Uttar Pradesh Rajya Sabha Elections 2024: राज्यसभा चुनाव को लेकर हर जगह जोड़-तोड़ चल रही है. समीकरण बैठाए जा रहे हैं. अंदरखाने विरोधी दल के विधायकों तक सेंधमारी की कोशिश हो रही है. कुछ नेता तो ऐसे भी हैं, जो अपनों से ही नाराज हैं. उत्तर प्रदेश में सपा की एक राज्यसभा एक सीट फंस गई है. ये सीट समाजवादी पार्टी के साथियों ने ही फंसाई है और इसका फायदा बीजेपी उठाने जा रही है. इसके लिए पार्टी ने संजय सेठ के रूप में अपना इक्का फेंक दिया है. सूत्रों के मुताबिक खबर है कि बीजेपी संजय सेठ का राज्यसभा का 8वां उम्मीदवार बनाएगी और आज वो नामांकन कर सकते हैं. संजय सेठ समाजवादी पार्टी से ही बीजेपी में शामिल हुए हैं.
अखिलेश यादव का राज्यसभा सीट के लिए जो खेल बिगड़ा है उसके पीछे है PDA. अखिलेश यादव जिस PDA का नारा बुलंद करते हैं, उसी नारे पर साथियों ने उन्हें घेरने की कोशिश की है. पिछले कुछ दिनों से अखिलेश यादव हर जगह PDA शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें P का मतलब पिछड़ा, D का मतलब दलित और A का मतलब अल्पसंख्यक है. अखिलेश यादव अपनी पूरी सियासी लड़ाई इसी नारे पर लड़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने अब एक ऐसा फैसला किया है, जो उनके ही कुछ साथियों को रास नहीं आ रहा. दरअसल यूपी में राज्यसभा की 10 सीट खाली हो रही हैं, इसमें 3 सीट ऐसी हैं, जिसपर समाजवादी पार्टी का दावा है. इसके लिए उम्मीदवार भी उतार दिये गए हैं.
सपा के तीन उम्मीदवार के ऐलान पर भड़कीं पल्लवी पटेल
सपा के तीन उम्मीदवारों में एक हैं जया बच्चन, दूसरे हैं आलोक रंजन और तीसरे हैं रामजीलाल सुमन. तीनों ही उम्मीदवारों ने नामांकन भी भर दिया, लेकिन इन प्रत्याशियों को देखकर अपना दल कमेरावादी की नेता और सपा के सिंबल पर चुनाव जीतने वालीं पल्लवी पटेल भड़क गई. पल्लवी पटेल वो नेता हैं, जिन्होंने कौशांबी की सिराथू सीट से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को विधानसभा चुनाव हराया था, इस लिहाज से वो बड़ी नेता मानी जाती हैं.
अखिलेश यादव से क्या है पल्लवी पटेल का सवाल?
चूंकि अखिलेश यादव पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों की लड़ाई लड़ने की बात कर रहे हैं तो पल्लवी पटेल ने राज्यसभा के इन प्रत्याशियों में इन्हीं समाज से आने वाले चेहरों को ढूंढने की कोशिश की, जिसमें उन्हें निराशा लगी. समाजवादी पार्टी के तीन प्रत्याशियों में सिर्फ रामजी लाल सुमन ही इकलौते नेता हैं, जो दलित समाज से आते हैं. पल्लवी पटेल का सवाल है कि जब नारा PDA का है तो प्रत्याशियों के चयन में पिछड़े वर्ग को नजरअंदाज क्यों किया गया.
जमीन पर नहीं दिखता PDA- पल्लवी पटेल
अपना दल की पल्लवी पटेल ने कहा, घोषी में फॉरवर्ड को टिकट देते हैं अखिलेश यादव, राज्यसभा में टिकट देते हैं रंजन और बच्चन को. ऐसे में PDA अखिलेश के लिये केवल एक नारा है ज़मीन पर वो दिखता नहीं. जया बच्चन ने क्या ऐसा किया है, जो उनको टिकट दिया गया. रंजन ने अपने कार्यकाल में पिछड़ों का विरोध किया. मैं इनको वोट नहीं करूंगी, मुझे इन सब मामलों पर अखिलेश जी से नाराज़गी है. अखिलेश का PDA जमीन पर नहीं दिखता.
पल्लवी पटेल चाहती हैं कि अगर नारा PDA का है तो जमीनी हकीकत भी PDA वाली नजर आनी चाहिये. एक तरह से देखा जाए तो ये अखिलेश यादव की मंशा पर सवाल है. दलितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए उन्होंने भले ही रामजी लाल सुमन को प्रत्याशी बनाया, लेकिन जया बच्चन और आलोक रंजन के नाम पर पल्लवी पटेल सहमत नहीं हैं, उन्होंने साफ कह दिया है कि वो ऐसे नेताओं को वोट नहीं दें, जो पिछड़े, दलित या अल्पसंख्यक वर्ग से नहीं आते हैं.
