IPS Success Story: मां बनाती थी दूसरों के घरों में रोटियां और बेटा 22 साल की उम्र में बन गया IPS ऑफिसर
एक कक्षा की फीस जाने के बाद यह नहीं पता होता था कि अगली कक्षा की फीस का इंतजाम कैसे होगा पर सफीन इन दुश्वारियों से कभी रुके नहीं.
Success Story Of IPS Safin Hasan: सफीन हसन के बचपन से लेकर जवानी तक के सफर को करीब से जानें तो पता चलता है कि कदम-कदम पर न जाने कितनी मुसीबतें थीं. न भरपेट खाना, न कोई फाइनेंशियल सिक्योरिटी और तो और हमेशा अव्वल आने वाले सफीन की फीस भरने के लाले पड़ जाते थे पर हमेशा मुस्कुराने वाले सफीन को जिंदगी से कोई शिकायत नहीं. एक साक्षात्कार में बहुत ही सहजता से मुस्कुराते हुये सफीन कहते हैं कि अगर उनके जीवन में ये सब परेशानियां न होती तो शायद वे जहां हैं, वहां नहीं पहुंच पाते. सफीन का सीधा हिसाब है, जितनी कठिनाइयां, उतना तगड़ा मोटिवेशन. इसी तर्ज़ पर सफीन आगे बढ़ते गये और किस्मत उनके हौंसले के आगे घुटने टेकती गयी.
प्राइमरी कक्षा में ही तय कर लिया था कि बनना है ऑफिसर –
गुजरात, सूरत के एक छोटे से गांव कानोदर के सफीन की शुरुआती शिक्षा वहीं के सरकारी स्कूल में हुयी. एक दिन उनके स्कूल में किसी कार्यक्रम में डीएम का आना हुआ. उनके रुतबे और शान को देखकर सफीन ने अपनी मौसी से पूछा कि यह कौन हैं? मौसी ने बच्चे को समझाने के लिये उसी प्रकार उत्तर दे दिया कि बस समझ लो कि ये जिले के राजा हैं. सफीन के बाल मन में यह बात बस गयी. वे बोले कैसे बनते हैं डीएम और पता चला एक परीक्षा पास करके, बस उसी दिन सफीन ने तय कर लिया कि वे भी बड़े होकर ऑफिसर बनेंगे. और यह सफीन का कोई बचपना नहीं था. ये वो फैसला था जो कभी नहीं बदला. आने वाले सालों में उनके दोस्त, रिश्तेदार यहां तक कि गांव वाले भी जान चुके थे कि सफीन अफसर बनेंगे.
जिनसे कोई रिश्ता नहीं, वे बने मसीहा –
सफीन बचपन से जिद्दी थे. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वो जो ठान लेता था वह पूरा करके ही दम लेता था. पढ़ायी में हमेशा से श्रेष्ठ सफीन की शुरुआती शिक्षा तो जैसे-तैसे पूरी हो गयी पर जब ग्यारहवी में उन्होंने साइंस लेनी चाही तो गांव के सरकारी स्कूलों में यह सुविधा नहीं थी. इतना पैसा नहीं था कि कोई पब्लिक स्कूल चुना जा सके. तभी वहां एक नया पब्लिक स्कूल खुला, जिसमें सफीन के पुराने शिक्षक भी थे. वे सफीन की पढ़ायी के कायल थे. उन्होंने सफीन को वहां पढ़ने का मौका दिया और फीस के बोझ से मुक्ति दिलायी. इसके बाद सफीन ने एनआईटी से इंजीनियरिंग की. अगले स्टेप में वे दिल्ली जाकर सिविल सर्विसेस की तैयारी करना चाहते थे पर फिर से समयस्या वही थी, पैसा. तभी सफीन के गांव के एक परिवार जिन्हें सफीन अपने दूसरे माता-पिता का दर्जा देते हैं, ने आगे बढ़कर सफीन का सारा खर्च उठाया और अपने पैसे पर सफीन को दिल्ली तैयारी के लिये भेजा. दरअसल सोशल वर्क के दौरान सफीन इनके संपर्क में आये थे. तभी हुसैनभाई पोलारा और ज़रीनाबेन पोलारा ने सफीन में संभावना का असीम समंदर देख लिया था. अंततः हुआ भी वही, जिनसे कोई रिश्ता नहीं उनके मदद करने से सफीन का मोटिवेशन और हाई हो गया और वे अपने सपने के प्रति और कमिटेड हो गये.
