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IAS Success Story: तमाम तानों और उलाहनों के बीच खुद पर विश्वास करके ज़ेबा ने किया यूपीएससी में टॉप

ज़ेबा के आसपास का माहौल ऐसा नहीं था जहां 24-25 साल की अविवाहित लड़की घर पर बैठकर पढ़ाई करे. लेकिन ज़ेबा और उनके परिवार ने कभी दूसरों की बातों की परवाह नहीं की और नज़र केवल लक्ष्य पर रखी.

Success Story Of IAS Topper Jameel Fatima Zeba: हैदराबाद की ज़मील फातिमा ज़ेबा जिस माहौल से आती हैं, वहां लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने-लिखाने का चलन नहीं है. उनके यहां कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती है और करियर नाम का कोई शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं होता. ऐसे माहौल की ज़ेबा ने न केवल शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने का मन बनाया बल्कि एक ऐसी परीक्षा को पास करने का ऐम रखा, जिसमें अच्छे-अच्छे सफल नहीं हो पाते. ज़ेबा के इस फैसले से उनके परिवार में जैसे खलबली सी मच गयी. सबको लगा यह लड़की कैसा निर्णय ले रही है. जिस उम्र में इसकी शादी हो जानी चाहिए उस उम्र में यह एक नया लक्ष्य बनाकर उसे पाना चाहती है. खैर ज़ेबा और उनके माता-पिता को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वे अपनी बेटी के इस निर्णय में हमेशा उसके साथ खड़े रहे.

बचपन का सपना नहीं था आईएएस 

ज़ेबा उन कैंडिडेट्स में से नहीं आती हैं जो बचपन में ही सिविल सर्विसेस में जाने की योजना बना लेते हैं. हां पर ज़ेबा को हमेशा से एक स्टेबल, रिस्पेक्टेबल और ऐसी जॉब चाहिए थी जो उन्हें खुशी और संतुष्टि दे सके. वे समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं और उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई को लेकर जो इतने ताने सुने थे, वे ऐसे लोगों को जवाब देना चाहती थीं. हैदराबाद, मणिकोण्डा की ज़ेबा ने जब अपना कॉलेज खत्म किया उस समय उन्होंने फैसला लिया कि जिस तरह की जॉब वे चाह रही हैं वो केवल एक ही है सिविल सर्विसेस. सेंट फ्रांसिस कॉलेज से एमबीए करने के बाद ज़ेबा ने यूपीएससी की तैयारी करने का मन बनाया. इसके लिए उन्होंने कोचिंग ज्वॉइन कर ली और तैयारियों में लग गईं.

आसान नहीं था सफर 

ज़ेबा को पता था कि यूपीएससी का यह सफर आसान नहीं होगा और उन्होंने इसके लिए खुद को तैयार कर लिया था. पर कई बार आप जितना सोचते हो उससे कहीं ज्यादा संघर्ष आपकी प्रतीक्षा कर रहा होता है. ज़ेबा के साथ भी ऐसा ही हुआ. वे दिन-रात मेहनत कर रही थीं फिर भी उनका चयन नहीं हो रहा था. इसी तरह प्रयास करते और परीक्षा देते उन्हें दो साल हो गए फिर भी सेलेक्शन नहीं हुआ. इस बीच आसपास वालों और परिवार के बाकी लोगों के तानें भी बढ़ने लगे जिनके लिए एक 24-25 साल की अविवाहित लड़की घर में बैठे एक ऐसे मुकाम को पाने की कोशिश कर रही थी जो नामुमकिन सा लगता था. खैर ज़ेबा एक साक्षात्कार में कहती हैं कि जब मेरी तैयारी के दिनों में निराशा होती थी तो मैंने यह लाइन्स कहीं पढ़ी थी, जिन्हें मैं याद कर लेती थी, मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौंसलों से उड़ान होती है. ये लाइनें उनकी हिम्मत बढ़ाती थीं और वे दुनिया की परवाह किए बिना फिर दिलों-जाने से तैयारी में जुट जाती थीं. रही बात माता-पिता की जो किसी के भी सबसे बड़े संबल होते हैं तो वे भी हमेशा अपनी बेटी के साथ खड़े रहे खासकर ज़ेबा अपने पिता को इस सफलता का ज्यादा क्रेडिट देती हैं. ज़ेबा ने साल 2018 में 62वीं रैंक के साथ 25 साल की उम्र में यह परीक्षा पास की.

खुद पर विश्वास सबसे जरूरी है

ज़ेबा बताती हैं जब दूसरे लगातार यह कह ही रहे हों कि तुमसे नहीं होगा ऐसे में आपका मन क्या कह रहा है यह बहुत जरूरी है. कोई कुछ भी कहे पर आपको अपने सपने पर, अपने आप पर विश्वास होना चाहिए. जब खुद पर यह अटूट भरोसा होता है तभी सफलता मिलती है. तैयारी के दौरान बहुत से ऐसे पल आते हैं जब कैंडिडेट को लगता है कि कहीं गलत निर्णय तो नहीं ले लिया, मैं सही तो कर रहा हूं न? ज़ेबा कहती हैं ऐसे ख्याल आना या लो फील होना बिल्कुल नॉर्मल है लेकिन ऐसे मूड से निकल न पाना कतई नॉर्मल नहीं है. ऐसे ख्यालों से परेशान न हों पर इनसे बाहर निकलने की कोशिश करें. दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं जो मेहनत और लग्न से पाया न जा सके. वे कहती हैं मेरे इस सफर ने मुझे निखारा है. जो ज़ेबा यूपीएससी के पहले साल में थी वो आज बहुत बदल गयी है. बहुत कुछ सीखा है उन्होंने इन सालों में जो हर लिहाज़ से पॉजिटिव है. कहने का मतलब यह है कि अगर आपको सफलता मिलने में समय लग रहा है तो घबरायें नहीं, ये जो साल आप तैयारी पर खर्च कर रहे हैं, ये आपकी बेहतरी पर ही खर्च हो रहे हैं. ये आपको एक व्यक्ति के तौर पर और परिपक्व बनाएंगे.

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