Prashant Kishor On Bihar Special Status: जो बिहार लंबे समय से विशेष राज्य के दर्जा पाने के लिए टकटकी लगाए बैठा है, उसे लेकर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने बड़ा बयान दिया है. बुधवार (2 अक्टूबर, 2024) को गांधी जयंती पर आधिकारिक तौर पर जन सुराज पार्टी लॉन्च करने के बाद पीके ने साफ कर दिया कि उन्हें विशेष राज्य का दर्जा नहीं चाहिए. वह दिल्ली (केंद्र सरकार के संदर्भ में) की मेहरबानी नहीं चाहते हैं. वे लोग अपना रास्ता खुद बना लेंगे. बिहार में बहुत हुनर है और बिहारी दिल्ली की मदद करेंगे.


प्रशांत किशोर ने कहा, "ऐसा नया बिहार बनायेंगे की बिहार पर कोई सवाल खड़ा नहीं करेगा. यहां बाबा साहेब को मानने वाले भी लोग यहां हैं, बीजेपी को मानने वाले लोग भी यहां आए हैं. अब आप लोग पूछियेगा की विचार धारा आपकी क्या है? मेरी विचारधारा मानवता है."


बिहार विशेष राज्य का दर्जा कब से मांग रहा है?


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति के अक्ष बिहार के स्पेशल स्टेटस पर ही लंबे समय तक घूमता रहा है. साल 2000 में जब बिहार और झारखंड का बंटवारा हुआ तब लगभग 80 फीसदी प्राकृतिक और खनिज संसाधन झारखंड के हिस्से चले गए. लेकिन आबादी का 80 फीसदी बिहार में रह गया. इस आधार पर बिहार हमेशा केंद्र की ओर से विशेष रियायत के लिए राह ताकता रहा है. साल 2005 से नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति का उभार इस मुद्दे के दम पर बनाया है. 


प्रदेश के बाकी दलों का स्टैंड स्पेशल स्टेटस पर क्या रहा है?


इसी साल जुलाई के महीने में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार की ओर से लंबे वक्त से स्पेशल स्टेट्स की मांग को ये कहकर खारिज कर दिया कि ये मौजूदा मानदंडों के हिसाब से संभव नहीं है. केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद नीतीश कुमार पर विपक्षी दल सवालिया निशान लगा रहे थे कि इतने लंबे समय मांग करने के बाद बिहार की जनता को केंद्र सरकार की ओर से ये सौगात मिला. नीतीश कुमार पर विपक्षी दलों ने ये कहकर दबाव बनाया कि वह सत्ता में बने रहने के लिए अपने मुद्दे और विचारधारा से समझौता कर रहे हैं और बिहार के स्पेशल स्टेट्स के मुद्दे पर आंखें मूंद ली हैं. 


आरजेडी नेता और राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा ने कहा था कि विशेष राज्य का दर्जा को लेकर बिहार की मांग को कई लोग अवास्तविक कह देते हैं. जब बिहार और झारखंड का बंटवारा हुआ तब से ये मांग है. राजनीतिक दलों के अतिरिक्त बिहार को श्रम आपूर्ति का केंद्र समझकर सरकार की जो नीतियां चलती हैं हम उसमें बदलाव चाहते हैं. हमें विशेष राज्य का दर्जा भी और विशेष पैकेज भी चाहिए.


बिहार को इस स्पेशल स्टेटस की जरूरत क्यों है?


बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है. बिहार और झारखंड के बंटवारे के बाद लगभग प्राकृतिक संपदाएं झारखंड की हिस्से में चली गई. इससे राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और अब भी इसका असर कायम है. बिहार के पास रोजगार के विकल्प नहीं है, बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए पलायन करते हैं. बिहार सरकार का तर्क है कि उसे विशेष राज्य का दर्जा इसलिए मिलना चाहिए चूंकि राज्य की बड़ी आबादी तक स्वास्थ्य, शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं की पहुंच नहीं है.


बिहार को स्पेशल स्टेटस मिलने से क्या बदल जाएगा?


बिहार को स्पेशल स्टेटस मिलने से राज्य की कितनी समस्याएं सुलझेंगी इस बाबत को स्पष्ट आंकड़ा या प्लान पेश नहीं किया गया है. हालांकि भारत के संविधान में स्पेशल स्टेटस को लेकर कोई प्रावधान नहीं है. भारत में साल 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिशों के तहत विशेष राज्य के दर्जे की संकल्पना अस्तित्व में आई थी. इस साल असम, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.


सिफारिशों में कहा गया कि स्पेशल स्टेटस पाने वाले राज्यों को केंद्र सरकार की ओर से सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता दी जानी चाहिए. गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले के तहत केंद्र से लगभग 30 फीसदी वित्तीय सहायता दी जाती थी. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद अब राज्यों की केंद्र से 41 फीसदी की सहायता राशि दी जाती है.


हालांकि इसके लिए कुछ मानदंड बनाए गए थे. जैसे उन राज्यों को स्पेशल स्टेटस दिया जा सकता है जो आर्थिक एवं ढांचागत दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ है. इसके अलावा जिन राज्यों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है. इसके अलावा कम जनसंख्या घनत्व या पर्याप्त जनजातीय आबादी, पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके को भी स्पेशल स्टेटस दिया जा सकता है. 


कितने राज्यों को मिला है स्पेशल स्टेटस?



भारत में 11 राज्यों को वर्तमान में स्पेशल स्टेटस का दर्जा दिया गया है. इनमें सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं. इन राज्यों को देश के सकल बजट का 30% हिस्सा मिलता है. सबसे खास बात ये है कि यदि केंद्र से मिले फंड को ये राज्य खर्च नहीं कर पाते हैं तो इन्हें उस फंड को अगले साल खर्च करने का विकल्प होता है.


(इनुपट- शशांक)



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