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2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-13: मुसलमानों में डर के विपक्ष के आरोपों से कितना मुक़ाबिल होगा 'सबका साथ, सबका विकास' मंत्र

बीजेपी का आरोप है कि वह सबका साथ, सबका विकास मंत्र के साथ काम कर रही है. इससे अलग कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी राज में पिछले 5 वर्षों में अल्पसंख्यकों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के खिलाफ घृणा अपराधों और अत्याचारों में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई है.

नई दिल्ली: किसी भी देश की समृद्धि के कई पैमानों में से एक पैमाना यह भी होता है कि उस देश के भीतर 'अल्पसंख्यकों की हालत' कैसी है. ऐसे समय में जब भारत में आम चुनाव हो रहे हैं तो यह एक अहम मुद्दा बनकर उभरा है. इसकी वजह एक बड़ा वोट बैंक का होना भी है. सभी पार्टियां अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त छह समुदायों मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, पारसी और जैन पर नजरें टिकायी है. इन सभी छह समुदायों की आबादी कुल जनसंख्या का 19 प्रतिशत है. इन समुदायों में सबसे बड़ी आबादी मुस्लिमों (करीब 14 प्रतिशत) की है. बाकी के पांच समुदायों की आबादी देश भर के अलग-अलग इलाकों में पांच प्रतिशत है.

इस चुनाव में सत्तारूढ़ दल बीजेपी और उसके सहयोगियों का दावा है कि उसने पिछले पांच सालों में 'सबका साथ, सबका विकास' मंत्र के साथ काम किया है और आने वाले समय में भी इसी फॉर्मूले पर काम करेगी. इस दावे से अलग कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का दावा है कि मोदी सरकार बनने के बाद अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों और ईसाईयों पर हमले बढ़े हैं. मौजूदा सरकार के दौर में वे देशभर में पहले से अधिक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

विपक्षी पार्टियां पिछले पांच सालों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हुए आपराधिक मामले और बयानबाजी को सत्तारूढ़ दल से जोड़ती है. विपक्षी पार्टियां एक सांस में मॉब लिंचिंग, गो हत्या, घर वापसी, धर्मांतरण, हिंदुत्व, पाकिस्तान भेज देने, प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी, ऐतिहासिक जगहों के नामकरण जैसी बातों का जिक्र करती है.

हाल ही में चर्चित अमेरिकी TIME मैगजीन ने भी भारत में समुदायों के बीच नफरत बढ़ने की बात कही है. बीजेपी विरोधियों ने इसे हाथों-हाथ लिया. सोशल मीडिया पर मैगजीन का कवर पेज छाया रहा. मैगजीन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डिवाइडर इन चीफ यानी देश को बांटने वाला बताया गया. इस मैगजीन में भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे से लेकर मालेगांव बम ब्लास्ट के आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की भोपाल लोकसभा सीट से उम्मीदवारी तक का जिक्र है.

दरअसल, भारत जब आजाद हुआ तो पाकिस्तान के रूप में इस्लामिक देश की स्थापना हुई. लेकिन भारत ने धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) का रास्ता चुना, जहां सभी वर्ग को समान रूप से देखने की बात कही गई. लेकिन एक वर्ग ने हमेशा इस सिद्धांत का विरोध किया और सेक्युलरिज्म के रास्ते को गलत ठहराने की कोशिश की. आज विपक्षी दलों की हर एक रैली में बीजेपी पर सामाजिक ताने-बाने को नष्ट करने का आरोप सुना जा सकता है.

बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने कई मौकों पर ऐसे बयान दिये हैं जो विपक्ष के आरोपों को और मजबूत करती है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एनआरसी का जिक्र करते हुए कुछ समय पहले कहा था, जो शरणार्थी बांग्लादेश से आए हैं, चाहे वे हिंदू हों, बौद्ध हों, सिख हों, जैन हों या ईसाई हों, बीजेपी ने अपने ‘संकल्प पत्र’ में स्पष्ट संकेत दिया है कि हम उन्हें नागरिकता देंगे. हालांकि, उन्होंने अपने भाषण में मुस्लिमों का जिक्र नहीं किया. इसकी खूब आलोचना हुई.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी के स्टार प्रचारक ने अली-बजरंगबली का जिक्र किया. उन्होंने एक रैली में कहा, ''अगर कांग्रेस, सपा और बसपा को भरोसा 'अली' में है तो हम लोगों की आस्था बजरंगबली में है.'' विपक्ष ने इसे ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया.

यहां ध्यान रखना जरूरी है कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में महागठबंधन (एसपी-बीएसपी-आरएलडी) कर चुनाव लड़ रहीं बीएसपी अध्यक्ष मायावती के बयान के जवाब में अली-बजरंगबली वाला बयान दिया था. मायावती ने यूपी के सहारनपुर में साफ-साफ शब्दों में मुस्लिम समुदाय से एक मुश्त महागठबंधन को वोट करने की अपील की थी.

