नई दिल्ली: 21अक्टूबर को महाराष्ट्र और हरियाणा में लोग लंबी-लंबी कतारों में खड़े होकर आने वाले पांच साल कैसे होंगे, इसकी रूपरेखा तय करेंगे और यह आपके वोट से तय होगा. यह चुनाव देवेंद्र फडणवीस, मनोहर लाल खट्टर के साथ ही साथ पीएम नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के लिए भी बेहद खास है. इस चुनाव का परिणाम सूबे की सरकारों के बीते पांच साल के कामकाज पर मुहर होगा. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अनुच्छेद 370 को दोनों राज्यों के करीब करीब हर रैली में मुद्दा बना रहे हैं. इसके जरिए विपक्ष को घेर रहे हैं. दूसरी तरफ बेरोजगारी और सांप्रदायिका का सत्ता पर आरोप लगाते हुए विपक्ष बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए हर संभव कोशिश में जुटा हुआ है. चुनाव का बिगुल बजते ही वादों का सुरीला संगीत शुरू हुआ, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल पड़ा. अब जनता के फैसले का दिन 21 अक्टूबर है.


दो राज्यों में बीजेपी की बंपर जीत, विपक्ष का सूपड़ा साफ
वैसे तो चुनाव परिणाम 24 अक्टूबर के गर्भ में छुपा है लेकिन एबीपी न्यूज सी वोटर के फाइनल सर्वे से इशारा समझ सकते हैं. वैसे अटकलबाजी उस समय तक चलती रहती है, जब तक अंतिम नतीजों का एलान नहीं हो जाता. एबीपी न्यूज सीवोटर सर्वे के मुताबिक महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं. बीजेपी और उसके सहयोगियों को 194 सीटों पर जीत हासिल हो सकती हैं. वहीं, कांग्रेस और उसके सहयोगियों को 86 सीटों पर जीत मिल सकती है. अन्य को 8 सीटें मिलने का अनुमान है. हरियाणा की कुल 90 सीटों में से बीजेपी विपक्ष का सफाया करते हुए 83 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है. वहीं कांग्रेस के खाते में 3 सीटें जा सकती हैं. ओपिनियन पोल के मुताबिक अन्य के खाते में 4 सीटें जा सकती हैं.


राहुल गांधी के लिए इन दो राज्यों के चुनाव परिणाम के मायने क्या है?
2014 से शुरू हुआ हार का सिलसिला राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा में मिली जीत से जरा थमा. ओपिनियन पोल को मानें तो साफ शब्दों में कहें तो राहुल गांधी चुनावी सियासत में ब्रैंड मोदी के सामने फेल हो गये हैं. मोदी और बीजेपी का कोई विकल्प नहीं, जनता के बीच गहरी पैठ बनाती इस सोच ने कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को धराशाई कर दिया है. ब्रैंड मोदी ने गांधी परिवार की पार्टी के भीतर ही तमाम सवाल खड़े करने पर मजबूर कर दिया है. नतीजों के निष्कर्ष को नजरअंदाज करना अब कांग्रेस को भारी पड़ रहा है. इन्हीं समस्याओं से शुरू गांधी परिवार की उपयोगिता पर सवाल उठना. हालांकि पार्टी के भीतर मुखर रूप से कांग्रेस पार्टी के भीतर गांधी परिवार की कोई काट नहीं है.


यहां जानें लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी का इस्तीफा क्यों हुआ?
लोकसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ा सवाल उठने लगा कि कांग्रेस का पुनर्गठन कौन कर सकता है. क्या राहुल गांधी में इतनी क्षमता है कि पार्टी मे नई जान फूंक सकते हैं? यदि राहुल गांधी तो फिर कौन ऐसा नेता है जो पार्टी की विचारधार, उसकी संस्कृति और तौर तरीकों को समझते हुए सत्ता में वापसी करा सकता है. कौन है वो नेता जो कांग्रेस की साख को फिर जनता की नजरों में ऊंचाई पर पहुंचा सकता है? जब दबी जुबान पार्टी के थिंकटैंक और मीडिया में इस तरह की चर्चा पकड़ने लगी राहुल गांधी अपने इस्तीफे पर अड़ गये. हालांकि राहुल गांधी के समर्थक नेताओं का कहना है कि पार्टी के बुजुर्गों ने उनका सहयोग नहीं किया.


इन दो राज्यों के जरिए राहुल का सियासी खेल समझिए
अशोक तंवर को राहुल गांधी ने हरियाणा की कमान सौंपी थी. जैसे ही राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया. राहुल गांधी के समर्थक नेताओं का कहना है कि सोनिया गांधी के आसपास के लोगों ने उनके लोगों को किनारे लगाना शुरू कर दिया. हरियाणा में अशोक तंवर, झारखंड में डॉक्टर अजय कुमार ने तमाम आरोप लगाए. ये सभी राहुल गांधी के ज्वाइस थे. राहुल गांधी महाराष्ट्र और हरियाणा में आक्रामक चुनाव प्रचार से बचते रहे. ऐसी चर्चा है कि राहुल गांधी ने खुद को वायनाड तक सीमित रखने के लिए पार्टी को कहा था. अब यदि हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की तुलना में कम वोट मिलते हैं तो राहुल गांधी गुट के नेता वर्तमान सूबे के नेतृत्व पर जोरदार हमला करेंगे. इस तरह एक बार फिर राहुल गांधी की उपयोगिता साबित होगी. उनके निर्णय पर सवाल कम उठेंगे. राहुल गांधी पर जो बुजुर्गों ने लोकसभा चुनाव के पूर्व दबाव बनाया था वह कम होगा. राहुल गांधी पार्टी के भीतर मजबूत होकर उभरेंगे. कुल मिलाकर कहें तो कांग्रेस हारती है तो इसमें राहुल गांधी के पास खोने को कुछ नहीं बचा है. लेकिन यदि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव की तुलना में कम वोट प्रतिशत मिलता है. तो यह राहुल गांधी के लिए पार्टी के भीतर 'जीत का रास्ता' तय करेगा.


राहुल गांधी के नेतृत्व में गुजरात चुनाव में कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी
अब यदि हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस हारती है तो राहुल गांधी गुट के नेता राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की जीत के साथ ही गुजरात में राहुल गांधी रणनीति का जिक्र करते हुए बुजुर्ग नेताओं पर दबाव बनाएंगे. और पार्टी की हर हार का ठीकरा इन पर फोड़ेंगे. दरअसल अभी राहुल गांधी के सामने ब्रैंड मोदी से ज्यादा पार्टी के भीतर अपनी स्विकारोक्ति की चुनौती है.