गाजियाबाद में कपड़े धोने वाले शख्स के यहां जश्न का माहौल है और हो भी क्यों ना क्योंकि एक तरफ जहां दसवीं में उसकी बेटी ने जिला टॉप किया है तो वहीं 12वीं के रिजल्ट में बेटा जिले तीसर नंबर पर और अपना स्कूल टॉप किया है. यह घर है गाजियाबाद के डासना में रहने वाले शाहिद अली का. शाहिद अली कपड़े धोने का काम करते हैं आज इस घर में दुआएं बरस रही हैं और मिठाई खाई जा रही है मौका भी ऐसा ही है क्योंकि आज इस घर के दो चिरागों ने अपना और अपने परिवार का नाम आसमान की बुलंदियों पर लिख दिया है.
यूपी बोर्ड के 10वीं और 12वीं के रिजल्ट आज आ गए. गाजियाबाद में मंतशा ने 600 में से 559 नंबर लाकर जिला टॉप किया है. प्रतिशत की बात करें तो उसके 93.17 प्रतिशत है. मंतशा महर्षि दयानंद कॉलेज गोविंदपुरम की छात्रा है. तीन भाई-बहनों में मंतशा का एक बड़ा और एक छोटा भाई है. मंतशा के पिता शाहिद अली कपड़े धोने का काम करते हैं और उसी से पूरे परिवार का गुजर-बसर चलता है. मंतशा से जब पूछा गया जो उनके पिता की आमदनी कम है और क्या कभी उन्होंने पढ़ाई रोकने के लिए कहा तो मंतशा ने भरे गले से बताया. उसने कहा कि उसके पिता ने हमेशा उसे पढ़ाई के लिए बढ़ावा दिया और किसी चीज की कमी नहीं होने दी . मंतशा के मुताबिक उसके दो भाई है और उसके पिता ने कभी भी बेटे और बेटी में भेदभाव नही किया.
मंतशा का बड़ा भाई साहिल भी 12वीं का स्टूडेंट है. मंतशा और साहिल के मुताबिक वो रोजाना 3 से 4 घंटे पढ़ाई करती है. मैथमेटिक्स उसका फेवरेट सब्जेक्ट है. मंतशा के मुताबिक वो पढ़ाई का प्रेशर कभी नहीं लेती है और पढ़ाई को मजे लेकर पढ़ती है. उसका बड़ा भाई साहिल उसे पढ़ाता है. ऐसे परिवार से आकर जिस मुकाम पर पहुंचना अपने आप में बड़ी बात है. मंतशा चाहती है कि पढ़ाई को लेकर कभी बच्चे प्रेशर में ना आए और वह आराम से पढ़ाई करते रहे. मंतशा अब मैथ्स स्ट्रीम लेगी. मंतशा का सपना साइंटिस्ट बनना है. हालांकि उसका कहना है कि अगर वह किसी वजह से साइंटिस्ट ना बन पाए तो फिर वह इंजीनियर बनेगी. अब मंतशा चाहती है कि वो 12 वी के बोर्ड में अब से भी अच्छे नम्बर लाये. मंतशा के घर मे खुशी का माहौल है और उसके नम्बर से सभी बेहद खुश है. वही साहिल भी 12वीं में जिले में तीसरे नंबर पर और अपने स्कूल में फर्स्ट आया है उसके आठ 86.4 प्रतिशत अंक है. साहिल ने आईआईटी दिल्ली के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी शुरू कर रखी है .
वहीं दोनों होनहार बच्चों के पिता शाहिद बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि यहां तक का मुकाम उनके लिए बहुत आसान था. आमदनी कम है और कई बार मौके ऐसे भी आए कि जहां तहां से इंतजाम करके बच्चों को पढ़ाना पड़ा. आज जिस मुकाम पर यह बच्चे पहुंचे हैं इसका हर किसी का सपना होता है लेकिन असली सपने वही जी पाते हैं जो मेहनत करते हैं और अपने आप को इस लायक बनाते हैं.
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