क्या उत्तर प्रदेश में मोदी लहर को रोक देगा अखिलेश-माया का 'DM फैक्टर'?
लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में नए-नए समीकरण बनने शुरू हो गए. अखिलेश यादव और मायावती गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनाव में अपनी 'ताकत' साबित कर चुके हैं. इसी भरोसे की वजह है कि कांग्रेस जैसे दल को भी इस गठबंधन में जगह नहीं दी गई है.
नई दिल्ली: देश में सबसे बड़े सियासी समर का आगाज हो चुका है, सभी दलों ने अपने सियासी योद्धाओं को मैदान में उतार दिया है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी इस सियासी समर को लेकर हलचल बेहद तेज हो गई है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने शनिवार को लखनऊ में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन का ऐलान किया. इस एलान के साथ ही लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में नए-नए समीकरण बनने शुरू हो गए. अखिलेश यादव और मायावती गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनाव में अपनी 'ताकत' साबित कर चुके हैं. इसी भरोसे की वजह है कि कांग्रेस जैसे दल को भी इस गठबंधन में जगह नहीं दी गई है.
सबसे पहले गठबंधन का गणित समझिए, यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं, जिनमें से 38 सीटों पर समाजवादी पार्टी और 38 सीटों पर ही बीएसपी चुनाव लड़ेगी. दो सीटों पर गठबंधन के सहयोगी चुनाव लड़ेंगे. अमेठी और रायबरेली की 2 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ दी गई हैं. एसपी-बीएसपी के गठबंधन में सहयोगी आरएलडी के लिए सिर्फ दो सीटें छोड़ी गई हैं. जबकि सूत्रों के मुताबिक आरएलडी को एक सीट समाजवादी पार्टी अपने कोटे से देगी.
इस गठबंधन का आधार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक है. एसपी के पास जहां यादव वोट बैंक है तो वहीं बीएसपी के पास दलित वोट बैंक है. इसके साथ ही मुस्लिम वोट की बात करें तो पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मुस्लिम वोट उसी के हिस्से जाता है जो बीजेपी को हराने में सक्षम हो. इस लिहाज से देखें तो एसपी-बीएसपी का गठबंधन उत्तर प्रदेश में बीजेपी को टक्कर देता नजर आ रहा है.
आंकड़ों के आइने में एसपी-बीएसपी गठबंधन की तस्वीर उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी गठबंधन का सीधा मतलब ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोट का एक साथ आना है. आबादी के हिसाब से देखें तो ओबीसी आबादी 42 से 45 प्रतिशत, दलित 22 प्रतिशत और मुस्लिम 16 प्रतिशत के करीब है. ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी यादवों (10%) की है. यादव समाजवादी पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है. इसके बाद लोधी (4%), कुर्मी (5%), मौर्या (5%) और अन्य (21%) हैं. अगड़ी जातियों की आबादी करीब 18 से 20 प्रतिशत है. इनमें ब्राह्मण 9%, राजपूत 5%, वैश्य 4%, त्यागी और भूमिहार 2% हैं. अगड़ी जातियों का वोट बीजेपी के हिस्से का माना जाता है. खासकर ब्राह्मण और वैश्य समुदाय की पसंद बीजेपी रही है.
दलित वोट क्यों है महत्वपूर्ण? यूपी में करीब 66 समुदाय ऐसे हैं जो अनुसूचित जाति में आते हैं. इनमें जाटव, पासी, धोबी, कोरी, बाल्मीकि और खटीक शामिल हैं. इनमें सबसे बड़ा समुदाय जाटवों (53.3%) का है. कुल दलित आबादी में जाटवों का हिस्सा 56.3% है. मायावती भी इसी समुदाय से आती हैं. राज्य में लोकसभा की 41 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है.
मुस्लिम वोट क्यों है महत्वपूर्ण? प्रदेश में मुस्लिमों की आबादी 16% है, इसके साथ ही 29 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत से ज्यादा है. मुस्लिम वोट बीएसपी और एसपी में बंटता रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें मायावती ने 100 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. प्रदेश में मुस्लिम वोट एसपी, बीएसपी और कांग्रेस बंटा था. अब दो बड़ी पार्टियों के साथ आने से मुस्लिम वोट के भी एक साथ आने की संभावना बढ़ गई है.
क्या कहता है 2014 का चुनाव परिणाम? -बीजेपी- 71 सीट, वोट प्रतिशत- 42.63% -अपना दल- 2 सीट, वोट प्रतिशत- 1% -समाजवादी पार्टी- 5 सीट, वोट प्रतिशत- 22.35% -कांग्रेस- 2 सीट, वोट प्रतिशत- 7.53% -बीएसपी- 0 सीट, वोट प्रतिशत- 19.77% -आरएलडी- 0 सीट, वोट प्रतिशत- 0.86%
इस वोट प्रतिशत को अगर एक साथ करके देखें तो मायावती और अखिलेश के साथ आने से दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत 42.12 फीसदी तक पहुंच जाता है यानि इस हिसाब से एसपी-बीएसपी गठबंधन से बीजेपी को सीधी टक्कर मिलने के आसार हैं. कांग्रेस की ओर से सभी सीटों पर लड़ने की बात भले ही कही जा रही हो लेकिन भविष्य की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया गया है. इस लिहाज से देखें तो अगर आगे चलकर एसपी-बीएसपी कांग्रेस का हाथ थामते हैं तो बीजेपी के माथे की लकीरें और बढ़ जाएंगी