Assembly Election 2023: बात चाहे लोकसभा चुनाव की हो या फिर विधानसभा चुनावों की, हर चुनाव में निर्वाचन आयोग ज्यादा से ज्यादा वोटिंग के लिए तमाम कोशिशें करता है. आयोग इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाता है, लेकिन अक्सर कई लोग ये कहते हुए वोट नहीं डालते कि उनके एक वोट से क्या फर्क पड़ता है.


यह सोच सही नहीं है. एक वोट पूरे नतीजे को पलट सकता है. एक वोट जीत-हार का अंतर तय कर सकता है. यहां हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे प्रत्याशियों के बारे में जिन्हें सिर्फ एक वोट की वजह से हार का सामना करना पड़ा था. इनकी हार के चर्चे कई दिनों तक हुए.


2004 में ए.आर.कृष्णमूर्ति को मिली हार


यह बात 2004 की है जब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ए.आर.कृष्णमूर्ति जनता दल (सेक्युलर) के उम्मीदवार थे. इस चुनाव में कृष्णमूर्ति को एक वोट से हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में कृष्णमूर्ति को 40751 वोट मिले थे, जबकि ध्रुवनारायण को 40752 वोट मिले. कृष्णमूर्ति एक वोट से हारने वाले पहले भारतीय बने थे.




राजस्थान में सीपी जोशी भी हारे  


2008 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में सी.पी. जोशी को भी सिर्फ एक वोट से हार का सामना करना पड़ा था. उन्हें नाथद्वारा विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के कल्याण सिंह चौहान ने हराया था. सीपी जोशी को इस चुनाव में 62215 मिले थे, जबकि कल्याण सिंह को 62,216 वोट मिले थे. उस वक्त सीपी जोशी सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन इस हार ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. यह एक वोट की हार भी इसलिए ज्यादा चर्चा में रही, क्योंकि सीपी जोशी की पत्नी किसी कारणवश वोट डालने नहीं जा पाई थीं.




जब एक वोट से गिर गई अटल सरकार


एक वोट की कीमत बीजेपी भी अच्छे से जानती है. अप्रैल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उन्होंने 13 महीने का कार्यकाल पूरा कर लिया था. इस बीच विपक्ष उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया. अविश्वास प्रस्ताव में वोटिंग हुई और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार महज एक वोट से गिर गई. अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 270 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 269 वोट डाले गए थे.


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