Centre For Media Studies Report: चुनावों के दौरान करोड़ों रुपये कैश जब्त होने की तस्वीरें हर बार नजर आती हैं, जिससे अंदाजा लगाया जाता है कि किसी भी राज्य या फिर लोकसभा के चुनाव में कैसे पानी की तरह पैसे बहाए जाते हैं. अब इसे लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि पिछले लोकसभा चुनाव (2019) के दौरान करीब 8 अरब डॉलर यानी 55 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए. जिसके बाद इस चुनाव ने खर्च के मामले में दुनियाभर के देशों के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए. ये खर्च 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से भी ज्यादा है. जिसमें करीब 6.5 बिलियन डॉलर का खर्च हुआ था. 


पिछले 20 साल में 6 गुना बढ़ा खर्च
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी और ज्यादा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने. इसी चुनाव को लेकर सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट सामने आई है. जिसमें बताया गया है कि चुनाव खर्च पिछले 20 सालों में 1998 से लेकर 2019 तक 9 हजार करोड़ से करीब 6 गुना बढ़कर 55 हजार करोड़ रुपये हो गया है. 


बीजेपी ने किया सबसे ज्यादा खर्च
रिपोर्ट में बताया गया है कि सत्ताधारी बीजेपी ने इस कुल खर्च का आधा पैसा अकेला चुनाव पर खर्च किया है. यानी बाकी सभी दलों के मुकाबले अकेले बीजेपी ने चुनाव पर बेतहाशा पैसा बहाया और पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. इस चुनाव में करीब 90 करोड़ वोटर्स ने हिस्सा लिया और ये करीब 75 दिनों तक चला. इस दौरान कई रैलियां, बड़े स्तर पर विज्ञापन और सोशल मीडिया कैंपेन पर जमकर पैसा खर्च किया गया.   


रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल पैसे का सबसे ज्यादा लगभग एक तिहाई सिर्फ प्रचार पर खर्च किया गया. दूसरा सबसे बड़ा खर्च वोटर्स के हाथों में सीधे पैसे पहुंचाना था. रिपोर्ट में एक अनुमान के तहत बताया गया है कि लगभग 15 हजार करोड़ रुपये अवैध तौर पर मतदाताओं के बीच बांटे गए. 


लोगों को बांटा गया हजारों करोड़ कैश
रिपोर्ट में कैश के बंटवारे के ट्रेंड को लेकर कहा गया है कि पिछले चुनाव में ये सबसे ज्यादा देखा गया. इसमें 10 से 12 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें नकद पैसे मिले थे. वहीं कई लोगों ने ये भी स्वीकार किया कि उनके जानने वाले और आसपास के लोगों को भी वोट देने के लिए नकद पैसे मिले थे. 2019 में ज्यादातर पार्टियों की तरफ से इसे एक रणनीति के तहत इस्तेमाल किया गया.


इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले अधिकारियों का कहना है कि ये सिर्फ उस अनुमान पर आधारित रिपोर्ट है, जिसे मीडिया रिपोर्ट, उम्मीदवारों के एनालिसिस और चुनावी अभियान पर रिसर्च कर तैयार किया गया है. इसके अलावा बाकी कई तरह के खर्च हो सकते हैं. उन्होंने इसे 'टिप ऑफ आइसबर्ग' बताया.


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