Andhra Pradesh Assembly Election 2024: कर्नाटक और तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत ने आंध्र प्रदेश में पार्टी की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. पार्टी अब यहां उत्साह के साथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. दरअसल, जिस तरह कर्नाटक जीत के बाद ए. रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली तेलंगाना कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में आक्रामक तरीके से लड़ाई लड़ी और 10 साल से सत्ता में बैठी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के खिलाफ लगातार अभियान चलाया, उससे राज्य में उसे बड़ी जीत मिली. अब तेलंगाना की जीत ने कांग्रेस के नेताओं को और उत्साह से भर दिया है.


हालांकि आंध्र प्रदेश की स्थिति कुछ और है और पार्टी के लिए तेलंगाना की तरह सफलता हासिल करना इतना आसान नहीं है, लेकिन पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) को शिकस्त देने के इरादे से अभियान में जुट गई है. कुछ इलाकों में कांग्रेस को मजबूत भी बताया जा रहा है, लेकिन उसके सामने सिर्फ वाईएसआर कांग्रेस ही नहीं, बल्कि टीडीपी और जन सेना गठबंधन भी है.


इस तरह आंध्र प्रदेश में खिसकती गई कांग्रेस की जमीन


आंध्र प्रदेश से अलग कर तेलंगाना की स्थापना के बाद से कांग्रेस ने यहां के हिस्से में प्रासंगिकता खो दी. आंध्र प्रदेश में 2014 और 2019 दोनों चुनावों में इसका प्रदर्शन निराशाजनक था. पार्टी का विधानसभा या लोकसभा में एक भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं था. उसका वोट शेयर गिरकर 1.17% रह गया. आंध्र प्रदेश के लोगों ने राज्य के विभाजन के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस को दोषी ठहराया. इसके अलावा पार्टी कई मुद्दों से जूझ रही थी, जिनमें नेतृत्व की कमी, कैडर के साथ संचार की कमी, आंतरिक कलह और घटती जमीनी उपस्थिति शामिल थी.


इस चुनाव में कांग्रेस के लिए ये हैं अच्छे संकेत


आंध्र प्रदेश में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण कई नेता वाईएसआरसीपी खेमे में चले गए. अब, कांग्रेस अपने कुछ नेताओं को वापस लाने और 2024 के आम और विधानसभा चुनावों के लिए अपनी संभावनाओं को उज्ज्वल करने का प्रयास कर रही है. आंध्र प्रदेश कांग्रेस प्रमुख गिदुगु रुद्र राजू का कहना है कि पार्टी कैडर का मनोबल बढ़ाने के लिए कई बैठकें आयोजित करने की योजना बना रही है.


इन बैठकों को राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, डी.के. शिवकुमार, रेवंत रेड्डी और वाई.एस शर्मिला जैसे वरिष्ठ नेता संबोधित कर सकते हैं. वाई.एस. शर्मिला आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की बहन हैं. इन्होंने अपना खुद का संगठन वाईएसआर तेलंगाना पार्टी शुरू करने के लिए वाईएसआरसीपी से दूरी बना ली थी. तेलंगाना चुनाव में शर्मिला ने कांग्रेस का समर्थन किया था. कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि शर्मिला को वाई.एस. की विरासत मिले.


सत्ता विरोधी लहर भी दिला सकती है जीत


अगर तेलंगाना की तरह जगन रेड्डी को भी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है, तो यह कांग्रेस को जीत दिला सकती है. क्योंकि वाईएसआरसीपी का नाराज वोटर कांग्रेस के खेमे में ही जाएगा. दरअसल, वाईएसआरसीपी का वोटर पहले कांग्रेस का ही था. एक्सपर्ट बताते हैं कि महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों जैसे पारंपरिक कांग्रेस मतदाताओं का एक हिस्सा सत्तारूढ़ पार्टी से दूर जा सकता है.


सभी 175 सीटों पर लड़ने के मूड में कांग्रेस


इस बार कांग्रेस आंध्र प्रदेश की सभी 175 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है, जबकि 2019 में उसने चुनिंदा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था. कांग्रेस के राज्य प्रमुख रुद्रराजू का कहना है कि इस बार हम सभी 175 सीटों पर अकेले लड़ने की तैयारी में हैं. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि वाम दलों जैसे समान विचारधारा वाले दलों के लिए लड़ाई में शामिल होने की हमेशा गुंजाइश रहती है.


टीडीपी को भी पहुंच सकता है फायदा


यदि जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआरसीपी आगामी विधानसभा चुनाव में लड़खड़ाती है तो इसका फायदा टीडीपी और जन सेना गठबंधन को भी मिल सकता है. दरअसल, 2019 के चुनावों में बेशक टीडीपी और वाईएसआरसीपी के बीच वोट शेयर का अंतर लगभग 10 प्रतिशत था, लेकिन कुछ विधानसभा क्षेत्रों में टीडीपी उम्मीदवारों की हार का अंतर 2,000 या 1,500 वोटों से कम था.


टीडीपी पहले ही पवन कल्याण की जेएसपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुकी है. जेएसपी, जिसने 2019 में अकेले चुनाव लड़ा था और करीब 5.58% वोट शेयर हासिल किया था. इसके अलावा कथित कौशल विकास घोटाले में गिरफ्तारी और राज्य अपराध जांच विभाग की ओर से उनके खिलाफ मामले दर्ज किए जाने के बाद टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के प्रति कुछ सहानुभूति दिखाई दे रही है.


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