नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने असम की राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे से शामिल नहीं किये गये 40 लाख से अधिक लोगों की शंकाओं को दूर करते हुये मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इससे लोकसभा चुनाव में मत देने का उनका अधिकार प्रभावित नहीं होगा. बशर्ते मतदाता सूची में उनके नाम होने चाहिए.
शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग से यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि यदि किसी व्यक्ति का नाम 31 जुलाई को प्रकाशित होने वाली अंतिम असम राष्ट्रीय नागरिक पंजी में शामिल नहीं हुआ परंतु मतदाता सूची में होगा तो ऐसी स्थिति में क्या होगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा कि जनवरी, 2017, 2018 और 2019 के लिये पुनरीक्षित मतदाता सूचियों में शामिल किये गये या निकाले गये नामों का विवरण 28 मार्च तक उपलब्ध कराए.
इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने आयोग के सचिव, जो कोर्ट के निर्देश पर व्यक्तिगत रूप से हाजिर थे, से जानना चाहा कि ऐसे व्यक्तियों की क्या स्थिति होगी जिनका नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे में नहीं है लेकिन मतदाता सूची में शामिल है.
वोट देने का अधिकार प्रभावित नहीं होगा.
शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आठ मार्च को आयोग के सचिव को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया. इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कई श्रेणियों के लोगों को आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है. आयोग के सचिव ने जवाब दिया कि नागरिक पंजी में नाम शामिल नहीं किये जाने की वजह से ऐसे लोगों के मत देने का अधिकार प्रभावित नहीं होगा.
याचिका पर 28 मार्च को आगे सुनवाई की जायेगी
आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि आयोग ने 2014 में ही यह स्पष्ट कर दिया था. उन्होंने कहा कि कोर्ट को गोपाल सेठ और सुशांत सेन की याचिका पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि उनके दावों के विपरीत उनके नाम पिछले तीन साल में कभी भी मतदाता सूची से काटे नहीं गये. उन्होंने कहा कि इस तरह की याचिका पर कोर्ट की कोई भी टिप्पणी निर्वाचन आयोग के खिलाफ जबर्दस्त प्रचार की तरह होगी जैसे वह कुछ गलत कर रहा था. पीठ ने कहा इस याचिका पर 28 मार्च को आगे सुनवाई की जायेगी.
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