UPSC Success Story: एक बार किसी ने मुझे चाय के ठेले पर देख लिया और मजाक उड़ाने लगे. वह मुझे 'चायवाला' कहते थे. मैने उस पर ध्यान देने के बजाय पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया और अपना उद्देश्य पूरा किया. स्कूल जाने के लिए रोज 70 किलोमीटर जाना, पिता का काम में हाथ बंटाने के लिए चाय की दुकान पर काम करना, तीन बार UPSC Exam  देना और तीनों बार लगातार सफल रहना और आईएएस बन कर दिखाना. कुछ ऐसी है प्रेरणादायक स्टोरी है भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में सिलेक्ट होने वाले हिमांशु गुप्ता की.


यह कहानी उन युवाओं में जोश भरने के लिए काफी है जो कुछ कर गुजरने की चाहत रखते हैं. हिमांशु गुप्ता का सफर बेशक कठिन रहा पर सफल रहा. इसका मतलब साफ है कि अगर आप में लगन है, मेहनत करने का जज्बा है और उद्देश्य साफ है तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो.

पिता ने कभी नहीं सोचा था उनका हिमांशु आईएएस बनेगा


उत्तराखंड के उधमसिंह जिले के सितारगंज के रहने वाले हिमांशु गुप्ता के पिता मजदूरी करते थे, फिर उन्होंने चाय की दुकान शुरू की. उनका हाथ बंटाने के लिए उनका होनहार बेटा भी साथ हो लिया. 35 किलोमीटर जाना और 35 किलोमीटर आना. पढ़ाई के लिए दोनों तरफ का 70 किलोमीटर सफर तय करना कोई हंसी खेल नहीं था. इन चुनौतियों के बीच हिमांशु ने अपनी 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की. बिना कोचिंग के उन्होंने खुद पढ़कर तीन बार यूपीएससी की परीक्षा दी और एक के बाद एक पायदान ऊपर चढ़कर आईएएस बने.


तीन अटेम्प्ट तीनों में सफलता और बन गये आईएएस


वर्ष 2018 में पहली बार UPSC Exam पास किया, तब हिमांशु का चयन भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) के लिए हुआ. इससे वह संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने 2019 में फिर परीक्षा दी. इस बार उनका चयन भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के लिए हुआ. दूसरी बार सफल होने के बाद भी उन्हें लगा की एक और प्रयास करना चाहिए. तो उन्होंने 2020 फिर से परीक्षा दी. इस बार उन्होंने वो पा लिया जा वह पाना चाहते थे.


खुद बताई अपनी सफलता की कहानी


एक इंटरव्यू हिमांशु गुप्ता ने अपने सफर के बारे में खुद बताया. वह कहते हैं, “मैं स्कूल जाने से पहले और बाद में पिता के साथ काम करता था”. एक बार किसी ने मुझे चाय के ठेले पर देख लिया और मजाक उड़ाने लगे. वह मुझे 'चायवाला' कहते थे. उन्होंने कहा कि उस पर ध्यान देने के बजाय पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया. वह परिवार के साथ बेहतर जीवन जीना चाहते थे. उन्होंने कहा पापा अक्सर कहते थे, 'सपने सच करने है तो पढाई करो!'  मैंने यही किया.


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