मां-बाप ने नहीं छोड़ी कोई कसर –
सफीन के पिता मुस्तफा हसन और मां नसीम बानो दोनों एक डायमंड यूनिट में काम करते थे. कुछ सालों बाद अचानक इनका काम छूट गया और घर में पैसे की घनघोर समस्या आ गयी पर साहस जैसे सफीन में उनके मां-बाप से ही आया है. दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और सफीन के पिता ने इलेक्ट्रीशियन का काम शुरू कर दिया और मां शादी-ब्याह में रोटियां बनाने के ऑर्डर लेने लगीं. दोनों बस चाहते थे कि कैसे भी सफीन की पढ़ायी न रुके. दो भाइयों में बड़े सफीन ने भी मां-बाप का जहां संभव था सहयोग किया. वे कहते हैं मेहनत और नेकी का पाठ उन्होंने अपने माता-पिता से ही सीखा है. उनके पिता कहते थे कि नियत साफ हो तो सब काम होते हैं और सफीन के साथ भी ऐसा ही हुआ. पता नहीं कहां-कहां से आकर लोग उनकी मदद कर देते थे और काम बन जाता था.
धुन के पक्के सफीन ने एक्सीडेंट के बावजूद दी परीक्षा –
सफीन को जहां किसी भी हाल जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी वहीं जिंदगी भी उनके जमकर इम्तिहान ले रही थी. मेन्स परीक्षा के लिये जाते समय सफीन की स्कूटी फिसल गयी और उनका एक्सीडेंट हो गया. लेफ्ट पैर के लिगामेंट्स टूट गये थे, हाथ में चोट थी और सर से खून बह रहा था. सफीन ने सबसे पहले यह चेक किया कि उनका राइट हैंड तो ठीक है न जिससे उन्हें परीक्षा देनी है. बस स्कूटी उठायी और चल पड़े एग्जाम लिखने. पेन किलर खाकर सफीन ने परीक्षा दी. बीच के ब्रेक में उन्हें प्राथमिक इलाज दिया गया और हफ्ते भर परीक्षा देने के बाद सफीन अस्पताल में भर्ती हुये और डेढ़ महीने वहीं रहे. और तो और सफीन को साक्षात्कार के पहले एक महीने फिर हॉस्पिटल में रहना पड़ा था, साक्षात्कार के केवल एक हफ्ते पहले उन्हें छुट्टी मिली थी.
दूसरा अटेम्पट नहीं देना था –
सफीन में सफलता को लेकर जुनून था. वे यूपीएससी की तैयारी शुरू करते समय ही ठान चुके थे कि चाहे जो हो जाये वे दूसरा अटेम्पट नहीं देंगे और परीक्षा तो पहली बार में ही पास करेंगे. शायद यही वजह थी की एक्सीडेंट के बाद सफीन हॉस्पिटल की जगह एग्जामिनेशन हॉल पहुंचे. एक साक्षात्कार में जब उनसे पूछा गया कि उनकी जिंदगी का सबसे दुख भरा इंसिडेंट क्या है तो वे बड़ी सहजता से मुस्कुराकर कहते हैं, कोई भी नहीं. जैसी जिंदगी थी, वैसी न होती तो आज इस मुकाम पर भी नहीं होते. सफीन दूसरे कैंडिडेट्स को सलाह देते हैं कि जीवन में हमेशा दो विकल्प होते हैं. एक तो ये कि जो है उसे लेकर बस रोते रहो और दूसरा यह कि जो है उसे स्वीकार करो और उसे बदलने के लिये निकल पड़ो. उन्होंने दूसरा रास्ता चुना. इस प्रकार साल 2017 में 22 साल की उम्र में सफीन ने 570वीं रैंक के साथ अपने पहले ही अटेम्पट में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. उनकी पहली नियुक्ति बतौर आईपीएस ऑफिसर जामनगर में हुयी. बचपन में देखा एक सपना सफीन कि जिंदगी बन गया और उसे सच करना उनके जीवन का मकसद. किसी ने सच ही कहा है अगर सच्चे दिल से चाहो तो सब मिलता है, बस उसे पाने के प्रयास भी सच्चे होने चाहिये.
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