कठिन परीक्षा पास कर सकता है. जिस जगह के इंद्रजीत हैं, वहां शायद ही इस पद के बारे में कभी किसी ने सुना हो. पिछले पचास-साठ सालों से वहां से कोई आईएएस ऑफिसर नहीं बना. जब ऐसी जगह का बेटा जबरदस्त अभावों के बीच रहकर अपने माता-पिता की मजबूरी को पल-पल देखकर, इतनी बड़ी सफलता पाता है तो उसे जानने वाले हर शख्स का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.


एक किसान के लिए उसके खेत औलाद जैसे होते हैं. जिन्हें सालों सींचा, जिनकी देखरेख की, उन्हें बेचने का निर्णय लेना आसान नहीं होता पर इंद्रजीत के पिता प्रेम कुमार सिंहा ने बेटे की पढ़ायी के लिए इन खेतों को भी बेच दिया. वो खेत जो उनकी आजीविका का एकमात्र साधन थे पर पिता ने कुछ नहीं सोचा सिवाय अपने बेटे को हर वो जरूरी संसाधन मुहैया कराने के जिसकी जरूरत यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिये पड़ती है. इंद्रजीत ने भी अपने पिता के हर त्याग की कीमत समझी और साल 2008 में दूसरे प्रयास में देश की सबसे प्रतिष्ठत परीक्षा पास कर ली. उन्हें सौवां रैंक मिला.


मिट्टी का घर और उसमें भी दरारें


इंद्रजीत महथा जिस घर में रहते थे, वह मिट्टी और खपरैल से बना था. एक समय में उस घर में भी दरारें आ गयीं. मजबूरी में उनकी मां और दोनों बहनों को घर छोड़कर मामा के घर जाना पड़ा. इंद्रजीत नहीं गये, क्योंकि उनकी पढ़ायी का नुकसान होता. एक साक्षात्कार में बात करते हुये इंद्रजीत बताते हैं कि कैसे केवल एक आदमी के सहयोग से उनके पिताजी ने खुद घर बनाया. वे ईंटें देते थे, पिताजी कन्नी लेकर प्लास्टर करते थे. ये तो थे घर के हालात अब अगर बात करें आईएएस की तो इंद्रजीत की बुक में एक पाठ था जिला प्रशासन. उसे पढ़कर इंद्रजीत ने अपने शिक्षक से पूछा कि जिले का सबसे बड़ा अफसर कौन होता है. शिक्षक ने जवाब दिया डीएम. इसके साथ ही यह भी बताया कि डीएम के अधिकार क्या-क्या होते हैं? बस तभी से इंद्रजीत ने तय कर लिया कि वे भी बड़े होकर डीएम बनेंगे. उस समय शायद किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि यह छोटा सा बच्चा धुन का इतना पक्का होगा कि सच में एक दिन यह परीक्षा पास करेगा.


 पिता थे किडनी बेचने को भी तैयार


इंद्रजीत अपनी माली हालत का जिक्र करते हुये कहते हैं कि इतने पैसे भी नहीं होते थे कि नये एडीशन की किताबें खरीद सकें. पुराने एडीशन की किताबें जो लोग सामान्यतः रद्दी में बेचते हैं, खरीदकर इंद्रजीत ने अपनी तैयारी करी. वे बताते हैं कि ग्रेजुएशन के बाद वे दिल्ली आये, जहां उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करना आरंभ किया. यहां का खर्च उठाने के लिए पिता ने करीब 80 प्रतिशत खेत बेच दिये थे. इंद्रजीत को इस बात का अहसास था कि ऐसे हालातों में सफलता के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है.


जब पहली बार में उनका चयन नहीं हुआ तो उनके पिताजी ने उन्हें डांटा नहीं बल्कि उनकी हिम्मत बंधाते हुये बोले, ''अभी तो केवल खेत बिका है, तुम्हें पढ़ाने के लिए मैं अपनी किडनी तक बेच सकता हूं, तुम पैसे कि चिंता मत करो और जितना पढ़ना है पढ़ों.'' अपने पिता के मुंह से ऐसे शब्द सुनने के बाद इंद्रजीत नतमस्तक हो गये और उनका सफलता पाने का इरादा पहले से भी कहीं ज्यादा अटल हो गया. आखिरकार इंद्रजीत ने अपने दूसरे प्रयास में सफलता हासिल कर ही ली.


दूसरे कैंडिडेट्स के लिए टिप्स –


इंद्रजीत कहते हैं, ''इच्छा करने से कुछ नहीं होता, इरादे से होता है. इच्छा तो हर कोई करता है पर जो मजबूत इरादे रखता है, उसे ही सफलता मिलती है.'' वे आगे कहते हैं कि संघर्ष, सफलता के लिये बहुत आवश्यक है. बिना संघर्ष के सफलता पाने की इच्छा, तीव्र नहीं होती. संघर्ष को दुख नहीं समझना चाहिए, क्योंकि दुख तो वह होता है, जिसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं पर संघर्ष आपको सुदृढ़ बनाता है.''


वे कहते हैं कि उनका टूटा मकान, बिके हुए खेत, गरीबी जैसे संघर्ष अगर उनकी जिंदगी में नहीं होते तो शायद वे कभी सफलता के लिये इतने दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं हो पाते. परिश्रम करें क्योंकि परिश्रम की जगह कोई नहीं ले सकता और दुनिया की ऐसी कोई परीक्षा नहीं जो कठिन परिश्रम, धैर्य और मजबूत इरादों के दम पर पास न की जा सके.


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