Bihar by-election: बिहार उपचुनाव के लिए सभी पार्टियां पूरी तैयारी में लगी हुई हैं. इस कड़ी में जनसुराज के सूत्रधार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी एक्शन मोड में हैं. जहां प्रशांत किशोर अपने आइडिया को लोगों तक पहुंचा रहे हैं, वहीं ये भी बता रहे हैं कि जनसुराज कैसे बिहार को लंबे समय से चली आ रही परेशानियों से बाहर निकालेगी.

 

प्रशांत किशोर ने कहा कि हम लोग कह रहे हैं कि एक साल में स्ट्रेस माइग्रेशन मतलब मजबूरी में यहां से बाहर जाने वाले लोगों को रोक दिया जाएगा, किसी को नहीं जाना पड़ेगा. उन्होंने कहा, 'पहली बात ये समझिए कि बिहार में नौकरी का लालच जो लोगों को दिया जाता है, सारी नौकरी आरक्षण, लड़ाई-झगड़ा. कोई कह रहा है कि हमने पांच लाख दे दिया, कोई कह रहा है कि दस लाख दे दिया. कोई कह रहा है कि हम सात प्रतिशत आरक्षण दे देंगे.'

 

प्रशांत किशोर ने कहा, 'पूरा समाज इसी पर लड़ रहा है कि कितना हमको आरक्षण मिलना चाहिए. बिहार में चपरासी से लेकर मुख्य सचिव तक सरकारी नौकरी के जितने लोग हैं, उनकी संख्या 23 लाख है यानी कि 1.97 प्रतिशत. दो प्रतिशत ही 78 साल में बिहार में सरकारी नौकरी पाए हैं. 98 प्रतिशत लोगों को पास न सरकारी नौकरी है और न आगे हो सकती है. जो भी आपको बता रहा है कि सरकारी नौकरी देकर पलायन रोक देंगे तो उससे बड़ा मूर्ख या उससे बड़ा असत्य कोई नहीं है. ये हो ही नहीं सकता है.'

 

'रोकना होगा बुद्धि का पलायन'

 

प्रशांत किशोर ने कहा, दुनिया में जितने भी देश हैं जहां पर लोगों के पास रोजगार, पैसा, तरक्की, खुशहाली है. नॉर्वे, स्वीडन या फिनलैंड जहा चले जाइए वहां पर लोग रेलवे का एग्जाम देकर पैसा नहीं कमाते हैं. आपके पास अगर पूंजी होगी, तभी पलायलन रुकेगा. जनसुराज ने एक मॉडल बनाया है कि बिहार में अगर श्रम का पलायन रोकना है, मजदूरों का पलायन रोकना है तो उसके लिए पूंजी और बुद्धि का पलायन रोकना होगा.'

 

शिक्षा पर क्या कहा?

 

प्रशांत किशोर ने कहा, 'शिक्षा की स्थिति इतनी खराब इसलिए है क्योंकि सरकार और समाज दोनों की नजर में आज शिक्षा की कोई प्राथमिकता नहीं है. जनसुराज की सोच है कि किसी भी प्रखंड को अगर ठीक से मैप कर दिया जाए और पांच जगह चुन ली जाएं जहां पर नेत्रहार जैसे विद्यालय बनाने हों तो कई भी बच्चा उस ब्लॉक का ऐसा नहीं होगा जिसको 20 मिनट से ज्यादा लगेंगे उस विद्यालय में पहुंचने के लिए.'

 

उन्होंने कहा कि जनसुराज का मॉडल ये है कि हर गांव में स्कूल बनाने के बजाए प्रखंड के स्तर पर पांच विश्वस्तरीय विद्यालय बनाएं जाएं और बाकी लोगों को बस की सुविधा दी जाए ताकि लोग अपने बच्चों को लेकर स्कूल तक पुहंच सकें.'