IAS Success Story: कॉन्स्टेबल से UPSC टॉपर, ऐसे तय किया विजय ने यह असंभव लगने वाला सफर
कॉन्स्टेबल पद से अपनी जर्नी शुरू करने वाले विजय ने साल 2018 बैच के आईपीएस पद तक पहुंचकर यह दिखा दिया कि नामुमकिन कुछ भी नहीं. जानते हैं आज विजय की जर्नी के विषय में.
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Success Story Of IAS Topper Vijay Singh Gurjar: राजस्थान के विजय सिंह गुर्जर की जिंदगी पर अगर स्क्रिप्ट लिखनी हो तो आपको वह सब मैटीरियल मिलेगा जो किसी भी व्यक्ति को हीरो बनाने के लिए काफी है. हालांकि इस स्क्रिप्ट की खास बात यह है कि यह कहानी ना होकर सच है, एक ऐसा सच जो विजय ने जिया है और जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों को पार करते हुए वे एक कॉन्स्टेबल से आईपीएस ऑफिसर के पद तक पहुंचे. छोटे से गांव के विजय के पास न सुविधाएं थीं न संसाधन और न ही कोई गाइडेंस. खेतों पर काम करने से लेकर पशु पालने तक उन्होंने वे सब काम किए जो गांव का एक गरीब किसान करता है. इन सब के बीच भी कभी उन्होंने शिक्षा के महत्व को कम नहीं आंका और साल दर साल मेहनत करते एक के बाद एक मुकाम हासिल करते विजय अंततः मंजिल तक पहुंचे. कोई नहीं सोच सकता कि एक कॉन्स्टेबल पद पर काम करने वाला लड़का एक दिन आईपीएस ऑफिसर बन जाएगा. वह भी नौकरी के साथ, परिवार की जिम्मेदारियां संभालते हुए और पैसों की तंगी के बीच. न कोई कोचिंग न कोई गाइडेंस केवल सेल्फ स्टडी के दम पर. दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में विजय ने अपने इस सफर की खास बातें शेयर की. जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी थोड़ा नजदीक से.
ऐसा था विजय का बचपन –
राजस्थान के एक छोटे से गांव के विजय एक बहुत ही साधारण किसान परिवार में जन्में. उनके पांच भाई बहनों में विजय तीसरे नंबर के हैं. पिता जी खेती करते हैं और माता जी गृहणी हैं. खुद पढ़े न होने के बावजूद विजय के पिता ने हमेशा से बच्चों की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया और हमेशा उन्हें कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित किया. गांव के ही साधारण सरकारी स्कूल से विजय ने पढ़ाई की और साथ ही साथ खेती में पिता का हाथ भी बंटाया. विजय पुराने दिन याद करके बताते हैं कि कैसे फसल काटने के लिए उन लोगों को सुबह तीन या चार बजे उठा देते थे और आठ बजे तक फसल काटकर वे स्कूल जाते थे. इसी तरह शाम का रूटीन होता था. पिताजी ऊंट खरीदते थे और जब बाकी बच्चे छुट्टियों में नानी के घर जाते थे तब वे और उनके भाई ऊंट को हल जोतने की ट्रेनिंग देते थे, ताकि वह ज्यादा पैसे में बिक सके. ऐसे माहौल में विजय ने बचपन बिताया.
दिल्ली पुलिस में बनें कॉन्स्टेबल –
विजय कहते हैं कि उस समय उनके गांव में सरकारी नौकरी वालों को बहुत इज्जत की नजर से देखा जाता था. इसलिए उनका भी झुकाव इस तरफ हो गया था. तभी किसी ने दिल्ली पुलिस में कॉन्स्टेबल की भर्ती के विषय में बताया और विजय ने अपने दोस्त के खर्चे पर परीक्षा की तैयारी की और पास भी हो गए.
देखें विजय सिंह द्वारा दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिया गया इंटरव्यू
इसके बाद भी उनके जीवन में कई वाकये हुए जिन्होंने विजय को सिविल सेवा की ओर जाने के लिए प्रेरित किया. हालांकि हिंदी मीडियम के पढ़ें और संस्कृत से ग्रेजुएशन किए विजय को हमेशा अपनी क्षमताओं पर शक होता था. कोचिंग आदि के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. अंततः विजय ने कॉन्स्टेबल से आगे बढ़कर सब-इंस्पेक्टर के पद पर अपना चयन सुनिश्चित किया और इसके बाद एसएससी की परीक्षा पास करके इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में एक अच्छे पद पर काम करने लगे.
सिविल सेवा का खयाल नहीं गया दिल से –
विजय पहले की तुलना में अच्छे पद और स्थिति में थे पर उन्हें लगता था कि इन पदों पर काम करके वे अपने जैसे दूसरे युवाओं के लिए कुछ नहीं कर पा रहे हैं. समाज में विभिन्न स्तर पर फैले भेदभाव को देखकर अक्सर उनका मन द्रवित होता. अंततः अपने कई सीनियर्स से प्रेरणा लेकर विजय इस फील्ड में आ ही गए. नौकरी के साथ जैसे-जैसे समय निकालकर वे पढ़ाई करते थे क्योंकि नौकरी छोड़ना उनके लिए संभव नहीं था. लंच ब्रेक में पढ़ने से लेकर, कम्यूट करने के रास्ते में पढ़ने तक विजय ने सबकुछ किया. इसके बावजूद उन्हें शुरू में काफी बार असफल होना पड़ा. हालांकि विजय ने हिम्मत नहीं हारी और लगे रहे. साल 2016 में जब वे इंटरव्यू तक पहुंचकर भी सेलेक्ट नहीं हुए तो दुखी तो हुए लेकिन इस बात की तसल्ली भी रही की थोड़ी और मेहनत से बात बन सकती है.
अगर मैं कर सकता हूं तो कोई भी कर सकता है –
अंततः विजय को साल 2017 की परीक्षा में सफलता मिली जब वे तीनों चरण पास कर गए. साल 2018 आईपीएस बैच के लिए चयनित विजय की यह जर्नी काफी लंबी और कठिन रही. इस दौरान कई बार हताश होने वाले विजय को उनकी पत्नी और परिवार ने बार-बार मोटिवेट किया. विजय भी यही कहते हैं कि आप किस बैकग्राउंड के हैं, आपकी भाषा का माध्यम क्या है, आपके पहले कैसे अंक आते थे, इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप ठान लेते हैं और उसे पाने के लिए जरूरी मेहनत करने के लिए तैयार हैं तो कोई लक्ष्य आपके इरादों से बड़ा नहीं. हाईस्कूल और आगे भी कभी 55 प्रतिशत से ज्यादा अंक नहीं लाने वाले विजय अगर सेलेक्ट हो सकते हैं तो कोई भी सेलेक्ट हो सकता है. अपनी कमियों को पहचानिए, उन पर काम करिए और अगर सफलता मिलने में बहुत समय लग रहा है तो लगने दीजिए क्योंकि यह लक्ष्य इतना बड़ा है कि इस पर सालों खर्च करना गलत नहीं. यह जर्नी आपको इतना निखार देती है कि अगर आप मंजिल तक नहीं भी पहुंचे तो इतने काबिल बन चुके होंगे कि सफलता खुद-ब-खुद आपके कदम चूमेगी.
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