नई दिल्ली: गोरखपुर में बीजेपी की हार के बाद हाहाकार मचा हुआ है. योगी आदित्यनाथ हार को स्वीकार करते हुए कह चुके हैं कि अति आत्मविश्वास हार का कारण बना. इसके साथ ही उन्होंने एसपी-बीएसपी के गठबंधन को भी बेमेल का गठबंधन बताया.
गोरखपुर में बीजेपी की हार का विश्लेषण करें तो एक कारण साफ नजर आता है जिसे बीजेपी नहीं समझ पाई. यह अहम कारण है गोरखपुर का जातीय समीकरण, जिसे एसपी ने समझा और सारा चुनावी गणित इसी हिसाब से बनाया.
क्या कहता है गोरखपुर का जातीय समीकरण?
एसपी के विजयी उम्मीदवार प्रवीण निषाद की निषाद जाति से आते हैं. गोरखपुर में निषाद समाज के मतदाताओं की संख्या करीब 3.5 लाख है. यादवों और दलितों की बात करें तो यह करीब 2 लाख है.
माना जा रहा है कि गोरखपुर के 1.5 लाख मुस्लिम मतदाताओं का वोट भी बीजेपी के खिलाफ गया. दूसरी तरफ बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ला की जाति ब्राह्मण के मतदाताओं की संख्या सिर्फ 1.5 लाख है.
बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके है BJP के प्रत्याशी
बीजेपी ने जिस उपेंद्र शुक्ल को योगी आदित्यनाथ का उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया था वो साल 2005 के एक उपचुनाव में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. उस वक्त उपेंद्र शुक्ल ने आरोप लगाया था कि योगी आदित्यनाथ की वजह से उनका टिकट काटा गया है.
29 साल के लड़के ने खत्म किया 29 साल का 'कब्जा'
गोरखपुर से जीतने वाले प्रवीण निषाद सिर्फ 29 साल के हैं. उनके नाम तीस साल बाद गोरखपुर की सीट पर जीतने का अनोखा रिकॉर्ड बन गया है. 29 साल से गोरखपुर की सीट पर गोरक्षपीठ मठ का कब्जा था. 1991 के बाद महंत अवैद्यनाथ 1996 में भी गोरखपुर से बीजेपी के टिकट पर जीते. उनके उत्तराधिकारी बने योगी आदित्यनाथ 1998 से लगातार 5 बार वहां से सांसद चुने गये.
गोरक्षपीठ से बाहर का उम्मीदवार बना वजह?
90 के दशक से गोरखपुर के मतदाता गोरक्षापीठ के प्रमुख को अपना सांसद चुनते आये हैं. इस बार बीजेपी ने जिन उपेंद्र शुक्ल को मैदान में उतारा उनका पीठ से सीधा रिश्ता नहीं है. जानकारों के मुताबिक बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह ये भी हो सकती है. आपको बता दें कि गोरक्षा पीठ महज धार्मिक संस्थान नहीं हैं. मठ के अपने स्कूल, अस्पताल और तमाम तरह के दूसरे संस्थान हैं जिनसे गोरखपुर के लोग लंबे समय से जुडे हुए हैं.