नई दिल्ली: अशोक गहलोत राजस्थान की राजनीति का वो चेहरा हैं जिसका जादू वोटरों पर खूब चलता है. गहलोत में न नेताओं जैसा दंभ है और न ही दो बार सीएम रहने का घमंड. जिससे मिलते हैं अपने सौम्य व्यवहार से उसका दिल जीत लेते हैं. विरोधी भी जिसके कायल हैं अशोक गहलोत ऐसे राजनेता का नाम है. अशोक गहलोत जोधपुर के सरदारपुरा से लगातार चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार पांचवीं बार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. राजस्थान की राजनीति में वह कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा हैं और अब तो उनका दखल केंद्र की राजनीति में भी है.


अशोक गहलोत का अनुभव
* अशोक गहलोत अभी कांग्रेस के महासचिव हैं.
* पांच बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं.
* इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिंहा राव की सरकार में मंत्री रहे हैं.
* 2 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.


अशोक गहलोत माली जाति से आते हैं. कम ही लोग जानते हैं कि उनके पूर्वजों का पेशा जादूगरी था. उनके पिता भी जादूगर थे. गहलोत ने जादू सीखा भी और कुछ दिन इसे पेशे के तौर पर अपनाया भी. लेकिन अशोक गहलोत का असली जादू सियासत के मैदान में चला.


गहलोत की राजनीति को समझने के लिए बहुत पीछे जाना होगा. सियासत में उतरने की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की थी. 1973 से 1979 में वह एनएसयूआई राजस्थान के अध्यक्ष रहे. करीब 1977 का वक्त रहा होगा जब इमरजेंसी के बाद कांग्रेस विभाजन के संकट से जूझ रही थी. इसी दौरान पहली बार आगे बढ़कर गहलोत ने टिकट मांगा था. तब उनकी उम्र सिर्फ 26 साल थी. गहलोत का दावा है कि इसके बाद से उन्हें ना तो टिकट मांगने की जरूरत पड़ी और ना ही पद.


गहलोत के लिए बड़ा मौका 1980 में आया जब जोधपुर लोकसभा का चुनाव लड़ने से सीनियर नेता पीछे हट गए. इस तरह गहलोत का राजनीति में दाखिल होने का रास्ता खुल गया. उस वक्त उनके दोस्त रघुवीर सैन का सैलून चुनावी कार्यालय बन गया. गहलोत बाइक पर बैठकर प्रचार किया करते थे. इंदिरा की लहर में वो संसद में दाखिला पा गए और फिर उन्होंने पलट कर कभी नहीं देखा.


1998 से गहलोत की राजनीति का केंद्र राजस्थान ही हो गया. 1998 में उन्होंने तमाम बड़े नेताओं की चुनौती के बीच सीएम पद संभाला. इसे अशोक गहलोत का जादू ही कहा जाएगा उन्होंने एक नहीं दो बार राजस्थान का सीएम पद संभाला.


गहलोत की राजनीति की ताकत क्या है?
गहलोत के साथ सबसे बड़ी बात ये जुड़ी है कि उनकी छवि बेदाग है. अपनी छवि को लेकर वो सजग भी रहते हैं. साथ ही विवादित बयानों से कोसों दूर रहते हैं. गलती हो जाती है तो माफी मांगने से पीछे नहीं हटते. जैसे इस बार चुनाव प्रचार के दौरान कौन बनेगा करोड़पति जैसा बयान उन्होंने दे डाला था.


अशोक गहलोत दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री का पद संभाल चुके हैं. इस बार केंद्र में मजबूत होने के बाद भी उन्होंने राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा. यहीं से सवाल पैदा होता है कि अगर कांग्रेस को बहुमत आता है तो क्या अशोक गहलोत सत्ता संभालेंगे क्योंकि सत्ता का सबसे ज्यादा अनुभव उनके पास है.


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हालांकि युवा सचिन पायलट की भी दावेदारी मजबूत है. अगर हाईकमान गहलोत को केंद्रीय राजनीति में ही रखने का फैसला लेता है तो सचिन पायलट के सिर ताज सज सकता है. लेकिन तब भी राजस्थान की जीत के साथ गहलोत का कद कांग्रेस में बढ़ना तय है. चुनाव के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे.


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