Success Story Of IAS Topper Nishant Jain: हिंदी मीडियम के निशांत जैन के लिए यूपीएससी का यह सफर आसान नहीं था पर उन्होंने हिंदी को हमेशा अपनी ताकत समझा और अंत में इसी भाषा के साथ यूपीएससी परीक्षा में टॉप भी किया. जानते हैं निशांत जैन के संर्घष की कहानी. निशांत मेरठ के रहने वाले हैं और एक बहुत ही साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनकी शुरुआती शिक्षा से लेकर डिग्री कॉलेज तक की पूरी पढ़ाई हिंदी मीडियम से हुई. निशांत अपने हिंदी के चुनाव को लेकर एकदम क्लियर थे और उन्हें कभी भी इस बात को लेकर हीन-भावना नहीं रही. वे मानते थे कि ज्ञान होना जरूरी है भाषा कोई भी हो यह मायने नहीं रखता. इसी मंत्र और कांफिडेंस के साथ उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई की.
जिले में किया टॉप –
निशांत मेरठ की एक छोटी सी जगह में मिडिल क्लास ज्वॉइंट फैमिली में रहते थे. वे बचपन से ही पढ़ाई में बहुत ब्राइट थे. हर क्लास में उनके अंक बहुत अच्छे आते थे. यही नहीं क्लास 12वीं में उनके जिले में सबसे अधिक अंक थे पर अपने सपने को लेकर क्लियर निशांत ने यूपीएससी की राह पर चलने के लिए ह्यूमैनिटीज़ का चुनाव किया. निशांत कहते हैं उस समय इस बात का भी जोर था कि आर्ट्स के स्टूडेंट्स की आईएएस बनने की संभावना अधिक रहती है. इसके साथ ही उनके साथ बचपन में भी कुछ ऐसी घटनाएं घटी थीं जिनके कारण वे छोटी उम्र से ही इस क्षेत्र में आना चाहते थे. अंततः निशांत ने हिंदी के साथ अपना यह सफर जारी रखा. वे कहते हैं जब मैं डैफ या डिटेल्टड एप्लीकेशन फॉर्म भर रहा था तो पूरे फॉर्म में न जाने कितनी बार हिंदी शब्द आया क्योंकि प्राइमरी से लेकर डिग्री कॉलेज यहां तक कि बाद की नौकरियों में भी हर जगह हिंदी ही थी. बीए, एमए करने के बाद निशांत ने बहुत सी परीक्षाएं दीं और अपना अनुभव शेयर करते हुए वे कहते हैं कि मैंने सरकारी नौकरी के लगभग हर समूह में काम किया है, ग्रुप सी फिर ग्रुप बी और अंततः अब ग्रुप ऐ. निशांत क्लास दस के बाद से ही जॉब करने लगे थे क्योंकि उन्होंने हमेशा अपना खर्च खुद उठाने में यकीन किया. यही नहीं यूपीएससी परीक्षा की तैयारियों के दौरान भी वे जॉब में थे.
जब मिली पहली असफलता –
निशांत कहते हैं, उन्हें बचपन से पढ़ाई और एक्सट्राक्यूरीकुलर एक्टीविटीज़ दोनों में टॉप करने की आदत थी. ऐसे में जब यूपीएससी के पहले प्रयास और साथ ही में उसी साल दिए यूपी पीसीएस के पहले अटेम्पट, दोनों में वे असफल हुए तो यह हार बर्दाशत नहीं कर पाए. इस समय वे काफी निराश हो गए थे. लेकिन निशांत ने हार नहीं मानी जैसा कि वे कहते हैं कि उनकी पसंदीदा गीत है रुक जाना नहीं, तू कहीं हार के.... इसी की तर्ज पर उन्होंने कभी जीवन में रुकना नहीं सीखा. चाहे जो भी हालात हों, वे निरंतर प्रयास करते रहे और यही सलाह वे दूसरे कैंडिडेट्स को भी देते हैं कि चाहे जो हो तैयारी के दौरान निरंतरता बनी रहनी चाहिए.
थोड़ी अंग्रेजी भी जरूरी है –
हिंदी पर जबरदस्त कमांड रखने वाले निशांत कहते हैं कि अंग्रेजी का थोड़ा ज्ञान होना भी आवश्यक है इसलिए इसे पूरी तरह इग्नोर न करें. तैयारी के दौरान कुछ वेबसाइट्स पर अच्छे नोट्स केवल इंग्लिश भाषा में थे, इसलिए अगर निशांत को इस भाषा का थोड़ा भी ज्ञान नहीं होता तो उन्हें समस्या होती. वे कहते हैं आंसर अगर प्रभावी तरीके से लिखा गया है और सही है तो अंक मिलते ही मिलते हैं फिर चाहे आपका माध्यम कुछ भी हो. उन्हें अपने हिंदी माध्यम के होने पर गर्व है. निशांत कहते हैं कि यह साइकोलॉजी में भी कहा गया है कि अपनी मातृभाषा में हम जितने अच्छे से कोई उत्तर लिख सकते हैं, उतने अच्छे से दूसरी भाषा में नहीं लिख सकते इसलिए अगर आप हिंदी के हैं तो उसे अपनी ताकत बनाएं. बड़े बोल बोलने वाले कैंडिडेट्स को निशांत की एक और सलाह है कि अपने आप को हिंदी का प्रगाढ़ ज्ञानी बताने से पहले भाषा के चारों पहलुओं यानी बोलना, लिखना, पढ़ना और सुनना पर बराबर और अच्छे से पकड़ बना लें. मात्रा की गलतियां जैसी आम मिस्टेक्स न करें. अंत में निशांत यही कहते हैं कि जो खुद पर विश्वास करते हैं और बिना रुके निरंतर प्रयास करते हैं उन्हें सफलता जरूर मिलती है. कई बार इसमें देर लग सकती है पर सही दिशा में किए गए प्रयास खाली नहीं जाते.
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