MCD चुनाव: जीत के बाद भी AAP का मेयर बनाने के लिए केजरीवाल को लड़नी होगी पर्दे के पीछे की जंग, नगर निगम में लागू नहीं होता दलबदल कानून
नगर पालिकाओं और निकायों में दलबदल कानून लागू नहीं होता है. मेयर सहित सभी पार्षद पार्टी बदल सकते हैं. आम आदमी पार्टी के लिए ये चिंता की बात है.
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दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD Election) की 250 सीटों के लिए बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच घमासान जारी है. एग्जिट पोल जहां बीजेपी का सूपड़ा साफ होने का दावा कर रहे थे, तो वहीं नतीजों में वो आम आदमी पार्टी को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही है.
हालांकि बीजेपी अभी आम आदमी पार्टी से करीब 25 से ज्यादा सीटें पीछे नजर आ रही है. एमसीडी में मेयर बनाने के लिए बहुमत 126 सीटों का चाहिए. आम आदमी पार्टी को 130 सीटें अभी मिलती नजर आ रही हैं. वहीं बीजेपी के खाते में 105 सीटें जाती दिख रही हैं. कांग्रेस 11 सीटों पर तो अन्य को 5 सीटें मिलती नजर आ रही हैं.
लेकिन एमसीडी की लड़ाई सिर्फ इतने से ही खत्म होती नजर आ रही है. एक बार सभी सीटों के नतीजे आ जाने के बाद ही पता चल पाएगा कि कौन इस पर काबिज होगा. यहां सीटों का संख्या बहुत मायने रखती है. अगर आम आदमी पार्टी बहुमत (126 सीट) से 20-25 सीटें ज्यादा पाती है तभी पुख्ता तौर पर माना जाएगा कि इस बार एमसीडी में इसी पार्टी की सरकार होगी.
लेकिन अगर पार्टी बहुमत के आसपास अटकती है तो फिर एमसीडी में उसकी सरकार बनना मुश्किल हो सकता है. इसकी बड़ी वजह है कि पार्षदों के ऊपर दलबदल का कानून लागू नहीं होता है. बीजेपी जब विधानसभा चुनाव के बाद इस कानून के रहते हुए भी पर्दे के पीछे होने वाली राजनीति के जरिए सरकार बना सकती है तो एमसीडी का किला बनाए रखने में उसके रणनीतिकारों को पार्षदों को अपने पाले में जुटाना कोई बड़ी मुश्किल वाली बात नहीं होगी.
बीजेपी ने गोवा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में दूसरी पार्टी के विधायकों का समर्थन आसानी हासिल किया था. गोवा और मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सरकार में नहीं है.
दलबदल कानून क्या है?
इस कानून को लाकर विधायकों और सांसदों को पैसे या किसी और चीज का प्रलोभन देकर दूसरी पार्टी में शामिल कराने का भ्रष्टाचार कम कराने की कोशिश की गई है. इस कानून को लेकर कई नियम बनाए गए हैं.
1- यदि सांसद या विधायक अपनी पार्टी की सदस्यता से खुद की मर्जी से इस्तीफा दे देता है.
2- सांसद या विधायक पार्टी के निर्देश के खिलाफ जाकर किसी मुद्दे पर सदन में वोट करता है या वोटिंग प्रक्रिया से दूर रहता है.
3- कोई निर्दलीय सांसद या विधायक किसी पार्टी में शामिल हो जाता है.
4- कोई सदस्य मनोनीत होने के 6 महीने बाद किसी पार्टी में शामिल हो जाता है.
निकायों में नहीं लागू होता है दलबदल कानून
सांसद और विधायक अपनी मर्जी से पार्टी नहीं बदल सकते हैं या सदन में पार्टी की मर्जी के बिना किसी मुद्दे पर वोट नहीं कर सकते हैं. लेकिन मेयर, नगर परिषद और पालिकाओं के प्रमुख और पार्षदों पर यह नियम लागू नहीं होता है. और यही बात आम आदमी पार्टी के लिए खतरा साबित हो सकता है.
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