छत्तीसगढ़: 15 साल तक CM की कुर्सी पर बिठाने के बाद क्या जनता एक बार फिर रमन सिंह पर भरोसा जताएगी?
राज्य में रमन के मुकाबले विरोधी दलों के पास उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं था, इसके बावजूद इस बार की लड़ाई उनके लिए आसान नहीं थी.
नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में रमन सिंह चौथी बार मुख्यमंत्री बनने की होड़ में हैं. राज्य की जनता ने उनकी किस्मत का फैसला कर दिया है, अब नतीजे 11 दिसंबर को बाहर आएंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि 15 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने के बाद छत्तीसगढ़ की जनता क्या एक बार फिर रमन सिंह पर भरोसा जताएगी? राज्य में रमन के मुकाबले विरोधी दलों के पास उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं था, इसके बावजूद इस बार की लड़ाई उनके लिए आसान नहीं थी.
छत्तीसगढ़ के चाउर (चावल) वाले बाबा कहे जाने वाले रमन सिंह ने राज्य में चौथी बार सरकार बनाने के लिए जमकर पसीना बहाया. एक रुपये किलो चावल देकर गरीब जनता का पेट भरने वाले रमन को तीन बार जनता ने गद्दी पर बिठाया. लेकिन क्या रमन सिंह चौथी बार छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बनेंगे, ये बड़ा सवाल है क्योंकि वक्त बदल चुका है.
बदलते वक्त के साथ जनता की मांग भी बदल गई है. 2003 से गरीबों को सस्ते दर पर अनाज बांटने की योजना चलाने वाली रमन सरकार को भी हालात का बखूबी अंदाजा था. शायद यही वजह है कि चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं की भरमार आ गई.
चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं की आ गई थी भरमार छत्तीसगढ़ में अलग-अलग योजनाओं के तहत लोगों को मुफ्त मोबाइल फोन, प्रेशर कुकर, टिफिन, साइकिल, सिलाई मशीन, साड़ी, स्कूली ड्रेस समेत तमाम चीजें बांटी गईं. एक तरफ रमन सिंह ने गरीबों के लिए योजनाएं चलाकर आम लोगों के बीच लोकप्रिय मुख्यमंत्री बनने की कोशिश की तो दूसरी तरफ राजनीतिक दांव-पेंच के जरिए अपने रास्ते के कांटों को साफ किया.
2003 से मुख्यमंत्री पद पर काबिज रमन सिंह छत्तीसगढ़ में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा हैं. कांग्रेस बिना चेहरे के चुनाव लड़ी. अजीत जोगी ने बीएसपी और सीपीआई से समझौता कर मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की लेकिन जनता ने किसके दावों पर भरोसा किया, ये 11 दिसंबर को ही साफ होगा. फैसला चाहे जो हो, लेकिन नतीजे अपने हक में करने के लिए रमन सिंह ने कोई कसर बाकी नहीं रखी.
इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन कहा जाता है कि जोगी को पर्दे के पीछे से रमन सरकार का ही समर्थन हासिल था. क्योंकि अजीत जोगी और उनके गठबंधन को कांग्रेस के वोट में सेंध लगाना था. लेकिन एबीपी न्यूज़ के कार्यक्रम में अजीत जोगी ने रमन सरकार से किसी तरह की सांठगांठ होने से साफ इनकार कर दिया.
अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि अगर राज्य में किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो जोगी और कांग्रेस एक हो जाएंगे और ऐसी स्थिति में धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ की सत्ता से चावल वाले बाबा बाहर हो जाएंगे. रमन सिंह की मुश्किलें इतनी ही नहीं हैं, इस बार के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत में कमी आई है.
इस चुनाव की ये हैं बड़ी बातें 2013 के मुकाबले वोटिंग में एक फीसदी की कमी आई है. 2013 के चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी से एक फीसदी कम वोट मिले थे. 65 सीटों पर वोट प्रतिशत कम हुआ है. 24 सीटों पर वोट प्रतिशत बढ़ा है. एक सीट पर वोटिंग प्रतिशत पिछले चुनाव के बराबर रहा.
