नई दिल्ली: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर शुक्रवार को पत्थर बरसाए गए. दरअसल नीतीश कुमार राजधानी पटना से करीब सौ किलोमीटर दूर बिहार के बक्सर जिले के नंदन गांव में विकास यात्रा की समीक्षा के लिए गये थे. लेकिन गांव के महादलित टोले में लोगों ने सीएम नीतीश के काफिले की गाड़ियों पर हमला कर दिया. महादलितों के इस विरोध के बाद नीतीश कुमार के मिशन 2019 पर सवाल खड़े हो गए हैं.
बता दें कि लालू यादव से गठबंधन टूटने के बाद नीतीश कुमार पहली बार राज्य में किसी तरह की यात्रा पर निकले हुए हैं. यह पहला मौका है जब समीक्षा यात्रा में नीतीश कुमार को इस तरह का विरोध देखना पड़ा. मुख्यमंत्री के काफिले में शामिल गाड़ियां दनदनाकर भाग रही थीं और पत्थऱबाज पत्थर बरसा रहे थे. अब इस मामले पर जेडीयू का आरोप है कि इस विरोध के पीछे लालू यादव की पार्टी आरजेडी का हाथ है. वहीं जेडीयू के आरोप को खारिज करते हुए आरजेडी का कहना है कि नीतीश कुमार के विकास के दावे की पोल खुल गई है.
2015 में जब बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से सात वादे किये थे. इसमें नल, बिजली और पक्की सड़क देने के वादे किए थे. सीएम नीतीश इन्हीं वादों की हकीकत जानने समीक्षा यात्रा पर निकले हुए हैं. पहले तीन फेज में दो दर्जन जिलों की यात्रा वो कर चुके हैं. कल से बक्सर, कैमूर, सासाराम और भोजपुर की यात्रा पर निकले हैं.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निश्चय वाले फ़ॉर्मूले को अगले चुनाव में जीत का फॉर्मूला माना जा रहा. लेकिन जिस तरीके से महादलित के इलाके में मुख्यमंत्री को विरोध का सामना करना पड़ा उसने नीतीश के मिशन 2019 पर सवाल खड़े कर दिये हैं. विकास की हकीकत क्या है इसका पता जांच के बाद चलेगा. लेकिन ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बिहार में विकास के नाम पर कई जगहों से अनियमितता की खबरें पहले भी आ चुकी हैं. महादलित मोहल्ले से नीतीश कुमार के खिलाफ हुई बगावत काफी नुकसान पहुंचा सकती है.
बिहार में 22 जातियां दलित समुदाय में शामिल हैं. बिहार में इनकी कुल आबादी करीब 16 फीसदी है. चार फीसदी पासवान जाति को छोड़कर बाकी दलित जातियां महादलित में आती हैं. दलित नेता उदय नारायण चौधरी, श्याम रजक नीतीश कुमार से नाराज बताये जाते हैं.
महादलित वोट का नीतीश कुमार पर ऐसा प्रभाव रहा है कि जब उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद इस्तीफा दिया तो महादलित समुदाय से आने वाले जीतन राम मांझी को सीएम बनाया था. ये बात अलग है कि राजनीतिक महत्वकांक्षा की वजह से मांझी ने अपनी अलग राह बना ली.
आज की तारीख में देखें तो नीतीश कुमार के कोर वोट में कई पार्टियों ने सेंध लगा रखी है. मिसाल के तौर पर महादलितों के नेता बन चुके जीतन राम मांझी ने हम नाम की पार्टी बनाई. वहीं दलितों के नेता रामविलास पासवान एलजेपी के मुखिया हैं. इसके अलावा छह फीसदी वोट वाले कुशवाहा जाति के नेता उपेंद्र कुशवाहा आरएलएसपी के प्रमुख हैं. संयोग से ये तीनों ही एनडीए का ही हिस्सा हैं. लेकिन एक जमाने में पासवान का वोट छोड़कर महादलित और कुशवाहा के वोट पर नीतीश कुमार ही नेता हुआ करते थे. आने वाले दिनों में एनडीए के ये सहयोगी नीतीश कुमार के लिए परेशानी का सबब साबित हो सकते हैं.
जहां तक वोट का सवाल है तो बीजेपी से अलग होने के बाद भी नीतीश को 2014 में 16 फीसदी वोट मिले. वहीं लालू यादव के साथ 2015 में लड़ने पर जेडीयू को 100 सीटों पर 16.8 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन लालू यादव से अलग होने के बाद के राजनीतिक समीकरण कुछ और इशारा कर रहे हैं. इसे महज संयोग ही माना जाए कि दलितों का विरोध इससे पहले बीजेपी शासित यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र में हो चुका है. अब बिहार में हुआ है.