UPSC Success Story:  जीवन में कभी विफलता से न डरें, यह सफलता की ओर एक कदम है. डर की भावना आपकी प्रतिभा के उपयोग और संभावनाओं की वास्तविकता में बाधा डालती है. वैसे भी जीवन वह नहीं है, जो हम सोचते या चाहते हैं. जीवन वह है, जो हमारे साथ होता है और अनिश्चित है. ऐसे में जीवन जीने का मतलब बीती बातों पर रोना नहीं, बल्कि हर पल एक नई शुरुआत के लिए कदम बढ़ाना है. कुहू गर्ग के जीवन का यही सूत्र वाक्य है. शायद आपको यह पंक्तियां महज कुछ शब्दों के संयोजन से बना वाक्य लगे लेकिन यह वाक्य कुछ लोगों के जीवन का आधार है।आइए जानते हैं कि उन्होंने एक शानदार इंटरनेशनल बैडमिंटन खिलाड़ी से लेकर आईपीएस बनने तक का सफर कैसे तय किया.


22 सितंबर 1998 को देहरादून में जन्मी कुहू गर्ग उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अशोक कुमार की बेटी हैं. अशोक कुमार 1989 बैच के एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं. कुहू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के सेंट थॉमस कॉलेज से पूरी की है. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया है.


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अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं कुहू गर्ग


कुहू गर्ग एक अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी भी हैं. कुहू बैडमिंटन की अंतरराष्ट्रीय लेवल की खिलाड़ी रही हैं. उन्होंने नौ वर्ष की काफी छोटी उम्र से ही बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. कुहू गर्ग की झोली में अब तक 56 नेशनल और 19 इंटरनेशनल पदक आए हैं. 13 साल की उम्र से ही कुहू ने राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतना शुरू कर दिया था. कुहू वुमेंस डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में खेल चुकी हैं. मिक्स्ड डबल्स में उनका 34 वर्ल्ड रैंक रह चुका है. साल 2018 में कुहू वर्ल्ड चैंपियनशिप का क्वार्टर फाइनल भी खेल चुकी हैं.


ऐसे शुरू हुआ यूपीएससी का सफर


कुहू गर्ग बैडमिंटन खेल में अपना परचम लहरा रहीं थीं कि दो साल पहले उनके घुटने में चोट आ गई. बड़ी सर्जरी के कारण डॉक्टर ने उन्हें रेस्ट करने की सलाह दी है, जिसका उपयोग करते हुए उन्होंने सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू की. बकौल कुहू प्रिपरेशन के दौरान रोजाना 8-10 घंटे पढ़ाई करती थीं. प्रीलिम्स के दौरान यह समय 12-13 घंटे प्रति दिन हो गया और मेन्स के समय 16 घंटे पढ़ाई को दिए. इसका नतीजा ये हुआ कि कुहू ने पहले ही अटेम्प्ट में यूपीएससी परीक्षा पास की और देशभर में 178th रैंक हासिल की.


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पिता से मिली प्रेरणा
कुहू गर्ग ने बचपन से ही वह अपने पिता और उनके आसपास के आईपीएस अधिकारियों के माहौल को देखते और उससे प्रेरित होती आई हैं. वह हमेशा सोचती थी कि उन्हें इस तरह से अपने देश के लिए कुछ करने का मौका मिले, तो वह जरूर इस मौके का लाभ उठाएंगी. उनका कहना है कि पहले वह खेल में देश के लिए नाम कमा रहीं थीं, तो अब सिविल सेवक के रूप में देश की सेवा कर रही हैं.


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