पल्लवी पटेल बोलीं- अहम में हैं समाजवादी पार्टी
पल्लवी पटेल ने ये भी कहा, समाजवादी पार्टी अहम में है. आप दलित ,मुसलमान और पिछडा का वोट लेते है तो ईमानदारी से प्रतिनिधित्व दीजिये. ये जया और आलोक पीडीए नहीं है. जमीन तौर पर PDA को दिखाना होगा, चाहे कांग्रेस हो या सपा हो या बसपा, इन्हें PDA की बात करनी चाहिए. जया बच्चन, आलोन रंजन PDA नहीं हैं.
क्या पल्लवी पटेल का हो गया सपा से मोहभंग?
जब भी कोई नेता अपनों पर इस तरह के सवाल उठाता है तो उसके सियासी भविष्य को लेकर भी अटकलें शुरू हो जाती हैं. पल्लवी पटेल के हाव-भाव देखकर भी यही सवाल उठ रहा. क्या पल्लवी पटेल का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो गया है. हालांकि अखिलेश यादव अभी भी कह रहे हैं कि PDA मजबूत है. और बीजेपी इससे घबराई हुई है.
अब क्या बोले अखिलेश यादव
अखिलेश यादव ने कहा है कि बीजेपी के लोग पीडीए से घबराये हुए हैं. पीडीए मजबूत है हमारी लड़ाई बड़ी है हमको सभी लोगों का समर्थन चाहिए. पार्टी के कुछ फैसले ऐसे होते हैं. जो हाईकमान की तरफ से तय किये जाते हैं, लेकिन पल्लवी पटेल इससे सहमत नहीं हैं. अब सवाल ये है कि अगर पल्लवी पटेल अखिलेश यादव की पसंद वाले इन प्रत्याशियों को वोट नहीं करेंगी तो क्या समाजवादी पार्टी की तीसरी सीट फंस जाएगी.
आंकड़ों के जरिये समझिए इस सीट की कहानी
राज्यसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी 3 सीटों पर दावा ठोक रही है. हर सीट के लिए 37 विधायकों का समर्थन जरूरी है, यानि 3 सीट अगर सपा को जीतनी है तो 111 विधायकों का समर्थन होना चाहिये, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि सपा के अभी सिर्फ 108 विधायक हैं. कांग्रेस के 2 विधायकों को जोड़ दें तो उसके पास विधायकों की संख्या 110 हो जाती है, क्योंकि RLD पहले ही अलग हो चुकी है.
इसमें भी सपा के 2 विधायक इरफान अंसारी और रमाकांत यादव जेल में बंद हैं. पल्लवी पटेल ने इन प्रत्याशियों को वोट देने से मना कर दिया है.यानि तीन विधायक और कम हो गए और आंकड़ा हो गया 105, जो जरूरी वोट से 6 वोट कम है. अब समाजवादी पार्टी के पास रास्ता ये है कि वो BSP के विधायक उमाशंकर सिंह को किसी तरह अपने साथ ले आए. सुभासपा के कुछ विधायकों को तोड़ने की कोशिश करे, जो सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े थे. साथ ही RLD के उन विधायकों को अपने साथ जोड़े, जो सपा के पुराने नेता हैं और विधानसभा चुनाव के वक्त RLD के सिंबल पर लड़े थे.
अखिलेश की मुश्किलें बढ़ना तय
यूपी की 10 राज्यसभा सीटों के लिए मौजूदा गणित बिल्कुल साफ है. बीजेपी ने 7 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं और समाजवादी पार्टी ने 3 सीट पर दावा ठोका है, लेकिन ताजा सियासी हालात को देखकर बीजेपी आज संजय सेठ के रूप में अपना 8वां प्रत्याशी उतारने जा रही है. अगर बीजेपी ने 8वां प्रत्याशी उतारा और समाजवादी पार्टी में इसी तरह विरोध होता रहा तो अखिलेश यादव की मुश्किल बढ़नी तय है. स्वामी प्रसाद मौर्य भी पार्टी के भीतर अब असहज महसूस करने लगे हैं. उन्होंने भी PDA के मुद्दे पर अखिलेश यादव को घेरा. कहा- वो PDA को जोड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी तैयार नहीं थी.
उखड़े-उखड़े स्वामी प्रसाद मौर्य
स्वामी प्रसाद मौर्य बोले, जब से मैं आया पार्टी को बढ़ाने का काम किया हमारी कोशिश रही की PDA को जोड़ा जाये, लेकिन हैरानी तब होती है कि इसी पार्टी के कुछ छूटभैया और बड़े नेता इस लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं ये कह कर की ये स्वामी का निजी बयान है...कुछ राष्ट्रीय महासचिव का बयान पार्टी का एक का निजी कैसे हो सकता है. स्वामी प्रसाद मौर्य उखड़े-उखड़े हैं. भले ही वो विधानसभा के सदस्य नहीं हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी के कुछ विधायक ऐसे जरूर हैं, जो स्वामी प्रसाद मौर्य की लीडरशिप में ही चलते हैं. ऐसे में अगर राज्यसभा चुनाव से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य ने कोई बड़ा फैसला लिया तो निश्चित तौर पर समाजवादी पार्टी की तीसरी सीट मुश्किल में फंस जाएगी.
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