नई दिल्ली: देश में लोकसभा चुनाव अपने आखिरी दौर में हैं, अब सिर्फ दो चरणों का चुनाव बाकी है. इन दो चरणों में 118 सीटों पर वोटिंग होनी बाकी है. चुनावी घमासान में नेताओं के दावे के साथ ही चुनाव के मुद्दे भी बनते-बिगड़ते रहते हैं. इन्हीं मुद्दों में एक है धारा 370, ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपर बीजेपी और कांग्रेस अलग-अलग ध्रुवों पर खड़ी नजर आती हैं. दोनों पार्टियों के घोषणापत्र भी इस बात की तस्दीक करते हैं. अपनी '2019 के 19 मुद्दे' में हमने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को भी शामिल किया है.



कांग्रेस और बीजेपी के घोषणा पत्र में इस मुद्दे को जगह दी गई लेकिन दोनों की राय बिल्कुल अलग है. बीजेपी 370 हटाने के पक्ष में है, तो कांग्रेस इसके खिलाफ है. कांग्रेस का कहना है कि संविधान में शामिल अनुच्छेद 370 को बदलने की न तो अनुमति दी जायेगी, न ही ऐसा प्रयास होगा. जबकि बीजेपी का कहना है कि जनसंघ के वक्त से ही अनुच्छेद 370 पर हमारा रुख साफ है.

बीजेपी के घोषणापत्र के मुताबिक पार्टी इस बार भी धारा 370 हटाने को लेकर प्रतिबद्ध है. पार्टी ने कहा कि हम जनसंघ के समय से अनुच्छेद 370 के बारे में अपने दृष्टिकोण को दोहराते हैं. बीजेपी ने कहा हम धारा 35ए को भी खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. वहीं कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अनुच्छेद 370 में कोई भी बदलाव नहीं किया जाएगा. पार्टी ने कहा है कि इस संवैधानिक स्थिति को बदलने की न तो अनुमति दी जायेगी, न ही ऐसा कुछ भी प्रयास किया जायेगा.


खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रहे हैं. पीएम ने कांग्रेस के घोषणापत्र को भी निशाने पर लिया. महाराष्ट्र के लातूर में एक रैली में प्रधानमंत्री ने कहा, ''कांग्रेस कह रही है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 कभी नहीं हटाई जाएगी. जो बात कांग्रेस का ढकोसला पत्र कह रहा है, वही बात पाकिस्तान भी कह रहा है. जम्मू कश्मीर में 2 प्रधानमंत्री की बात करने वाले लोग क्या जम्मू-कश्मीर के हालात सुधार पाएंगे? इनकी सच्चाई देश के हर व्यक्ति को समझनी चाहिए. अपने वोट बैंक और अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इन लोगों ने देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है..''


जम्मू कश्मीर से खुलकर उठी विरोध की आवाज
जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम और कुछ समय पहले तक बीजेपी के साथ सरकार में सहयोगी महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी को इस मुद्दे पर धमकी दी. महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों, तुम्हारी दास्तान तक नहीं होगी दास्तानों में. महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यदि आप जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करते हैं तो आप राज्य को देश से भी मुक्त करेंगे. मैंने कई बार कहा है कि अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को देश से जोड़ता है. जब आप इस सेतु को तोड़ते हैं, भारत राज्य पर अपनी वैधता भी खो देगा. वह कब्जा करने वाली ताकत बन जाएगा.

वहीं जम्मू कश्मीर के ही एक और पूर्व सीएम फारुक अब्दुल्ला ने भी धारा 370 पर कड़ी प्रतिक्रिया दी जिस पर बाद में विवाद भी हुआ. उन्होंने कि अगर बीजेपी जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाती है तो हमारे लिए इनसे आजाद होने का रास्ता साफ हो जाएगा. फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ''ये क्या उसको हटाना चाहते हैं. सोचते हैं बाहर से लाएंगे, बसाएंगे, हमारा नंबर कम कर देंगे, हम सोते रहेंगे? हम उनका मुकाबला करेंगे, 370 को कैसे खत्म करेंगे? अल्लाह की कसम कहता हूं, अल्लाह को यही मंजूर होगा, हम इनसे आजाद हो जाएं. करें हम भी देखते हैं. देखता हूं फिर कौन इनका झंडा खड़ा करने के लिए तैयार होगा.''

