Why Vikas Divyakirti Chose Teaching: यूपीएससी एस्पिरेंट्स को कोचिंग देने वाली संस्था दृष्टि आईएएस के संस्थापक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति आजकल काफी चर्चा में हैं. दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में तीन छात्रों की डूबकर हुई मौत पर काफी समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं देने के कारण वे चहुंओर से आलोचना का शिकार हो रहे थे. हालांकि आज उन्होंने इस बारे में ना केवल अपनी प्रतिक्रिया दी बल्कि इस तरह की समस्याओं को सुलझाने के रास्ते खोजने पर भी बल दिया.


क्यों बने टीचर


विकास दिव्यकीर्ति केवल आईएएस या यूपीएससी एस्पिरेंट्स के लिए ही एक टीचर, मार्गदर्शक या मोटिवेटर का काम नहीं करते बल्कि उनके विचारों को लाखों लोग सुनते हैं. आज फिर से लोगों के मन में ये सवाल आ रहा है कि यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित सेवा पास करने के बाद वे टीचिंग में क्यों आए.


इसी फील्ड से हुई थी शुरुआत


विकास दिव्यकीर्ति के करियर की शुरुआत दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर हुई थी. हालांकि इस समय वे यूपीएससी सीएसई की भी तैयारी कर रहे थे और काम के साथ-साथ पढ़ाई करते थे. साल 1996 में उन्होंने अपना पहला अटेम्प्ट दिया और चयनित भी हो गए. उन्हें रैंक के मुतिबिक गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स में जगह मिली.


नौकरी में नहीं लगा मन


ऑफिसर पद पर चयनित होने के बाद और सरकारी अधिकारी का रौब, सुविधाएं और सैलरी होने के बावजूद विकास दिव्यकीर्ति का इस काम में मन नहीं लगा. वे अभी भी और कोशिश करना चाहते थे, इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने यूपीएससी के कई और अटेम्प्ट दिए पर  मनचाहे आईएएस पद के लिए चयनित नहीं हो पाए.


किया टीचिंग का रुख


इस बीच उनके मन में टीचिंग की फील्ड में उतरने का ख्याल आया. वे पहले भी ये कर चुके थे और उन्हें लगता था कि ये वो काम है जिसमें उन्हें संतुष्टि मिलेगी. उनके इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ और ये भी कहा गया कि अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर उन्हें टीचिंग का भूत क्यों चढ़ा है.


इरादों के पक्के दिव्यकीर्ति


सब तरफ से आलोचना सुनने के बाद भी विकास दिव्यकीर्ति  ने पढ़ाना शुरू कर दिया. इसी के साथ अटेम्प्ट जारी रखे और अंतत: एक दिन ऐसे मुकाम पर पहुंचे जब उन्होंने यूपीएससी में खुद सेलेक्ट होने का मोह छोड़ बच्चों को यूपीएससी के लिए तैयार करने का मन बनाया.


बच्चों को पढ़ाने में ही है सुख


विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विकास दिव्यकीर्ति टीचिंग को अपने लिए स्पिरिचुअलिटी जैसा मानते हैं. जो संतोष, जो सुख उन्हें बच्चों को पढ़ाने में मिलता है, वो कहीं और नहीं. उनकी दूरदर्शिता काम आयी और वे एक ऐसे टीचर के रूप में उभर कर सामने आए जिसकी कही बात स्टूडेंट्स आंख मूंदकर मान लेते हैं. उन्होंने अपने इस चयन को सही साबित कर दिखाया. 


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