नई दिल्ली: भारत के पड़ोसी देशों के लेखकों की पहली पसंद भारतीय प्रकाशन संस्थान बनते जा रहे हैं. इन लेखकों की कई पांडुलिपियों को उनके देश में खारिज कर दिया जाता है, जबकि भारतीय प्रकाशक उनमें दिलचस्पी का इजहार करते हैं. इन प्रकाशन संस्थानों के संपादकों का कहना है कि अंतर्वस्तु (कंटेंट) के साथ अधिक प्रयोग के कारण पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के लेखकों का सफर उनके यहां आसान हो जाता है.


सबिन जावेरी ने पाकिस्तान से कहा, "मैं पश्चिम देशों की तुलना में जिस तरह की कहानियां लिखना चाहती हूं, उस मामले में भारतीय संपादकों को ज्यादा समझ वाला और सहयोग करने वाला पाया है. मुझे लगता है कि भारतीय और पाकिस्तानी दोनों ही आधुनिक समाज के साथ संघर्ष करने वाले सूक्ष्म समाजों में रहते हैं और इससे इन्हें पश्चिमी प्रकाशकों की तुलना में आतंकवादी-मुस्लिम जैसी बंधी बंधाई सोच से निपटने में आसानी होती है."


जावेरी की पहली किताब 'नोबडी किल्ड हर' को भारत में हार्परकोलिंस ने प्रकाशित किया है. यह एक रोमांचक उपन्यास है, जो एक नेता की राजनीतिक हत्या पर आधारित है. उन्होंने कहा कि भारतीय प्रकाशक अपनी प्रतिबद्धताओं से बहुत कम मुकरते हैं.


वहीं एक और लेखक हारून खालिद ने कहा, "अगर मैं अपनी किताब पाकिस्तान में प्रकाशित कराता हूं, तो प्रकाशक निश्चित तौर पर पुस्तक के कुछ हिस्सों को प्रकाशित नहीं करेंगे. पाकिस्तान में प्रकाशक इस बात को लेकर कुछ ज्यादा ही सजग रहते हैं कि क्या लिखा जाए और क्या नहीं."


उन्होंने कहा, "वे बेहद नुक्ताचीन होते हैं और पुस्तक के विवादित अंश से बचना चाहते हैं. लेखक तथा प्रकाशक जानते हैं कि कुछ विषयों पर तो अब वे सोच भी नहीं सकते."


उनकी दूसरी किताब 'अन सर्च ऑफ शिवा : अ स्टडी ऑफ फोक रिलिजियस प्रैक्टिसेस' साल 2015 में विमोचित हुई थी और उनकी नई किताब 'वॉकिंग विद नानक' एक बार फिर वेस्टलैंड छाप रहा है.


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