Success Story Of IPS Topper Akshat Kaushal: अक्षत कौशल ने साल 2017 में अपने पांचवें अटेम्पट में सिविल सर्विसेस परीक्षा 55वीं रैंक के साथ पास की थी. ऐसे तो यूपीएससी एस्पिरेंट्स के लिए चार या पांच अटेम्पट देना बड़ी बात नहीं मानी जाती पर अक्षत की स्टोरी थोड़ी अलग है. अक्षत ने चौथे अटेम्पट में असफलता मिलने पर यूपीएससी की राह छोड़ देने का फैसला ले लिया था कि तभी उनके तीन दोस्तों के कहे गए कुछ शब्द उनके जीवन को बदलने वाले गोल्डन वर्ड्स साबित हुए. अगर इत्तेफाक से अक्षत के जीवन में उस मुलाकात का संयोग नहीं बनता तो शायद आज वे जहां हैं वहां नहीं होते.


अक्षत ने साल 2012 से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी थी. सबसे पहले साल उन्होंने कोचिंग ली और पहला अटेम्पट दिया लेकिन उनका चयन प्री में भी नहीं हुआ. इसी प्रकार अक्षत साल दर साल अटेम्पट देते रहे लेकिन सफलता उनसे कोसों दूर थी. हालांकि एक विवेकी इंसान की तरह अक्षत ने चार सालों तक कभी हार नहीं मानी और हर बार अपनी गलतियों से सीखते गए. तभी चौथे अटेम्पट में मिली असफलता ने उन्हें तोड़ दिया. रिजल्ट आने के बाद हताश अक्षत घर से बाहर हवा बदलने गए तो परिवार ने अनहोनी के डर से रोकना चाहा पर वे नहीं मानें. तभी अक्षत अपने तीन दोस्तों से मिलें और उस दस मिनट की मुलाकात में जाने उन्होंने अक्षत से ऐसा क्या कहा कि वे सब भूलकर फिर से प्री की तैयारी में लग गए जो यह ठान चुके थे कि यूपीएससी उनके लिए नहीं बनी है. वो शब्द तो अक्षत को भी नहीं याद हैं पर यह उनकी ताकत ही थी कि पांचवे अटेम्पट की प्री परीक्षा में मात्र 17 दिन बचे थे और इन 17 दिनों में अक्षत ने दीन-दुनिया, हताशा-निराशा आदि सब भुलाकर ऐसी तैयारी की कि उनका न केवल चयन हुआ बल्कि बहुत अच्छे नंबरों से सेलेक्शन भी हुआ.


अक्षत के जीवन की पांच गलतियां –


अक्षत कहते हैं कि मैं कभी नहीं चाहता की जो गलतियां मैंने करीं वही दूसरे कैंडिडेट्स भी दोहराएं, इसलिए वे अपना अनुभव दूसरों से साझा करना चाहते हैं जिससे शायद दूसरों की मदद हो पाए. अक्षत अपने पांच अटेम्पट में असफल होने पर सीखी पांच बातों को कुछ इस तरह से शेयर करते हैं.


पहली सीख – एग्जाम के नेचर को समझें –


अक्षत अपनी पहली सीख में कहते हैं कि परीक्षा देने के पहले परीक्षा के नेचर को समझें कि आखिर यूपीएससी परीक्षा आपसे चाहती क्या है. प्री में क्या देखा जाता है, मेन्स में क्या देखा जाता है और इंटरव्यू में वे आपको कैसे टेस्ट करना चाहते हैं. इस जरूरत को समझकर इसके अनुसार ही तैयारी करें. अंधेरे में तीर चलाने से कोई फायदा नहीं होगा. अक्षत ने अपने पहले ही साल में कोचिंग से लेकर बिना खाना खाए (ताकि नींद न आए) पूरे-पूरे दिन लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई की पर नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा.


