नई दिल्ली: बीएसपी प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान राज्य में विभिन्न स्थानों पर उनकी आदमकद प्रतिमाओं तथा पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी बनाए जाने का सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बचाव किया. उन्होंने कहा कि ये प्रतिमाएं ‘‘लोगों की इच्छा’’ जाहिर करती हैं.
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान बीजेपी सरकार ने सरकारी राजस्व से अयोध्या में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची प्रतिमा निर्माण की पहल की है. उन्होंने कहा कि स्मारक बनवाना और मूर्ति लगवाना भारत में ‘‘नई बात’’ नहीं है.
उन्होंने शीर्ष अदालत से कहा कि अतीत में कांग्रेस पार्टी ने भी देशभर में पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी वी नरसिंह राव सहित अपने नेताओं की मूर्तियां लगवाई हैं. मायावती ने राज्य सरकारों द्वारा मूर्तियां लगवाने की हालिया घटनाओं का भी जिक्र किया जिसमें गुजरात में ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ नाम से चर्चित सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा शामिल है.
मायावती ने शीर्ष अदालत में हलफनामे में कहा, ‘‘इसी तरह से, केन्द्र और राज्य में सत्तासीन अन्य राजनीतिक दलों ने समय समय पर सरकारी धन से सार्वजनिक स्थानों पर विभिन्न अन्य नेताओं की मूर्तियां लगवाई हैं लेकिन न तो मीडिया और ना ही याचिकाकर्ताओं ने इस संबंध में कोई सवाल उठाया है.’’
लोकसभा चुनाव 2019: सर्वे के बाद बदला मायावती का मूड, कई टिकट बदलने की तैयारी
सुप्रीम कोर्ट एक अधिवक्ता द्वारा 2009 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था. वकील ने आरोप लगाया गया था कि मायावती के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते हुए विभिन्न स्थानों पर उनकी और बीएसपी चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवाने के लिए 2008-09 और 2009-10 के राज्य बजट से करीब दो हजार करोड़ रुपये इस्तेमाल किये गये.
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने एक हलफनामे में कहा कि प्रतिमाएं और स्मारक बनाने के पीछे की मंशा समाज सुधारकों के मूल्यों और आदर्शों का प्रचार करना है ना कि बीएसपी के चिन्ह का प्रचार या उनका खुद का महिमामंडन करना.
बीएसपी प्रमुख ने कहा कि उन्होंने अपना पूरा जीवन कमजोर समाज के उत्थान में समर्पित कर दिया और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ‘‘मैंने अविवाहित रहने का फैसला भी किया.’’
कानपुर: गठबंधन की डिमांड पर मायावती करेंगी रैली, ओबीसी-एससी और मुस्लिम वोटरों पर है नजर
उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा की मंजूरी के बाद बजटीय आवंटन के जरिये स्मारकों के निर्माण और प्रतिमाएं लगाने को मंजूरी दी गई. मायावती ने प्रतिमाओं के निर्माण में सार्वजनिक कोष के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका खारिज करने की मांग करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित और कानून का घोर उल्लंघन बताया.
सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को मौखिक टिप्पणी में कहा था कि मायावती को उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक स्थानों पर अपनी और पार्टी के चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगाने के लिए इस्तेमाल किया गया सार्वजनिक धन सरकारी कोष में जमा कराना चाहिए.
पीठ ने तब कहा था, ‘‘मायावती सारा पैसा वापस करिए. हमारा मानना है कि मायावती को खर्च किए गए सारे पैसे का भुगतान करना चाहिए.’’ उसने कहा था, ‘‘हमारा फिलहाल मानना है कि मायावती को अपनी और अपनी पार्टी के चिह्न की प्रतिमाओं पर खर्च किया जनता का पैसा सरकारी राजकोष में जमा कराना होगा.’’