जब बीजेपी को अपने सहयोगी से नहीं मिला समर्थन!
बीजेपी के अपने सहयोगी से भी धारा 370 के मुद्दे पर अंदरखाने मतभेद की बात अब सबके सामने आ गई है. बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने अपना घोषणापत्र जारी नहीं किया. जानकारी के मुताबिक, अयोध्या में राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर नीतीश की पार्टी और बीजेपी में मतभेद है. माना जा रहा है कि जेडीयू की धारा 370 और राम मंदिर के मुद्दे पर अलग राय है.

नीतीश की पार्टी ने धारा 370 की रक्षा करने की कसम खाई और साथ ही राम मंदिर निर्माण का फैसला कोर्ट के हवाले छोड़ दिया. इसीलिए अगर जेडीयू अपना घोषणापत्र जारी करती तो मतभेद औपचारिक रूप से सामने आ जाता. विरोधी पार्टी घोषणापत्र जारी नहीं होने को लेकर नीतीश को घेर रहे हैं, लेकिन बीजेपी कह रही है कि कोई मतभेद नहीं साथ मिलककर मोदी को फिर पीएम बनाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है धारा 370 का मामला
बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय धारा 370 का मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी जा चुके हैं. फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई के अनुरोध पर विचार करने की बात कही थी. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने याचिका कर्ता से कहा कि अपना उल्लेख संबंधी मेमो रजिस्ट्रार को दे दीजिये. हम इस पर गौर करेंगे. उपाध्याय ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि संविधान तैयार करते समय यह विशेष प्रावधान अस्थाई स्वरूप का था और 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर संविद सभा के भंग होने के साथ ही अनुच्छेद 370(3) समाप्त हो गया है. याचिका में कहा गया है कि यह एक राष्ट्र-एक विधान, एक राष्ट्रगान और एक ध्वज के सिद्धांत के खिलाफ है.

क्या है धारा 370 और इसके लागू होने की कहानी?
भारतीय संविधान के अनुसार आर्टिकल 370 जम्मू कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देता है. हालांकि, यह एक टेंपररी प्रोविजन है. इसके तहत भारतीय संविधान का कोई भी नियम जो कि देश के हर राज्यों पर लागू होता है वह जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होता है. यह आर्टिकल जम्मू कश्मीर को यह अधिकार देता है कि रक्षा, विदेश और कम्युनिकेशन को छोड़कर किसी भी मामले पर कानून बनाने और उसे राज्य में लागू करने के लिए केन्द्र सरकार को राज्य सरकार की सहमति आवश्यक है. आर्टिकल 360 के तहत केन्द्र सरकार जम्मू कश्मीर में फाइनेंशियल इमरजेंसी नहीं लगा सकती है. यहां सिर्फ युद्द और बाहरी हस्तक्षेप की स्थिति में आपातकाल लगाया जा सकता है. आर्टिकल 370 के तहत भारतीय संसद जम्मू कश्मीर राज्य के बॉर्डर को कम और अधिक नहीं कर सकती है.

साल 1949 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीरी नेता शेख अब्दुल्लाह को निर्देश दिया था कि वह देश के कानून मंत्री बीआर अम्बेडकर से कश्मीर के लिए उपयुक्त कानून ड्राफ्ट करवाएं. संविधान निर्माता डॉ बीआर अम्बेडकर ने आर्टिकल 370 के प्रोविजन को ड्राफ्ट करने से इनकार कर दिया था. बीआर अम्बेडकर के इनकार कर दिए जाने के बाद इस आर्टिकल को गोपालास्वामी अय्यंगार ने बनाया. गोपालास्वामी अय्यंगार जवाहर लाल नेहरू के पहले कैबिनेट में बिना किसी मंत्रालय के मंत्री थे. वह जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के दीवान भी रह चुके थे.