दूसरी सीख – ओवर कांफिडेंट न हों –


अक्षत की दूसरी सीख है कि किसी भी विषय को लेकर ओवर कांफिडेंट न हों. जैसे वे हिंदी को लेकर बड़ा श्योर थे कि इसमें क्या है ये तो पास हो ही जाएगी, जिसका नतीजा यह हुआ कि वे हिंदी के कंपल्सरी पेपर में भी पास नहीं हो पाए और उन्हें अपने बाकी विषयों के अंक तक नहीं पता चले. अक्षत कहते हैं कोई विषय आता है, यह अच्छी बात है पर इसको लेकर इग्नोरेंट रवैया न अपनाएं. यूपीएससी आपकी क्षमताओं को जिस स्तर पर जांचता है आप वहां तक सोच भी नहीं पाते.


 


तीसरी सलाह – अपने दोस्तों की सलाह मानें –


अक्षत कहते हैं जो लोग आपको जानते हैं उन्हें बहुत बार वे पहलू भी दिख जाते हैं जो कई बार आप नहीं देख पाते. दूसरे अटेम्पट में भी चयन न होने पर अक्षत ने वापस नौकरी पकड़ ली. इस समय उनके एक दोस्त, जो अक्षत के साथ ही यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे, ने उनसे कहा कि हम सफलता के बहुत करीब आ गए हैं अब रिस्क नहीं लेते पर अक्षत ने किसी की नहीं सुनी. इस साल उनके दोस्त का चयन हो गया और नौकरी के चक्कर में अक्षत ठीक से तैयारी नहीं कर पाए और जिस सफलता के वे बेहद करीब थे वह उन्हें नहीं मिली.


चौथी सलाह – अपनी स्ट्रेन्थ को लेकर मुगालते में न जिएं –


अक्षत कहते हैं कई बार हमें लगता कि यह एरिया हमारी स्ट्रेन्थ है पर हमारे लगने और यूपीएससी को यही लगने में बहुत फर्क होता है. जैसे अक्षत परीक्षा के समय कुछ अखबारों के लिए लिखा करते थे और उन्हें यह मुगालता हो गया था कि ऐस्से लिखने में क्या है क्योंकि मेरी राइटिंग स्किल्स तो बहुत अच्छी हैं. इस साल अक्षत ने ऐस्से में लोएस्ट मार्क्स 91 पाये थे. क्योंकि जिसको वह अपनी स्ट्रेन्थ मानकर ध्यान नहीं दे रहे थे दरअसल वो यूपीएससी के मापदंडों पर बहुत ही निम्न स्तर की थी.


पांचवीं सलाह – कुछ चीजें डेस्टिनी पर छोड़ देनी चाहिए –


अक्षत आखिरी सलाह देते हैं कि जब अपना सौ प्रतिशत देने के बाद भी रिजल्ट न आए तो कुछ चीजें समय पर छोड़ देनी चाहिए. कुछ घटनाओं का समय शायद तय होता है, वे जब होनी होती हैं, तभी होती हैं. जैसे अपने चौथे प्रयास में अक्षत ने परिवार के दबाव में सर्विस प्रिफरेंस में आईएएस भर दिया था जबकि उनके दिल में हमेशा से आईपीएस सेवा थी. नतीजा यह हुआ की साक्षात्कार देते जाते समय उनके दिमाग में आया कि जब मैं खुद से ईमानदार नहीं हूं तो ईश्वर क्या मेरी मदद करेंगे. अक्षत का इस बार साक्षात्कार तक पहुंचकर भी चयन नहीं हुआ.


अंत में अक्षत अपने पांचवे अटेम्पट के उन 17 दिनों को भी ईश्वर की मर्जी मानते हैं, जिनमें वे इतने मोटिवेट हुए की कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसलिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें, दूसरों की गलतियों से सीखें और अपनी कमियों को दूर करते चलें, आपको सफलता जरूर मिलेगी.


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