नई दिल्ली: कांग्रेस नेता शशि थरूर का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सोशल मीडिया और वाट्सएप जैसे प्रिय माध्यमों का बेजा इस्तेमाल कर मतदाताओं को प्रभावित करने में माहिर है. थरूर ने रविवार को टीवी चैनल न्यूज एशिया के एक कार्यक्रम में कहा कि वाट्सएप पसंदीदा माध्यम है, क्योंकि भारत के 82 फीसदी मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं ने इस ऐप को डाउनलोड कर रखा है, क्योंकि कुछ खास लोग उनके निशाने पर होते हैं.
उन्होंने कहा, "सत्ताधारी भाजपा देशभर में अंदाजन 5 लाख वाट्सएप समूहों तक पहुंच बनाने की तकनीक में माहिर है. इसके आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने मार्च में घोषणा की थी कि आने वाले चुनाव मोबाइल फोन पर लड़े जाएंगे. इसको देखते हुए आप इसे वाट्सएप चुनाव कह सकते हैं."
कांग्रेस सांसद ने दावा किया, "भाजपा अपनी इस बड़ी जनसेना का लाभ उठाती है. इसमें कुछ तो पैसे लेकर काम करते हैं और कुछ स्वयंसेवी हैं, जिनका काम वाट्सएप समूहों में रुचि लेने वालों को सामग्री परोसना है."
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थरूर ने जोर देकर कहा, "एक राजनीतिक पार्टी अपनी रुचि, जाति या धार्मिक पहचान या खास मुद्दे के हिसाब से समूह बना सकता है और अपने पूर्वाग्रह को मजबूत करने के लिए संदेशों की बौछार करवा सकता है तथा यह मनवा सकता है कि पार्टी उसके साथ है."
फेसबुक भले ही दावा करे कि वह भारत में हर दिन 10 लाख फर्जी खातों को हटा रहा है, मगर ऑनलाइन स्टार्टअप सोशल मीडिया मैटर्स और नई दिल्ली स्थित शासन, नीति एवं राजनीति संस्थान द्वारा हाल में कराए गए एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि हर दो भारतीयों में से एक को फेसबुक और वाट्सएप के जरिये फर्जी खबरें मिल रही हैं.
यह भी पता चला है कि फेसबुक और वाट्सएप जैसे प्रमुख मंचों का इस्तेमाल झूठी खबरें फैलाने के लिए किया जा रहा है. सर्वेक्षण बताता है कि 96 फीसदी लक्षित आबादी को वाट्सएप के जरिये फर्जी खबरें मिल रही हैं.
थरूर के मुताबिक, "सोशल मीडिया का सर्वाधिक राजनीति मंच ट्विटर है. सिर्फ भारत में इसके 3 करोड़ सक्रिय उपयोगकर्ता हैं. मगर फेसबुक और वाट्सएप ने इसे बौना बना दिया है. इन दोनों में से प्रत्येक के 24 करोड़ से ज्यादा सक्रिय उपयोगकर्ता हैं."
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किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में अमूमन 20 लाख लोग रहते हैं, जिनकी राजनीतिक गोलबंदी करने में ट्विटर से कम ही मदद मिल पाती है.
थरूर ने कहा, "अमेरिका में किसी बड़ी रैली या यहां तक कि बड़ी जनसभा के आयोजन में ट्विटर अनुपयोगी साबित होता है. यह औपचारिक प्रचार का विकल्प नहीं बन सकता. फिर भी राजनीतिक पार्टियों ने इस साल बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया की तरफ रुख किया है."
पिछले हफ्ते मीडिया में आई खबरों में बताया गया है कि राजनीतिक पार्टियां और डिजिटल मार्केटर किस तरह प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए मैसेज भेजने की सुविधा वाले लोकप्रिय एप के जाली विवरणों और 1,000 रुपये मामूली शुल्क पर अन्य सॉफ्टवेयर टूल्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं.
वाट्सएप का कहना है कि उसने ऐसी सेवाएं देने का दावा करने वाली कंपनियों को स्थगन एवं विराम-पत्र भेजे हैं.
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