एनसीपी के नेता और मंत्री नवाब मलिक ने बॉम्बे हाईकोर्ट में ईडी द्वारा अपनी गिरफ्तारी के विरोध में याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में उन्होंने ईडी द्वारा की गई कार्यवाही को गलत और अपनी गिरफ्तार को अवैध बताया था. आज कोर्ट में इसी याचिका पर सुनवाई थी. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुये 15 मार्च को सुबह साढ़े 10 बजे फैसला सुनाने की बात कही है. गौरतलब है कि इस याचिका में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को रद्द करने का आग्रह करते हुए दावा किया कि यह उनके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. 


मलिक के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने अदालत को बताया कि राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) मंत्री को गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और भगोड़े से जुड़े मामलों से जोड़ने की कोशिश कर रहा है, जबकि उनके मुवक्किल का उनसे कोई लेना-देना नहीं था. 


जबरन फंसा रही ED


देसाई ने कहा, “हिरासत के मेरे दस्तावेज दाऊद गिरोह से संबंधित है, हालांकि मेरा उनसे संबंध नहीं है. उन्होंने (ईडी) सुझाव देने की कोशिश की है कि तीन फरवरी, 2022 को उन्होंने दाऊद इब्राहिम कास्कर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. यह दाऊद से जुड़ी सुनी सुनाई बातों के बारे में हैं जो 30 साल पहले की घटनाओं से संबंधित हैं.” 


देसाई ने अदालत से कहा, “वे कहते हैं कि उन्होंने इस साल 14 फरवरी को एक ईसीआईआर और 2017 में दो अन्य प्राथमिकी दर्ज कीं, जिनसे मलिक संबंधित नहीं हैं. लेकिन वे यह सुझाव देने की कोशिश कर रहे हैं कि एक विधेय अपराध है जिससे मैं संबंधित हैं.”  देसाई ने यह भी तर्क दिया कि मलिक के खिलाफ वर्तमान मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया गया था.


ED ने किया अपना बचाव


ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने हाई कोर्ट को बताया कि आर्थिक अपराध लगातार जारी थे और केंद्रीय एजेंसी की तरफ से पीएमएलए की धाराएं लगाना सही था. सिंह ने कहा कि इसके अलावा, आर्थिक अपराधों के मामलों में पीएमएलए के पूर्वव्यापी आवेदन के मुद्दे पर भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जा रहा है.


हालांकि, देसाई ने अदालत को बताया कि ईडी ने अपने हलफनामे में खुद स्वीकार किया है कि वह कानून के पूर्वव्यापी आवेदन के मुद्दे पर अनिर्णीत था. देसाई ने कहा, “वे (ईडी) खुद इस मुद्दे पर भ्रमित हैं कि क्या कानून पूर्वव्यापी रूप से लागू है या नहीं, तो फिर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं छीनी जा सकती (जब तक सुप्रीम कोर्ट उन सवालों का फैसला नहीं करता).” अदालत आज भी इन मुद्दों पर दलीलें सुनेगी. 


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