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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

IAS Success Story: सिंगल मदर के संघर्ष ने किया विवेक को प्रेरित और ऐसे पास की उन्होंने यूपीएससी परीक्षा

केरल के वी विवेक ने अपने पूरे जीवन में गरीबी देखी और हर छोटी-बड़ी चीज़ के लिये संघर्ष किया. ऐसे में विवेक ने एजुकेशन को टूल बनाया और अपनी जिंदगी यूं बदली.

Success Story Of IAS Topper V K Vivek: केरल के कासरगोड के छोटे से गांव कुट्टीकोल के विवेक का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था. कोई सुख-सुविधा तो दूर उन्हें जरूरत की चीजों के लिए भी तरसना पड़ता था. विवेक की आर्थिक स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनका घर मिट्टी का बना था, जिसे गाय के गोबर से लीपा जाता था. घर पर छत की जगह नारियल के पत्तों का शेड था. बिजली, पानी किसी चीज़ की सुविधा नहीं थी और तो और टॉयलेट तक नहीं था उनके घर में. इस पर भी उनके पिता, चाचा सबको शराब की लत थी. यहां तक कि उनके घर में इस लत की वजह से पहले भी एक डेथ हो चुकी थी फिर भी उनके पिताजी नहीं मानते थे. कुल मिलाकर घर की आर्थिक स्थिति से लेकर वातावरण तक सब कुछ संघर्ष भरा था. विवेक के गांव में उनकी जाति के लोग मुख्य तौर पर जो काम करते थे वह थेय्यम के सीज़न में शुरू होता था. इस त्यौहार के मौसम में वह पूरे शरीर पर रंग लगाकर और खास तरह के कपड़े पहनकर तैयार होते थे और नृत्य करते थे. इस दौरान वे नंगे पैर अंगारों पर भी चलते थे. आग पर चलने के लिए सभी मर्द शराब का सहारा लेते थे. इससे उन्हें तकलीफ कम होती थी या नशे में चेतना शून्य हो जाते थे, यह तो नहीं पता पर सभी शराब पीकर ही काम पर जाते थे. इस काम के लिए खास पी जाने वाली शराब की आदत बाद में भी नहीं जाती थी और वहां के मर्द विवेक के पिता की तरह नशे के आदि हो जाते थे. इसके बाद बारी आती थी शराब पीकर घर की औरतों से गाली-गलौज़ करने की. ऐसे माहौल में कटा विवेक का शुरुआती जीवन.

बच्चों के भविष्य के लिए मां ने लिया फैसला –

विवेक की मां बाकी परिवार से अलग थीं. वे गांव की बाकी महिलाओं की तरह दूसरों के घर में कपड़े धोकर खर्च नहीं चलाती थी (जैसा कि वहां की दूसरी प्रथा थी). वे पढ़ी-लिखीं थीं और पास के पोस्ट ऑफिस में क्लर्क के पद पर काम करती थी. काफी प्रयासों के बाद भी जब कुछ नहीं बदला तो उन्होंने बच्चों को लेकर अपने मायके जाने का फैसला किया. वहां भी पैसे की कमी थी पर माहौल ससुराल जैसा नहीं था. विवेक ने यहां आकर एक अच्छे स्कूल में एडमीशन लिया. बस समस्या यह थी कि स्कूल घर से 25 किलोमीटर दूर था और एक तरफ के सफर में दो बस और एक ट्रेन लेनी पड़ती थी. रोज़ 50 किलोमीटर का सफर स्कूल के लिये तय करना होता था. विवेक को घर आने के बाद कुंए से पानी भरना, घर साफ करना (मिट्टी का घर बहुत गंदा होता था), बर्तन धोने जैसे काम भी करने होते थे ताकि मां घर आकर थोड़ा आराम कर सकें. कुल मिलाकर विवेक को पढ़ाई के लिए बिलकुल समय नहीं मिलता था. धीरे-धीरे विवेक ने चलती गाड़ी में लिखने और होमवर्क करने की आदत डाली. विवेक आराम से बस या टैक्सी में बैठकर पढ़ाई करने लगे.

तीन बड़ी परीक्षाएं की पास –

पढ़ाई में हमेशा से अच्छे विवेक ने क्लास 12 के बाद एआईईईई परीक्षा पास की और एनआईटी त्रिचि से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. विवेक कितने होनहार थे इस बात का पता इससे चलता है कि इंजीनियरिंग के बाद उन्होंने कैट परीक्षा पास की और आईआईएम कलकत्ता से एमबीए किया. इसके कुछ समय बाद तक उन्होंने नौकरी भी की पर उनका मन नौकरी में नहीं लगता था. दरअसल अपनी पढ़ाई के दौरान सोशियोलॉजी पढ़ते समय उन्हें अहसास हुआ कि उनके पिता की शराब की लत के पीछे केवल वे नहीं बल्कि वहां का पूरा सामाजिक ढ़ांचा भी जिम्मेदार था. वे अपने गांव में जाति विशेष का होने के कारण भेदभाव भी देख चुके थे. इन सब और ऐसे बहुत से कारणों ने उन्हें सिविल सर्विस के क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया. उनकी जाति के अलावा बाकी जाति के लोगों के साथ भी भेदभाव होता था, विवेक ऐसे लोगों के लिये कुछ करना चाहते थे.

नौकरी छोड़कर की तैयारी –

विवेक ने शुरू में तो नौकरी के साथ ही यूपीएससी की तैयारी की लेकिन कुछ समय बाद ही उन्हें अहसास हो गया कि यह परीक्षा पिछली परीक्षाओं से भी ज्यादा मुश्किल थी और फुल टाईम डिवोशन मांग रही थी. अंततः उन्होंने डेढ़ साल नौकरी करने के बाद क्विट किया और पूरी तरह से परीक्षा की तैयारी में लग गए. पहले प्रयास में वे सफल नहीं हुए और इसी बीच दोबारा जैसे ही प्री का नंबर आया उन्हें खबर मिली की उनके पिताजी का देहांत हो गया है. यह समय विवेक के लिए बहुत कठिन था क्योंकि प्री परीक्षा में केवल 15 दिन बचे थे. लेकिन विवेक ने हिम्मत नहीं हारी और इसी मानसिक स्थिति के साथ परीक्षा दी. विवेक को सालों की मेहनत और लगन का फल मिला और उनका चयन हो गया. उन्होंने तीनों परीक्षाएं पास कर लीं. विवेक की 667वीं रैंक आयी. आखिरकार उनके सालों के संघर्ष को मंजिल मिली. विवेक अपनी इस सफलता का श्रेय अपने मां-बाप को देते हैं. वे कहते हैं कि उनके पिता और मां की स्थिति और हालातों ने ही उन्हें जीवन में कुछ करने का साहस दिया. उनकी मां ने छोटी उम्र में ही उन्हें समझा दिया था कि केवल एजुकेशन ही उनकी जिंदगी बदल सकती है. विवेक ने भी इस बात को गांठ बांध लिया और प्राइमरी से लेकर हायर स्टडीज़ तक खूब मन लगाकर पढ़ाई की. विवेक यह मानते भी हैं कि अगर किसी बच्चे का बेस अच्छा हो तो उसे भविष्य में सहूलियत रहती है.

विवेक का सफर हमें बताता है कि हम कहां जन्में हैं, किन हालातों में जन्में हैं, यह हमारे हाथ में नहीं है पर उन हालातों को बदलना जरूर हमारे हाथ में है. इसलिए अपने वर्तमान को अपने भविष्य का आधार न बनाएं और जमकर मेहनत करें. ईमानदार प्रयास और खुद पर विश्वास के साथ कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है.

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