इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज भी देश में आर्थिक बाधाओं के चलते कुछ बच्चों को सेकेंडरी स्कूल में बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. एक सरकारी रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक सेकेंडरी स्कूलों में बीच में पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या 17 प्रतिशत से अधिक है जबकि अपर प्राइमरी (कक्षा 6 से 8) में 1.8 और प्राइमरी स्कूलों (कक्षा एक से पांच) में 1.5 प्रतिशत बच्चों को बीच में ही पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है. 


लड़कों का ड्रॉपआउट रेट ज्यादा
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेकेंडरी लेवल में लड़कों का ड्रॉपआउट रेट प्राइमरी लेवल की तुलना में ज्यादा है. एजुकेश प्लस के लिए समेकित जिला सूचना प्रणाली (Unified District Information System) 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 30 प्रतिशत बच्चे सेकेंडरी से सीनियर सेकेंडरी लेवल में पार नहीं कर पाते. तुलनात्मक रूप से पंजाब, मणिपुर और केरल में 90 प्रतिशत से अधिक बच्चे सेकेंडरी लेवल से आगे बढ़ने में कामयाब हो जाते हैं. दूसरी ओर लड़कों के मुकाबले सेकेंडरी लेवल में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट बहुत कम है. पंजाब में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट शून्य है जबकि असम में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट सेकेंडरी लेवल पर 35.2 प्रतिशत है. 


चार राज्यों में 30 प्रतिशत से ज्यादा ड्रॉपआउट रेट 
रिपोर्ट के मुताबिक 19 राज्यों में देश के बाकी राज्यों की तुलना में सेकेंडरी लेवल में बहुत ज्यादा ड्रॉपआउट रेट है. सेकेंडरी लेवल में 25 प्रतिशत से ज्यादा ड्रॉपआउट रेट वाले राज्य हैं- त्रिपुरा, सिक्किम, नागालैंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, असम और अरुणाचल प्रदेश. देश के चार राज्य ऐसे हैं जहां सेकेंडरी स्कूलों में ड्रॉपआउट रेट 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है.


दिल्ली में भी ड्रॉपआउट रेट 20 फीसदी से ज्यादा
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में भी ड्रॉपआउट रेट बहुत ज्यादा है. दिल्ली में 20 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ाई के दौरान बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. चंडीगढ़, केरल, उत्तराखंड, तमिलनाडु और मणिपुर ऐसे राज्य हैं जहां बीच फ 1.5 प्रतिशत बच्चे ही बीच में पढ़ाई छोड़ते हैं. 


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