2019 के 19 मुद्दे | सीरीज-13: मुसलमानों में डर के विपक्ष के आरोपों से कितना मुक़ाबिल होगा 'सबका साथ, सबका विकास' मंत्र

विपक्ष और खुद बीजेपी समर्थकों का यह मानना रहा है कि अल्पसंख्यक (मुस्लिम और ईसाई) उन्हें वोट नहीं करते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान दिये गए केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मेनका गांधी के बयान (उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं आएगा अगर वह मुस्लिम वोट के बिना जीतेगीं. अगर मुस्लिम वोट नहीं मिलने पर भी उन्हें जीत हासिल होती है तो वह समुदाय के लोगों के काम नहीं करेंगी) से भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े, कर्नाटक के वरिष्ठ बीजेपी नेता केएस ईश्वरप्पा ने भी चुनाव के दौरान इसी तरह के बयान दिये.

ईश्वरप्पा ने कहा था, ''...हम मुसलमानों को टिकट नहीं देते, क्योंकि आप हम पर भरोसा नहीं करते. हम पर भरोसा कीजिए और हम आपको टिकट और अन्य चीजें भी देंगे.'' ईश्वरप्पा का टिकट नहीं देने वाला बयान एक तरह से हकीकत भी है.

सिर्फ इस चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने मात्र सात सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है. बड़े राज्यों की विधानसभा की बात करें तो बीजेपी के एक भी विधायक मुस्लिम नहीं हैं. इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान प्रमुख है. ये जानना काफी दिलचस्प है कि ऐसा पहली बार है जब सत्तारूढ़ पार्टी का कोई भी चुना हुआ सांसद मुस्लिम नहीं है. टिकट नहीं दिये जाने पर बीजेपी का कहना है कि पार्टी जाति-धर्म के आधार पर टिकट नहीं देती है. वह सिर्फ जिताऊ उम्मीदवार को चुनती है.

यहां यह भी सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं करते हैं? इस सवाल पर 'सियासी मुस्लिम' किताब के लेखक और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज में एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद आंकड़ों के जरिए देते हैं. उन्होंने जोर देते हुए कहा, ''राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा मुसलमानों का वोट कांग्रेस को मिलता है. दूसरी बड़ी पार्टी की बात करें तो सबसे अधिक वोट मुस्लिम बीजेपी को करते है. पहले बीजेपी को कभी 4 प्रतिशत, कभी सात प्रतिशत मुसलमानों के वोट मिलते थे. 2014 में यह बढ़कर 9 प्रतिशत हो गया.'' हिलाल कहते हैं कि हमेशा मुस्लिम या कोई भी समुदाय स्थानीय मुद्दों और स्थानीय समीकरण के आधार पर वोट डालते हैं. उनके सामने बेरोजगारी, सुरक्षा और डर जैसे मुद्दे हैं.

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दरअसल, पिछले पांच सालों में लिंचिंग की घटना बढ़ी है और विपक्ष ने इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. विपक्षी दलों का कहना है कि गो रक्षा के नाम पर खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया. इंडिया स्पेंड वेबसाइट के मुताबिक, 2014 से लेकर अब तक गो रक्षा के नाम पर हिंसा की 124 घटनाएं हुई है. इसमें 56 प्रतिशत पीड़ित मुस्लिम समुदाय से हैं. इसके अलावा पांच सालों में सत्ताधारी पार्टी की तरफ से समय-समय पर लव जेहाद, घर वापसी, धर्मांतरण जैसे मुद्दे भी खूब उछाले गए.

इन आरोपों को बीजेपी खारिज करती है. बीजेपी का दावा है कि अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के लिए बजट बढ़ाया गया. तीन तलाक जैसे कानून लाए गए. हज यात्रियों की संख्या भी बढ़ाई गई. पार्टी हमेशा 'सबका साथ, सबका विकास' मंत्र के साथ काम करती है. विकास कार्यों में कभी भेदभाव नहीं किया गया.

बीजेपी ने इस बार के घोषणापत्र में भी इसी को रेखांकित किया है. मेनिफेस्टो में कहा गया है, ''सबका साथ-सबका विकास के संकल्प पर हम सभी अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी) के सशक्तिकरण हेतु और उन्हें गरिमापूर्ण विकास उलपब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं.''

वहीं कांग्रेस ने अल्पंसख्यकों के लिए कई वायदे किए हैं. पार्टी ने घोषणापत्र में कहा है ''कांग्रेस महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर नियंत्रण के लिए कड़ी कार्यवाही करने का वायदा करती है. बिना किसी डर या पक्षपात के कानून का पालन किया जायेगा और अपराधियों को खुलेआम सड़को पर नहीं घूमनेदिया जायेगा.'' पार्टी ने कहा है कि हम न्यायपालिका में भी प्रतिनिधित्व बढ़ाएंगे.

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कांग्रेस ने कहा है, ''सच्चे लोकतंत्र की ताकत और जीवंतता अक्सर उसके अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकारों और संरक्षण में देखी जाती है. बीजेपी राज में पिछले 5 वर्षों में अल्पसंख्यकों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के खिलाफ घृणा अपराधों और अत्याचारों में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई है. इस प्रकार के घृणित अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी बेधड़क खुलेआम सड़कों पर घूम रहे हैं.''

इन वायदों, दावों और आरोपों के बीच छह चरणों में 483 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं. बाकी के 59 सीटों पर 19 मई को वोट डाले जाएंगे. अब देखना दिलचस्प होगा कि इसबार बड़े वर्ग का रुख किस तरफ होगा.

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