Success Story Of IAS Topper Shekhar Kumar: यह सच है की समस्याएं सभी के जीवन में होती हैं पर किसी-किसी की ईश्वर कुछ ज्यादा ही परीक्षा लेते हैं. जैसे हमारे आज के कैंडिडेट शेखर कुमार को ही ले लें. शेखर ने यूपीएससी परीक्षा पास करने के दौरान और पहले बहुत सी परेशानियों का सामना किया लेकिन अंत तक हार नहीं मानी. अंततः उनकी कठिनाइयों के दिन खत्म हुए जब वे साल 2010 बैच के आईआरएस ऑफिसर बने. बिहार के एक छोटे से गांव के शेखर के जीवन में तमाम तरह की समस्या आयी जैसे पैसे की किल्लत, परीक्षा छूटना और माता-पिता का एक्सीडेंट. हालात कई बार बहुत ही बुरे हुए लेकिन शेखर ने हर स्थिति को चैलेंज की तरह स्वीकार किया और अपने माता-पिता के प्रोत्साहन से निरंतर आगे बढ़ते गए. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में शेखर ने अपने जीवन के विभिन्न संघर्षों के बारे में खुलकर बताया. जानते हैं विस्तार से.
हिंदी मीडियम, सरकारी स्कूल से हुई पढ़ाई की शुरुआत –
शेखर कहते हैं कि जीवन के बाकी संघर्षों के अलावा उन्हें अपनी भाषा के लेवल पर भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. उनकी इंग्लिश इतनी खराब थी कि उसे सुधारने में आगे जाकर उन्हें लोहे के चने चबाने पड़े. लेकिन धुन के पक्के शेखर एक बार जो ठान लेते थे वह करके ही दम लेते थे. शेखर की शुरुआती शिक्षा एक साधारण हिंदी मीडियम स्कूल में हुई और बाद में उन्हें अंग्रेजी स्कूल में डाला गया. उनके माता-पिता खुद बहुत पढ़े नहीं थे लेकिन बच्चों की पढ़ाई को लेकर काफी गंभीर थे. उन्हीं की प्रेरणा से शेखर और उनके भाई निरंतर हर कक्षा में अच्छा करने की कोशिश करते थे और कई बार सफल भी होते थे.
यहां देखें शेखर कुमार द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू –
पीएम, सीएम या डीएम बस इन्हीं की होती है पूछ –
शेखर के पिताजी हमेशा से चाहते थे कि वे एडमिनिस्ट्रेटिव फील्ड में जाएं और वे इसके लिए शेखर को अक्सर प्रेरित करते. वे उनसे कहते कि बेटा इस देश में केवल तीन लोगों की पूछ होती है, पीएम, सीएम और डीएम इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम डीएम बनो. हालांकि शेखर को कभी इस बात का विश्वास नहीं था कि उनके अंदर इस क्षेत्र में जाने की काबलियत है न ही उन्हें इस फील्ड में खास इंट्रेस्ट था पर पिता की प्रेरणा से उन्होंने इस ओर सोचना शुरू किया. यही नहीं शेखर इस कदर अपने पिता की बात मानते थे कि उनका मन आर्ट्स लेने का था पर पिता जी के कहने पर उन्होंने साइंस ली. आगे जाकर स्टैस्टिक्स विषय चुना और इसी में अपना ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन पूरा किया.
जीवन के दो बड़े हादसे –
शेखर पहले ही इकोनॉमिकली बहुत साउंड नहीं थे और किसी प्रकार उनका और भाई की पढाई का खर्च वहन किया जा रहा था कि उनके जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ. उनके माता-पिता का एक्सीडेंट हो गया जिसमें उनकी मां कमर से नीचे पैरालाइज हो गईं और पिता जी कोमा में चले गए. यह उनके जीवन का सबसे कठिन समय था. इस दौरान शेखर और उनके भाई पढ़ाई छोड़ मां-पापा के पास आ गए और उनकी सेवा में लग गए. पिता जी कुछ समय बाद डिप्रेशन में चले गए और शेखर की परेशानियां दिन पर दिन बढ़ती गईं. ऐसे में शेखर की मां ने उन्हें और भाई को हिम्मत बंधायी कि वे पढ़ाई जारी रखें और मुश्किल से ही सही पर शेखर मान गए.
जिंदगी अभी इतने खिलवाड़ करके खुश नहीं थी जो शेखर के जीवन में एक और बुरी घटना हुई. वे अपने सेकेंड अटेम्प्ट का पेपर देने लेट पहुंचे और दस मिनट की देरी के कारण उन्हें परीक्षा हॉल में प्रवेश नहीं दिया गया. मेन्स तक पहुंचकर भी शेखर बिना पेपर दिए लौट आए. जिस रास्ते से रोज समय पर पहुंचते थे वहीं से आज लेट हो गए. इस दिन वे बुरी तरह टूट गए क्योंकि उनकी सालों की मेहनत बर्बाद हो गई थी और उन्होंने तय किया कि अब वे परीक्षा नहीं देंगे. सब छोड़ वे अपनी पुरानी बैंक पीओ की नौकरी की तरफ लौट गए.
ऐसे मिली प्रेरणा –
एक बार शेखर की मां फिर से उनकी इंस्पिरेशन बनीं और उन्होंने शेखर को मनाया कि बस एक बार और उनके कहने पर यह परीक्षा दे दें. निराश शेखर ने हिम्मत बांधी और लग गए तैयारी में. इस बार अंततः उनका आईआरएस सेवा के लिए चयन हुआ. इस प्रकार शेखर और उनके परिवार की सालों की तपस्या रंग लाई जब वे आईआरएस ऑफिसर पद के लिए चयनित हो गए.
अंत में शेखर सभी कैंडिडेट्स को यही सलाह देते हैं कि आप किस बैकग्राउंड के हैं या आपको इंग्लिश आती है या नहीं ऐसी किसी बात से खुद को न आंके. मेहनत करने पर हर कोई इस परीक्षा में सफल हो सकता है. बस एक बात का ध्यान रखें कि सिविल सेवा दुनिया का अंत नहीं है इसलिए सेलेक्शन न भी हो तब भी निराश न हों और दूसरी परीक्षाओं की तैयारी करते रहें. अगर दो से तीन अटेम्प्ट में भी सेलेक्शन नहीं हो रहा है तो अपने लिए ऑप्शन भी तैयार रखें.
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