Pradhanmantri Series, Atal Bihari Vajpayee: ''जो कल थे वो आज नहीं हैं जो आज हैं वो कल नहीं होंगे. होने न होने का क्रम इसी तरह चलता रहेगा. हम हैं हम रहेंगे, ये भ्रम भी सदा पलता रहेगा.'' ये लाइन अटल बिहारी वाजपेयी की हैं जो पहली बार 13 दिनों के लिए प्रधानमंत्री रहे लेकिन लोगों के दिलों पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए. 1996 में भारत की राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब कोई सरकार 13 दिनों में गिर गई. दूसरी बार वाजपेयी की सरकार 13 महीनों तक चली. 1998 में उनकी साफ-सुथरी छवि ने उन्हें फिर प्रधानमंत्री बनाया. इस बार उन्होंने अपने पूरे पांच साल पूरे किए. वाजपेयी पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे जिन्होंने पूरे पांच साल प्रधानमंत्री पद संभाला. आज प्रधानमंत्री सीरीज में जानते हैं वाजपेयी के ही पीएम बनने की कहानी.


13 दिनों की ऐतिहासिक सरकार


11वीं लोकसभा के लिए 1996 में 27 अप्रैल, 2 मई और 7 मई कुल तीन चरणों में चुनाव हुए. नतीजों में किसी भी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हुआ लेकिन बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी ने 161 सीटें जीतीं जो इस पार्टी का अब तक का सबसे बड़ा नंबर था. ये चुनाव आडवाणी और वाजपेयी के नेतृत्व में लड़ा गया और कांग्रेस 140 सीटों पर सिमट गई.


पीएम की रेस में खुद आडवाणी थे


1996 में आडवाणी बीजेपी के सबसे बड़े और दिग्गज नेता थे. 1984 में दो सीटें जीतने वाली बीजेपी को 161 सीटों तक पहुंचाने वाले असल नायक वही थे, लेकिन जब प्रधानमंत्री पद की बात आई तो खुद आडवाणी ने अटल  बिहारी वाजपेयी के नाम की घोषणा की. उस वक्त यही माना जा रहा था कि खुद आडवाणी पीएम पद के दावेदार हैं लेकिन हवाला कांड में नाम आने की वजह से वो पीछे हट गए. आडवाणी ने इस बात का जिक्र अपनी किताब ‘माय कंट्री माय लाइफ’ में किया है. उन्होंने लिखा है, ''हवाला कांड’ में लगाए गए झूठे आरोप के चलते मैंने घोषणा की कि जब तक न्यायपालिका मेरे ऊपर लगाए मिथ्या आरोपों से मुझे मुक्त नहीं कर देती तब तक मैं दोबारा लोकसभा में नहीं आऊंगा. इसलिए मैंने वर्ष 1996 के संसदीय चुनावों में प्रत्याशी बनने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.''


इस चुनाव में बीजेपी ने वाजपेयी की साफ-सुथरी छवि को भुनाया और नारा दिया, ''सबको देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी.''



सरकार बनाने के लिए 272 सीटों की जरूरत थीं. ऐसे हालात में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया. इस वजह से जनता दल और लेफ्ट के नेता काफी नाराज भी हुए. राष्ट्रपति से मिलकर सभी दलों ने अपनी आपत्ति भी जताई थी. ये विरोध इसलिए हो रहा था कि क्योंकि बीजेपी के पास बहुमत के आंकड़े नहीं थे.


बीजेपी के लिए बहुमत जुटाना मुश्किल था, फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार बनाने को तैयार हो गए. सरकार बनाए रखने के लिए बहुमत के आंकड़े मिल पाएंगे या नहीं? इस सवाल पर तब अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ''देश की स्थिति को देखते हुए अगर संसद के सदस्य अपने विवेक पर इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि बीजेपी को जनादेश मिला है और इन्हें सेवा का अवसर दिया जाना चाहिए तो मुझे लगता है कि हमें बहुमत सिद्ध करने में कठिनाई नहीं होगी.''


अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री की शपथ ली. राष्ट्रपति ने उन्हें ससंद में बहुमत साबित करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया. बीजेपी ने काफी कोशिश की लेकिन उन्हें पूरा समर्थन नहीं मिला. तब शिवसेना (15 सीटें) और हरियाणा विकास पार्टी (3 सीटें) के अलावा नीतीश कुमार की समता पार्टी (8 सीटें) साथ थी. अकाली दल को भी बीजेपी ने अपने साथ जोड़ लिया. कुल मिलाकर बीजेपी 194 सांसदों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब हो पाई लेकिन ये आंकड़े बहुमत से काफी कम थे.



यही वजह थी कि 31 मई को संसद में बीजेपी बहुमत साबित नहीं कर पाई और अटल बिहारी वाजपेयी को 13 दिनों में ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. संसद में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ''यदि मैं पार्टी तोड़ू और सत्ता में आने के लिए नए गठबंधन बनाऊं तो मैं उस सत्ता को छूना भी पसंद नहीं करूंगा.’’


इस तरह पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई 1996 से एक जून 1996 तक पीएम पद पर रहे.


दो साल में देश को मिले तीन प्रधानमंत्री



11वीं लोकसभा चुनाव के बाद दो साल में ही देश को तीन प्रधानमंत्री मिले. पहले वाजपेयी की सरकार गिरी फिर कांग्रेस के समर्थन से एचडी देवगौड़ा पीएम बने. उनकी सरकार गिरी तो फिर कांग्रेस के समर्थन से ही इंद्र कुमार गुजराल पीएम बने. कांग्रेस ने फिर समर्थन वापस लिया और गुजराल को इस्तीफा देना पड़ा. इसके साथ 11वीं लोकसभा भंग कर दी गई और चुनाव का ऐलान हुआ.


1998 में फिर 13 महीने के लिए बने प्रधानमंत्री


1998 में 12वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में बीजेपी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. किसी को बहुमत नहीं मिला और तभी बीजेपी नीत एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का गठन हुआ. तब बीजेपी के साथ इस गठबंधन में 13 पार्टियां शामिल थीं. जयललिता की पार्टी AIADMK (18 सीटें) जैसी कई पार्टियों ने सपोर्ट किया और बीजेपी ने संसद में बहुमत सिद्ध किया. इस तरह एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, लेकिन ये सरकार भी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई.



एक वोट से गिरी वाजपेयी सरकार


यह सरकार भी केवल 13 महीनों तक ही चल सकी. करीब 13 महीने बाद ही अप्रैल 1999 में एआईएडीएमके ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गई. इसके बाद राष्ट्रपति ने वाजयेपी सरकार से अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा. जब 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर जब वोटिंग हुई तब सरकार एक वोट से हार गई और वाजपेयी सरकार गिर गई. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने लोकसभा भंग कर दी और फिर आम चुनाव का ऐलान हुआ.



1999 में फिर पीएम बने वाजपेयी


13वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव एनडीए के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए जिसमें बीजेपी के साथ करीब 20 पार्टियां शामिल थीं. बीजेपी ने विदेशी सोनिया गांधी वर्सेज स्वदेशी वाजपेयी को मुख्य मुद्दा बनाया. कारगिल युद्ध से कुछ समय बाद ही 5 सितंबर और 3 अक्टूबर के बीच दो चरणों में चुनाव संपन्न हुए. कारगिल युद्ध के नाम पर बीजेपी ने देशभक्ति का मौहाल बनाया और गठबंधन को इसका फायदा भी मिला, लेकिन बीजेपी की सीटें जस की तस रहीं. 1998 में जहां बीजेपी 182 जीती थीं वहीं 1999 के चुनाव में भी बीजेपी की सीटें 182 ही रहीं. हालांकि, इस चुनाव में गठबंधन की जीत हुई. वहीं कांग्रेस सिर्फ 114 सीटों पर सिमट गई. एनडीए को 269 सीटें मिलीं और 29 सांसदों वाली तेलुगु देशम ने उसे बाहर से समर्थन दिया. इस तरह वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने और इस बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.



वाजपेयी ने 19 मार्च 1998 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और 22 मई 2004 तक इस पद पर रहे.


अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता होने के साथ-साथ अच्छे कवि थे. उनकी मशहूर कविताएं-


गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर,
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,
झरे सब पीले पात,
कोयल की कूक रात,
प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं
गीत नया गाता हूं.

टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी?
अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा,
रार नई ठानूंगा,
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.

सालों तक बीमारी से जूझने के बाद 16 अगस्त 2018 को अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया.


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