IAS Success Story: दूसरे ही अटेम्पट में इंजीनियर सिद्धार्थ बनें UPSC टॉपर, कैसे? जानते हैं
सिद्धार्थ बाबू ने साल 2016 में यूपीएससी सीएसई परीक्षा अपने दूसरे ही प्रयास में 15वीं रैंक के साथ पास की. परीक्षा के दौरान स्ट्रेस फ्री कैसे रहें बता रहे हैं सिद्धार्थ.
Success Story Of IAS Topper Sidharth Babu: कलूर, कोच्चि के सिद्धार्थ बाबू ने साल 2016 में अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी सीएसई परीक्षा पास की. एग्जाम में सिद्धार्थ की रैंक आयी 15 और उन्होंने इंडियन फॉरेन सर्विस यानी भारतीय विदेश सेवा का चयन किया. दूसरे ही अटेम्प्ट में टॉप करने वाले सिद्धार्थ का रवैया इस परीक्षा को लेकर दूसरों से काफी अलग है. वे इस एग्जाम को और इसमें मिलने वाली सफलता या असफलता को बहुत ही सहजता से लेते हैं. उनकी बातचीत सुनकर अभी तक के यूपीएससी कैंडिडेट्स के अनुभव से काफी अलग महसूस होता है. वे इस परीक्षा को बिलकुल भी हौव्वा नहीं बनाते और उससे भी अच्छी बात यह है कि वे मानते हैं कि अगर यहां सफल नहीं भी हुए तो इससे जिंदगी नहीं रुक जाती. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में सिद्धार्थ ने कैसे इस परीक्षा की तैयारी के दौरान स्ट्रेस न लें विषय पर बात की.
परीक्षा को न बनाएं हौव्वा –
सिद्धार्थ का कहना है कि यूपीएससी को लेकर एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि जो कैंडिडेट्स इस फील्ड में आना चाहते हैं या इस फील्ड में हैं, वे कुछ ज्यादा ही सीरियस जाते हैं. दरअसल इस परीक्षा को इतना बड़ा हौव्वा बना दिया गया है कि यूं लगता है कि इसकी तैयारी के दौरान ठीक से हंस भी दिए तो सेलेक्शन नहीं होगा. सिद्धार्थ कहते हैं कि इस मानसिकता और दबाव के साथ जब आप किसी क्षेत्र में उतरते हैं तो सफलता पाने के चांसेस बहुत कम हो जाते हैं. इस परीक्षा को भी दूसरी परीक्षाओं की तरह लें और इसका हौव्वा बिलकुल न बनाएं. आप जितने सहज रहेंग सफलता भी उतनी ही सहजता से आपके पास आएगी.
यहां देखें सिद्धार्थ बाबू द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू –
16 घंटे पढ़ने को नहीं मानते उचित –
सिद्धार्थ कहते हैं कि उनकी खुद की 15वीं रैंक आयी है और उनके बैच से और भी बहुत से स्टूडेंटस हैं जिन्होंने टॉप किया है. उन्होंने किसी को कभी एक दिन में 16 घंटे पढ़ते नहीं देखा. वे मानते हैं कि इस तरह का शेड्यूल प्रैक्टिकल नहीं है और कई बार इस परीक्षा में सफलता पाने में कई साल लग जाते हैं तो आप सालों-साल दिन के 16 घंटे नहीं पढ़ सकते. ऐसा टाइम-टेबल बनाएं जो वास्तविक हो, जिसे फॉलो किया जा सके (लंबे समय तक) और जिसे फॉलो करने के बोझ तले आप दब न जाएं.
सिद्धार्थ दूसरी जरूरी बात कहते हैं कि वे कई कैंडिडेट्स से सुनते हैं कि हम दुनिया से कट गए थे, हमने किसी से कोई मतलब नहीं रखा वगैरह-वगैरह. सिद्धार्थ इसे भी ठीक नहीं मानते. वे कहते हैं कि क्यों ऐसा करना, जब किसी से बात करके आपको फ्रेश महसूस होता है या आपको ब्रेक मिलता है तो दुनिया से कटने की क्या जरूरत है. आप बच्चे नहीं हैं, अपना शेड्यूल खुद ही मैनेज कर सकते हैं. खुद पर ऐसी सख्ती थोपने की कोई जरूरत नहीं.
वो करें जिसमें खुशी मिले –
सिद्धार्थ इस बात पर बहुत जोर देते हैं कि अगर आप खुश हैं और तनाव नहीं ले रहें हैं या स्ट्रेस में नहीं हैं तो आपकी प्रोडक्टिविटी हर मायने में बहुत बढ़ जाती है. इस बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि जिस काम में आपको खुशी मिले वह करें. इसी तरह जो काम आपको अच्छा नहीं लगता उसे न करें. जैसे सिद्धार्थ अपना उदाहरण देते हैं कि मैं यूट्यूब भी देखता था, वीडियोज भी, दोस्तों के साथ मूवी भी जाता था और जिनसे बात करना पसंद था उनसे बातें भी करता था. इसी तरह पढ़ाई के बीच में आप भी ब्रेक लें और जो काम करके आपको अच्छा लगता हो, वे जरूर करें. यह काम हर किसी के लिए अलग होंगे और अपनी च्वॉइस के हिसाब से उन्हें चुनें.
सिद्धार्थ अंत में यही कहते हैं कि इस परीक्षा को इतना बड़ा न बना दें कि आपकी जिंदगी की खुशियां भी इसके आगे छोटी पड़ जाएं. मेहनत करें, सही दिशा में बढ़ें लेकिन स्ट्रेस लिए बिना. स्ट्रेस लेने से कभी किसी को सफलता नहीं मिली है हालांकि न लेने वाले जरूर परीक्षा में एक्सेल कर गए हैं.
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