JDS on Karnataka Election 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. इस बार के चुनाव में 10 मई को वोटिंग होगी और 13 मई को रिजल्ट आएंगे. वर्तमान में राज्य की सत्ता संभाल रही बीजेपी दोबारा से वापसी करने की फिराक में है. उधर, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) की निगाहें मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने पर गड़ी हुई हैं.
हाल-फिलहाल की बात करें तो क्षेत्रीय दलों का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है, जो जेडी (एस) के लिए भी बुरा साबित हो सकता है. लेकिन, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण के इलाकों में अभी भी क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है. अब सवाल उठता है कि क्या कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 में पूर्व पीएम एच डी देवेगौड़ा के नेतृत्व वाले जेडी (एस) के लिए राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई होगा या एक बार फिर जेडी (एस) किंग मेकर के रूप में उभरेगी?
एबीपी सी-वोटर के ओपिनियन पोल में फिसड्डी
कर्नाटक के चुनावी ऐलान के साथ ही एबीपी सी-वोटर के ओपिनियन पोल सामने आए थे. जिसमें जेडी (एस) के लिए अच्छे संकेत नहीं दिखे. राज्य की सत्ता संभालने के सबसे ज्यादा चांस कांग्रेस के मिल रहे हैं.
दूसरे नंबर में बीजेपी और तीसरे नंबर पर जेडी (एस) दिखाई दे रही है. जेडी (एस) को अपने दम पर सरकार बनाने के संकेत रत्ती भर भी नहीं नजर आ रहे हैं. ऐसे में बताया जा रहा है कि अगर कांग्रेस इधर-उधर हो जाती है, तो साल 2018 के चुनाव की तरह दोबारा से जेडी (एस) किंगमेकर की भूमिका में हो सकती है.
दो दशक पहले हुआ था गठन
आज से करीब दो दशक पहले साल 1999 में जेडी (एस) पार्टी गठन हुआ था. गठन के बाद से जेडी (एस) कभी भी अपने बलबूते पर सरकार नहीं बना पाई है. लेकिन, जेडी (एस) ने कांग्रेस और बीजेपी के साथ अलग-अलग समय में गठबंधन कर सत्ता का थोड़ा सुख भोगा है. फरवरी, 2006 से बीजेपी के साथ 20 महीनों के लिए और मई, 2018 के बाद 14 महीनों के लिए कांग्रेस के साथ जेडी (एस) गठबंधन में रही है, जिसमें दोनोंं बार के मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी रहे हैं.
जेडी (एस) को 123 सीटें जीतने की उम्मीद
इस बार के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडी (एस) पार्टी ने कुल 224 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जिसमें जेडी (एस) ने मिनिमम 123 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाने की उम्मीद की है. इसके लिए जेडी (एस) ने 'मिशन 123' का टारगेट बनाया है. इसी क्रम में कुमारस्वामी 'पंचतंत्रा यात्रा' के तहत क्षेत्रीय कन्नडिगा गौरव का आह्वान करते हुए वोट मांग रहे हैं और बीजेपी-कांग्रेस के खिलाफ जमकर हमला बोल रहे हैं.
उनके मुताबिक, वह कन्नड अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं. दरअसल, क्षेत्रीय पार्टियों की सबसे बड़ी पार्टी जेडी (एस) को कन्नड़ गौरव की पहचान के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए यह बात कुमारस्वामी के पक्ष में जाती है. हालांकि, जेडी(एस) पार्टी परिवारवाद के आरोपों से जूझ रही है.
उधर, कुछ राजनीतिक जानकारों और जेडी (एस) पार्टी के एक वर्ग को इस लक्ष्य को लेकर संदेह है. साल 2004 के विधानसभा चुनावों में जेडी (एस) पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन किया था, जिसमें उसने 58 सीटें जीती थीं. फिर साल 2013 में जेडी (एस) पार्टी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा, जिसमें उसने 40 सीटों पर विजय प्राप्त की थी और साल 2018 के चुनाव में जेडी (एस) पार्टी के खाते में 37 सीटें आई थी.
जेडी (एस) पार्टी खो रही अपना वोट बैंक
वोक्कालिगा समुदाय में अच्छी पकड़ होने की वजह से जेडी (एस) पार्टी के वोट में कोई गिरावट नहीं हुई है. जेडी (एस) पार्टी का वोट शेयर 18 से 20 प्रतिशत के बीच ही है. लेकिन, राजनीतिक जानकारों की मानें तो वोक्कालिगा समुदाय में जेडी (एस) की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है और कांग्रेस मजबूत हो रही है. इसकी वजह वोक्कालिगा समुदाय से आने वाले कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार हैं.
उधर, वोक्कालिगा बहुल पुराने मैसूर क्षेत्र में बीजेपी ने भी अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया है. हाल ही में बीजेपी ने मुस्लिमों का 4 प्रतिशत आरक्षण काटकर लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय में बांट दिया है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, वोक्कालिगा बहुल पुराने मैसूर क्षेत्र और उत्तरी कर्नाटक के कुछ चुनिंदा इलाकों से आगे बढ़ने में जेडी (एस) अभी भी असमर्थ है. इसी वजह से वो अपने दम पर सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाती है.
जेडी (एस) के संरक्षक का खराब स्वास्थ
खराब स्वास्थ पार्टी के संरक्षक और पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा का स्वास्थ खराब है, जिसकी वजह से चुनाव के प्रचार-प्रसार में सक्रिय नहीं हैं. इसकी लगभग सारी जिम्मेदारी कुमारस्वामी के कंधों पर है. जेडी (एस) के पास बड़े नेता नहीं हैं, जो अपने दम पर वोट दिलवा सकें. इसी वजह से जेडी (एस) कोई निर्वाचन क्षेत्रों में योग्य उम्मीदवार तक नहीं मिल पाते हैं. लेकिन, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कर्नाटक में अभी भी जेडी (एस) एक ताकत है और उसे खारिज करना जल्दबाजी होगी. क्योंकि, कांग्रेस या बीजेपी में से कोई भी अपने बलबूते सरकार नहीं बना पाती है तो सत्ता की सुनहरी चाबी जेडी (एस) के पास ही होगी, जैसा कि पिछले चुनावों में देखा जा चुका है. अब देखना ये होगा कि क्या जेडी (एस) पार्टी किंग होगी या किंगमेकर?
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