Lok Sabha Election 2019: 2019 का लोकसभा चुनाव अपने आखिरी दौर में हैं. पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं और दो चरण बाकी हैं. 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे और पता चलेगा कि देश की कमान किसके हाथों में जाएगी. हालांकि विपक्ष इस उम्मीद में है कि इस बार किसी को बहुमत नहीं मिलेगा. ऐसे में विपक्षी खेमे में इस बात पर चर्चा होने लगी है कि उनकी तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा. इस सिलसिले में अब पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का नाम सामने आया है.


दरअसल सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने आज इशारा किया कि चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी के नाम पर भी विचार हो सकता है. उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद सभी विकल्प खुले हैं ऐसे में पूर्व राष्ट्रपति को भी पीएम पद के लिए एप्रोच किया जा सकता है. बता दें कि 7 जून 2018 को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे. येचुरी ने कहा कि नागपुर जाने के बाद ये भी कहा जा रहा है कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो वहां से उनके नाम पर कोई दिक्कत नहीं होगी. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि जो भी नाम विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए इस समय चर्चा में चल रहे हैं उन पर सभी पहलुओं से विचार किया जाएगा लेकिन जब तक आम चुनाव के नतीजे नहीं आ जाते तब तक निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.


विपक्ष को एकजुट करने में भी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं प्रणब दा


प्रणब मुखर्जी को लेकर येचुरी ने जो इशारा किया है उसकी साफ तस्वीर 23 मई को आएगी जब आंकड़ें सामने आएंगे. लेकिन जहां तक विपक्ष को एकजुट करने का सवाल है तो इसमें भी प्रणब मुखर्जी अहम कड़ी साबित हो सकते हैं. उनके लंबे राजनीतिक अनुभव और वरिष्ठता का सम्मान सभी दलों के लोग करते हैं. ऐसे में समय आने पर अगर वे विपक्ष को एकजुट करने की कमान अपने हाथों में लेते हैं तो इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं. प्रणब मुखर्जी के रुतबे को इस बात से भी जाना जा सकता है कि जब यूपीए ने 2012 में उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था तो बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने भी उनके नाम का समर्थन किया.


एक बार पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा था कि जब 2004 में सोनिया गांधी ने उन्हें पीएम बनाया तो इस पद के लिए प्रणब मुखर्जी उनसे ज्यादा काबिल थे. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा लिखी गई किताब 'द कोलिशन ईयर्स 1996 - 2012' के विमोचन के मौके पर मनमोहन सिंह ने ये बात कही थी.


प्रणब मुखर्जी का सियासी सफर


83 साल के प्रणब मुखर्जी सियासी गलियारे में प्रणब दा के नाम से पुकारे जाते हैं. राजनीति में उनका लंबा अनुभव है जिसका लोहा हर कोई मानता है. यूपीए सरकार में प्रणब मुखर्जी के पास वित्त मंत्रालय संभालने के अलावा कई अहम जिम्मेदारियां थीं. उन्हें कांग्रेस के 'संकटमोचक' की संज्ञा दी गई. प्रणब मुखर्जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बांग्ला कांग्रेस से की थी. जुलाई 1969 में वे पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए. इसे बाद वे साल 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्य सभा के सदस्य रहे. इसके अलावा 1980 से 1985 तक राज्य में सदन के नेता भी रहे. मई 2004 में वे चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे और 2012 तक सदन के नेता रहे.


1986 में कांग्रेस से हो गए थे अलग


एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी. 1986 में प्रणब दा को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी पीएम बने. राजीव के पीएम बनने के बाद प्रणब मुखर्जी को पार्टी में किनारे कर दिया गया. वे कैबिनेट से बाहर कर दिए गए. इस सब से नाराज होकर आखिरकार प्रणब मुखर्जी ने 1986 में कांग्रेस से अलग होने का फैसला किया और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई.


प्रणब मुखर्जी की पार्टी ने 1987 में पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव लड़ा, पर उनकी पार्टी को पहले ही चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद प्रणब मुखर्जी ने 1988 में कांग्रेस में दोबारा वापसी कर ली. प्रणव मुखर्जी को कांग्रेस में दोबारा वापसी का इनाम जल्द ही मिला और उन्हें नरसिम्हा राव की सरकार में 1991 में योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया.


2004 में सोनिया गांधी ने जब पीएम बनने से मना कर दिया था, तो प्रणब मुखर्जी का नाम भी प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में शामिल हुआ. प्रणब मुखर्जी को मनमोहन की सरकार में रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री जैसे अहम पद मिले. 2012 में प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया और वो एनडीए समर्थित पी.ए. संगमा को हराकर देकर देश के 13वें राष्ट्रपति बने.