वक्त की करवट देखिए, हालात से मजबूर प्रतिभाशाली एक इंजीनियरिंग (बीटेक) राज्य लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) कार्यालय में चपरासी बना पर मेहनत और लगन के बल पर वह उसी कार्यालय में अधिकारी बन गया. हम बात कर रहे हैं शैलेंद्र कुमार बांधे की, जिन्होंने हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा सामान्य श्रेणी में 73 वीं (आरक्षित श्रेणी में दूसरी रैंक) रैंक के साथ पास की है.
इंजीनियरिंग करने के बाद भी बनना पड़ा चपरासी
शैलेंद्र कुमार बांधे ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) से बीटेक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) की. एक प्रतिष्ठित संस्थान से इंजीनियरिंग करने के बाद, उन्हें प्रमुख निजी फर्मों में नौकरी मिल सकती थी लेकिन उन्होंने ‘प्लेसमेंट इंटरव्यू’ में शामिल नहीं होने का फैसला किया. वह सरकारी नौकरी पाना चाहते थे. इसकी प्रेरणा उन्हें एनआईटी रायपुर में अपने एक सुपर सीनियर हिमाचल साहू से मिली, जिन्होंने सीजीपीएससी-2015 परीक्षा में प्रथम रैंक हासिल की थी.
किसान परिवार से हैं शैलेंद्र
बांधे राज्य के बिलासपुर जिले के बिटकुली गांव के एक किसान परिवार से हैं. अब वह रायपुर में बस गए हैं. उन्होंने रायपुर में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और फिर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) रायपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग (बीटेक) की पढाई की.
युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बने
बांधे राज्य के उन युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं, जो इस परीक्षा की तैयारी में लगे हुए हैं. बांधे ने अपने पांचवें प्रयास में सीजीपीएससी-2023 परीक्षा पास की है, जिसके परिणाम पिछले सप्ताह घोषित किए गए थे. उन्हें सामान्य श्रेणी में 73वीं रैंक और आरक्षित श्रेणी में दूसरी रैंक मिली है.
माता-पिता बने ताकत
बांधे ने एक इंटरव्यू में कहा कि वह अपने माता-पिता की मदद के बिना ऐसा नहीं कर पाते. माता पिता ने हर फैसले में उनका साथ दिया. इस वर्ष मई में उन्हें सीजीपीएससी कार्यालय में चपरासी के पद पर नियुक्त मिली, फिर उन्होंने इस साल फरवरी में आयोजित सीजीपीएससी-2023 प्रारंभिक परीक्षा पास की, इसके बाद मुख्य परीक्षा की तैयारी जारी रखी.
लगातार प्रयासों के बाद मिली सफलता
पहले प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में असफल रहे. अगले प्रयास में मुख्य परीक्षा पास नहीं कर पाये. तीसरे और चौथे प्रयास में साक्षात्कार के लिए योग्य हो गये, लेकिन इसमें सफल नहीं हो पाये. अंत में पांचवें प्रयास में सफलता मिली. सीजीपीएससी की परीक्षा की तैयारी में लगातार एक के बाद एक वर्ष बीतने के दौरान उन्हें चपरासी की नौकरी चुननी पड़ी क्योंकि परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए इसकी जरूरत थी. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने राज्य सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी जारी रखी.
हाल ही में एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि क्या चपरासी के तौर पर काम करने में उन्हें असहजता महसूस होती है तो उन्होंने कहा कोई भी नौकरी बड़ी या छोटी नहीं होती, क्योंकि हर पद की अपनी गरिमा होती है. चाहे वह चपरासी हो या डिप्टी कलेक्टर, हर नौकरी में ईमानदारी और पूरी जिम्मेदारी के साथ काम करना होता है. उन्होंने कहा, हालांकि कुछ लोग मुझे ताना मारते थे और चपरासी के तौर पर काम करने के लिए मेरा मजाक उड़ाते थे लेकिन मैंने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया.
बेटे की कड़ी मेहनत और समर्पण को सलाम करते हैं पिता
बांधे के पिता संतराम बांधे एक किसान हैं. वह अपने बेटे की कड़ी मेहनत और समर्पण को सलाम करते हैं. वह कहते हैं कि शैलेंद्र ने कभी असफलता से हार नहीं मानी. मेरा बेटा उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा, जो सरकारी नौकरी पाने और देश की सेवा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
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