Success Story Of IAS Nitish Kumar Singh: पलामू के पांकी ब्लॉक के नीमाचक पथरा गांव के नीतीश कुमार सिंह उन कैंडिडेट्स के लिए बहुत अच्छा उदाहरण हैं, जिन्हें लगता है कि यूपीएससी या किसी भी दूसरी बड़ी परीक्षा पास करने के लिये महानगरों का रुख करना बहुत जरूरी है. छोटे शहर में रहकर तैयारी के लिए जरूरी संसाधन नहीं जुटाए जा सकते. जबकी साल 2017 के टॉपर नीतीश मानते हैं कि किसी भी परीक्षा की तैयारी के लिए सेल्फ स्टडी से अच्छा कुछ नहीं. यह सेल्फ स्टडी अगर घर के प्यारभरे और आरामदायक माहौल में हो तो प्रोडक्टिविटी और बढ़ जाती है. घर से दूर रहकर तैयारी करने का निर्णय हर किसी का निजी होता है पर अगर परिवार का सहयोग हो तो घर से पढ़ाई करने के अनगिनत फायदें हैं जहां आपको किसी चीज़ की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं केवल और केवल पढ़ाई पर फोकस करना होता है. नीतीश ने भी इन्हीं कारणों से अपना होमटाउन चुना और सफल होकर यह साबित कर दिया की शहर बड़े या छोटे नहीं होते, इरादे बड़े या छोटे होते हैं.
नीतीश की प्रारंभिक शिक्षा –
नीतीश की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा भवनाथपुर में हुई. इसके बाद क्लास 12 की पढ़ाई के लिए वे बोकारो चले गए. उच्च शिक्षा के लिये नीतीश ने धनबाद का रुख किया और इंडियन स्कूल ऑफ माइनिंग से उन्होंने बीटेक किया. नीतीश के पिताजी प्रयाग सिंह बोकारो स्टील प्लांट में नौकरी करते थे और माता जी इंदिरा देवी हाउसवाइफ हैं. नीतीश की चार बहनें हैं और चारों नीतीश से बड़ी हैं, वे सबसे छोटे हैं. नीतीश हमेशा से पढ़ाई में बहुत अच्छे थे और सबसे बढ़िया अंक लाते थे. नीतीश ने दसवीं 97 प्रतिशत अंकों के साथ और बारहवीं 90 प्रतिशत अंको के साथ पास की. अपने कॉलेज के दिनों में वे बच्चों को पढ़ाया करते थे. टीचिंग उनकी हॉबी है और उन्हें बच्चों को पढ़ाना बहुत पसंद है. गरीब बच्चों को ट्यूशन देने के दौरान जब उन्होंने आसपास नज़र दौड़ायी तो पाया कि वहां बहुत असंगतियां हैं. बेहद गरीबी है, जिसके कारण चाहकर भी बच्चे पढ़ नहीं पाते. इसी समय उन्हें ख्याल आया की वे किसी ऐसे कैरियर को चुनेंगे जिसकी सहायता से वे समाज के इस तबके की कुछ मदद कर सकें. यहीं से उन्होंने तय किया कि वे यूपीएससी की परीक्षा देंगे ताकि समाज के लिये कुछ कर सकें.
स्थितियां थी प्रतिकूल –
नीतीश ने पहले धनबाद और उसके बाद रांची में रहकर तैयारी की. इस दौरान उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा पर असफलता से डरकर उन्होंने कभी अपने कदम पीछे नहीं किये. प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदला. नीतीश एक साक्षात्कार में कहते हैं कि युवाओं के साथ आमतौर पर यह समस्या होती है कि वे तैयारी शुरू तो बहुत जोश के साथ करते हैं पर समय बीतने के साथ-साथ उनका जोश ठंडा पड़ जाता है. चूंकि यह परीक्षा बहुत धैर्य और संयम मांगती है, यहां जल्दबाजी दिखाने से कोई लाभ नहीं होता. पहले कम से कम एक से डेढ़ साल की धैर्यपूर्वक तैयारी उसके बाद परीक्षा और अगर चयन न हो तो फिर दो से तीन साल का इंतजार. इस प्रकार इंस्टेंट रिजल्ट की चाह रखने वालों के लिये यह क्षेत्र नहीं है. नीतीश के खुद के साथ भी यही हुआ. पूरी ईमानदारी से तैयारी के बावजूद कुछ न कुछ कमी रह जाती थी और लगातार दो बार नीतीश का चयन नहीं हुआ. पर ऐसे में भी नीतीश ने हिम्म्त नहीं हारी और लगे रहे. अंततः तीसरी बार में साल 2017 में नीतीश का न केवल चयन हुआ बल्कि उन्होंने 23वीं रैंक भी पायी. इस प्रकार नीतीश की सालों की मेहनत और धैर्य का परिणाम उन्हें मिला.
इंटरनेट पर है सबकुछ, क्यों करें बड़े शहर का रुख –
नीतीश कहते हैं बड़े शहर जरूर जाइये लेकिन सिर्फ घूमने के लिये. एक बार देखकर आइये कि कांपटीशन किनसे है किस लेवल का है लेकिन वहां से पढ़ना जरूरी नहीं, यह आपकी इच्छा पर है. आज के समय में इंटरनेट पर एक्स, वाई, जेड सबकुछ उपलब्ध है. एक अच्छे इंटरनेट कनेक्शन के माध्यम से आप वो सबकुछ पा सकते हैं जो इस परीक्षा को पास करने के लिये आवश्यक होता है. इत्मीनान से सिलेबस देखिये, किताबों का चयन करिये और सही स्ट्रेटजी के साथ सेल्फ स्टडी में अधिकतम समय लगाइये. नीतीश के अनुसार बस यही सफलता की कुंजी है. उन्होंने खुद भी यही किया. नीतीश ने सारा स्टडी मैटीरियल इकट्ठा किया और पूरी ईमानदारी से तैयारी में लग गये. दो बार असफल होने के बाद भी उन्होंने आस नहीं छोड़ी और आखिरकार अपना सपना पूरा किया.
नीतीश के सफर से यही सीख मिलती है कि स्थितियां कभी भी आपके मुताबिक नहीं होंगी, आपको उनको अपने मुताबिक बनना पड़ता है. धैर्य और मेहनत की जगह कोई नहीं ले सकता. असफल होने पर निराश होने के बजाय दोगुनी मेहनत से जुट जायें सफलता जरूर मिलेगी. अगर इरादा पक्का हो तो कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं.
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