गरीबी उनका 'घर' बन चुकी थी तो लोगों की दुत्कार 'खाना-पीना'. स्कूल में बच्चे मजाक उड़ाते थे तो पड़ोस में रहने वाले लोग उन्हें रिक्शेवाले का बेटा कहकर जलील करते थे. हालात ऐसे थे कि कदम-कदम पर दुत्कार से वह रूबरू होते थे. यह कहानी है ऐसे शख्स की, जिनका पूरा बचपन गरीबी, अभाव, तनाव और फटकार में गुजरा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी जिंदगी में कड़ी मेहनत की और आईएएस बनकर समाज को दिखा दिया कि मेहनत-मजदूरी करने वाले भी सम्मान से जीने का हक रखते हैं.
मूलरूप से बनारस के रहने वाले गोविंद जायसवाल जब सातवीं क्लास में थे तभी उनकी मां का देहांत हो गया. पिता रिक्शा चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते थे. स्कूल में सभी बच्चे गोविंद को रिक्शेवाले का बेटा कहकर चिढ़ाते. कुछ बच्चे दोस्ती का हाथ बढ़ाते भी तो उनके परिवारीजन उन्हें डांट देते. एक दिन गोविंद अपने एक दोस्त के घर खेलने गया. तब उसके पिता ने अपने बेटे को डांटते हुए गोविंद से दूर रहने की नसीहत दी. यह बात गोविंद को बहुत चुभी.
गरीबी और अकेलेपन के शिकार गोविंद को लगने लगा कि दुनिया में सामाजिक प्रतिष्ठा का होना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है. एक दिन उन्होंने अपने शिक्षक से पूछा कि ऐसा क्या करना चाहिए कि समाज में हमारी प्रतिष्ठा कायम हो जाए. सभी हमारा सम्मान करें. शिक्षक ने कहा कि भविष्य में या तो बड़े बिजनेसमैन बन जाओ या फिर आईएएस अधिकारी बनना होगा. तभी से गोविंद के मन में आईएएस बनने की बात घर कर गई.
टीचर ने दी सलाह
गोविंद जायसवाल एक गरीब परिवार से थे. उनके पिता रिक्शा चलाते थे. एक दिन उनके दोस्त के पिता ने उनका अपमान किया. इस बात से गोविंद बहुत दुखी हुए. उन्होंने अपने टीचर से पूछा कि वह अपनी जिंदगी कैसे बदल सकते हैं. टीचर ने उन्हें आईएएस बनने की सलाह दी. गोविंद ने आईएएस बनने का फैसला किया.
मिली शानदार रैंक
गोविंद जायसवाल ने यूपीएससी की परीक्षा में 48वीं रैंक हासिल कर आईएएस बने. उनके पिता ने उन्हें दिल्ली में तैयारी के लिए जमीन का टुकड़ा भी बेच दिया था. वह रिक्शा चलाकर उन्हें पढ़ाई का खर्चा भेजते थे. उनके पैर में सेप्टिक का संक्रमण होने के बावजूद भी वह अपने बेटे को परेशानी नहीं देना चाहते थे.
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