Why Does Students Suicide: देश के बड़े संस्थान जैसे आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम वगैरह में एडमिशन पाने के बाद भी कुछ कैंडिडेट्स आत्महत्या का रास्ता अपनाते हैं. जब वे 12वीं में होते हैं तो जीवन का सबसे बड़ा ध्येय और सपना ही जेईई या नीट जैसी परीक्षा क्रैक करना होता है. एग्जाम पास करने बाद उन्हें अपने सपनों के संस्थान में प्रवेश मिलता है. जब इस कदर सपने पूरे हो रहे हों तो कोई कैसे जिंदगी की जंग हार जाता है. ऐसा क्या होता है जो इतना पाने के बाद भी कुछ छात्र मौत का रास्ता चुनते हैं.
पहले डालते हैं आंकड़ों पर नजर
साल 2023 के शुरुआती चार महीनों में ही अलग-अलग आईआईटी कैम्पसेस में 6 स्टूडेंट्स ने सुसाइड किया. आईआईटी मद्रास, गुवाहटी और बॉम्बे में ऐसा हुआ. ये डेटा राज्यसभा में सबमिट किया गया था जिसमें यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट सुभाष सरकार ने एक सवाल के जवाब में बताया कि पिछले सालों में करीब 98 स्टूडेंट्स ने खुद को खत्म किया. इनमें से अकेले 20 केस पिछले साल यानी 2023 के हैं.
इनमें से 39 छात्र आईआईटी के, 25 एनआईटी के, 4 आईआईएम के, 5 आईआईएसईआर के, 2 आईआईआईटीज के और बाकी के सेंट्रल यूनिवर्सिटी के थे. यूजीसी ने इस संबंध में कई कदम भी उठाए हैं पर ये मानो नाकाफी जान पड़ रहे हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
इस बारे में बात करते हुए क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. रिंकी लकड़ा कहती हैं कि आईआईटी या दूसरे किसी भी बड़े संस्थान में एडमिशन हो जाना इतनी भी बड़ी बात नहीं है और केवल इससे ही छात्रों पर पड़ रहे तमाम तरह के दवाब कम नहीं हो जाते. असली कांपटीशन तो वहां पहुंचकर शुरू होता है. अच्छे संस्थान में प्रवेश पा जाना समस्याओं को खत्म नहीं कर देता बल्कि नयी तरह की चुनौतियों को सामने लाता है. वहां स्टूडेंट्स दूसरी बहुत सी परेशानयों से जूझते हैं. कभी ये फ्रेंड सर्किल की वजह से होती हैं तो कभी एकेडमिक प्रेशर, फैमिली प्रेशर तो कभी कुछ और. कुछ स्टूडेंट्स जहां इस तरह का प्रेशर हैंडल कर लेते हैं तो कुछ सुसाइड का रास्ता अपनाते हैं. ये वो होते हैं जो जीवन के इन तमाम तरह के दबावों को नहीं सह पाते.
असली समस्या यहां आती है
जेईई या नीट जैसी परीक्षा पास करने के बाद जब आप किसी स्तरीय संस्थान में जाते हैं तो जहां पहले आप ही टॉपर थे, वहां आप जैसे हजारों टॉपर होते हैं. अब प्रतियोगिता इनके बीच होती है. हमेशा फर्स्ट आने वाला बच्चा (जिससे कई बार उसकी मानसिकता ऐसी हो जाती है कि मैं बेस्ट हूं) एक ऐसे माहौल में पहुंचता है जहां फर्स्ट आना तो दूर वो असाइनमेंट समय पर खत्म करने के लिए संघर्ष कर रहा है. ये दबाव उसके लिए नये और मुश्किल होते हैं.
नहीं सह पाते तमाम तरह के दबाव
स्टूडेंट्स को खत्म करती हैं समाज की उम्मीदें, परिवार और मां-बाप की उम्मीदें और सबसे ज्यादा खुद से की गईं उम्मीदें. इन बड़े संस्थानों में प्रवेश के पहले स्टूडेंट्स को लगता है कि बस आईआईटी में एडमिशन हो गया अब तो लाइफ सेट समझो. अब जो वो सालों से पढ़ रहे थे उससे उन्हें ब्रेक मिल जाएगा. पर सच तो ये है कि यहां पहुंचकर पहले से कई गुना ज्यादा पढ़ाई बढ़ जाती है. कभी वे एग्जाम पास नहीं कर पाते, कभी बैक आती है तो कभी प्रोजेक्ट पूरे नहीं कर पाते.
ऐसे में फैमिली की एक्सपेक्टेशन, उनकी खुद से एक्सपेक्टेशन इतनी बढ़ी होती है जो मेंटल प्रेशर को दोगुना कर देती है. एक तो वे पढ़ाई से कोप नहीं कर पा रहे, उस पर नई जगह, नये दोस्तों के बीच जगह बना रहे हैं और उस पर मां-बाप की अपेक्षाओं का दबाव. कई बार ये इतना बढ़ जाता है कि स्टूडेंट को लगता है इस जिंदगी से मौत भली है.
देते हैं वॉर्निंग साइन
एक्सपर्ट्स का मानना है कि सुसाइड जैसा कदम उठाने से पहले स्टूडेंट्स कुछ साइन जरूर देते हैं, बस उन्हें पहचानने वाला होना चाहिए. अगर वे कम खा रहे हैं, सबसे कट रहे हैं, ठीक से सो नहीं रहे, किसी से मिलना-जुलना पसंद नहीं कर रहे, फोन पर बात भी ढंग से नहीं करते, एकदम शांत और दुखी रहने लगे हैं और इन सब के पीछे कोई वाजिब वजह नहीं बता पाते तो सावधान हो जाना चाहिए. स्टूडेंट खुद को खत्म करने का डिसीजन एकदम से नहीं लेते. ये उनके अंदर लंबे समय से पक रहा होता है जिस पर एक्शन वो मौका पाते ही लेते हैं.
मदद के लिए कहें
मां-बाप को शुरू से घर में ऐसा वातावरण रखना चाहिए कि बच्चे को पता हो कि उससे जरूरी दुनिया में कुछ भी नहीं है. टीचर्स, मेंटर्स भी माहौल को भारी न बनने दें. हमेशा कम्यूनिकेशन की गुंजाइश रखें. अगर बच्चा कुछ कहना चाहे तो आपके पास आ सके. बचपन से उसके दिमाग में ये न भरें कि जीवन सेट करना है तो फलां नौकरी, फलां कॉलेज जरूरी है. बल्कि ये कहें कि उससे बढ़कर कुछ नहीं है. प्रेशर आते-जाते रहेंगे लेकिन जीवन फिर नहीं मिलेगा. इसकी अहमियत समझें और असफलताओं को जीवन से बड़ा कभी न बनाएं.
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