ये आंकड़े वैसे तो मैदान में दांव खेल रही हर पार्टी के लिए चिंताजनक हैं, लेकिन बीजेपी को इससे सबसे ज्यादा झटका लगा है. पिछले चुनाव में महज एक फीसदी वोट ज्यादा पाकर बीजेपी ने 49 सीटें जीती थीं. अब अगर इस बार बीजेपी से एक फीसदी मतदाता भी रूठ गए तो रमन सिंह के लिए जादुई आंकड़े तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा.
चुनाव में ये था अहम मुद्दा इस बार धान की कीमत भी अहम चुनावी मुद्दा रही. किसान रमन सरकार पर वादा खिलाफी का आरोप लगा रहे थे, ऐसे में सरकार को चुनावी साल में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाना पड़ा.
दरअसल बीजेपी ने 2013 में वादा किया था कि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 रुपए होगा लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया. जब विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाना शुरु किया तो किसानों को 2080 रुपये दिया जाने लगा.
15 साल सत्ता में रहने के बाद छत्तीसगढ़ की लड़ाई बीजेपी के लिए जितनी मुश्किल थी, उतनी कांग्रेस के लिए नहीं क्योंकि जनता कांग्रेस को उसके वादे और बीजेपी को रमन सिंह सरकार के काम से तौल रही है. आयुर्वेदिक डॉक्टर रह चुके रमन सिंह बीमारी की नब्ज पकड़ना जानते हैं. छत्तीसगढ़ की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले जानकारों के मुताबिक रमन सिंह ने सियासी बिसात पर एक मंझे खिलाड़ी की तरह विरोधियों को किनारे या कमजोर किया है.
रमन सिंह को जीत के लिए योगी के आशीर्वाद की जरूरत क्यों पड़ी? रमन सिंह बीजेपी के ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने हमेशा विकास के दावों पर वोट मांगा है. लेकिन इस चुनाव में शायद अपनी कमजोर हालत भांपकर अपने प्रचार को भगवा रंग में रंगने की कोशिश भी की. नामांकन के वक्त यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पैर छूकर आशीर्वाद मांगते रमन सिंह की तस्वीरों के सामने आते ही सवाल उठने लगे कि आखिर रमन सिंह को 15 साल सरकार चलाने के बाद जीत के लिए योगी के आशीर्वाद की जरूरत क्यों पड़ी.
रमन सिंह बीजेपी के मुख्यमंत्रियों में सबसे सीनियर हैं. वो 2003 से लगातार मुख्यमंत्री हैं. रमन सिंह ने गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके नरेंद्र मोदी से भी ज्यादा वक्त तक सीएम की कुर्सी संभाली है. उनके राजनीतिक सफऱ की शुरुआत 1984 से हुई थी. 1984 में उन्होंने कवर्धा नगर पालिका से पार्षद का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता मोतीलाल वोरा को हराया था.
राजनीति में इतना लंबा वक्त बिता लेने के बाद आज रमन सिंह का भरोसा विकास से ज्यादा धर्म पर दिख रहा है. दरअसल, राजनादगांव के नजदीक ही कवर्धा में नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की तादाद ज्यादा है और इससे पहले योगी ने कई राज्यों के चुनाव प्रचार में नाथ सम्प्रदाय के वोटरों को बीजेपी की तरफ खींचने में जबरदस्त कामयाबी हासिल की है.
धरम-करम के बीच संतुलन साधने में जुटे डॉक्टर रमन सिंह की चौथी पारी का भविष्य 11 दिसंबर को पता चल जाएगा. मंगलवार को जब नतीजों का ऐलान होगा तो पता चलेगा कि छत्तीसगढ़ की जनता ने चावल वाले बाबा का मंगल किया या फिर सत्ता परिवर्तन पर मुहर लगा दी.
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